जंग की दास्तां सुनाते सिपाही
२३ मई २०१४राजधानी कोपनहेगन में 'कॉन्टैक्ट' नाम का नाटक चल रहा है. नाटक में काम कर रहे हैं डेनमार्क के वे सिपाही जिन्होंने अफगानिस्तान में जंग लड़ते हुए अपनी टांगें खो दीं. इनमें से एक हैं मार्टिन आहोल्म. 27 साल के मार्टिन में गुस्सा है. उन्हें लगता है कि डेनमार्क की सेना नहीं चाहती कि वह दुनिया के सामने आएं ताकि उन्हें देख कर नौजवान सेना में जाने का विचार ना बदल लें.
अफगानिस्तान में हादसे के उस दिन को याद करते हुए वह बताते हैं, "इस पल मेरी टांगें थीं, दूसरे ही पल मैं उन्हें खो चुका था." मार्टिन की टांगें तालिबान की बारूदी सुरंग की भेंट चढ़ गयीं. उनके दाहिने हाथ की तीन उंगलियां भी जल गयी. हादसे के बाद मार्टिन को काफी दर्द में जीना पड़ा.
अब वह डेनमार्क के लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं. मंच पर बैले डांसर्स के साथ नाचते हुए मार्टिन अपनी ही कहानी बयान करते हैं. उनके साथ हेनरिक मॉर्गन भी हैं, जिन्होंने उन्हीं की तरह जंग में अपनी टांगे गंवा दी हैं. और 42 साल के यास्पर नोएडलुंड भी हैं, जिनके जख्म मार्टिन की तरह तो नहीं दिखते लेकिन जंग के अनुभवों के कारण वह डिप्रेशन का शिकार रहे हैं.
वह बताते हैं कि 2003 में जब अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ, तब वह काबुल में थे. उसी दौरान वहां एक पुलिस चौकी पर हमला हुआ. वह अपने साथी सिपाहियों के साथ एक इमारत में फंस गए थे. वहीं से उन्हें सदमा लगा और उसके बाद से मानसिक रूप से उनकी हालत बिगड़ने लगी. मंच पर वह दर्शकों को बताते हैं कि इस हादसे के बाद कैसे पहले उनसे उनकी नौकरी छिन गयी और फिर घर परिवार.
इन कहानियों को मंच पर दिखाने का काम किया है टिम मातिआकिस ने. इस अनोखे तजुर्बे के बारे में वह बताते हैं, "मैंने अब तक और किसी बैले कंपनी के बारे में नहीं सुना है जो घायल सैनिकों के साथ काम कर रही हो. मैं तो कहूंगा कि अब मुझे जंग में जाने वाले जवानों से और भी ज्यादा जुड़ाव हो गया है."
नाटक के सहनिर्देशक क्रिस्टियान लॉलिके कहते हैं कि उन्होंने जब मंच पर सैनिकों का अभिनय देखा तो उनकी आंखें भर आईं. इस नाटक को रचने के पीछे लॉलिके का मकसद था डेनमार्क के लोगों को यह याद दिलाना कि पिछले तेरह साल से देश के सिपाही जंग लड़ रहे हैं.
नाटक के एक दृश्य में बैले डांसर नीले रंग का बुर्का पहने धुएं में से निकल कर आती हैं. मार्टिन बताते हैं कि उनके लिए यह दृश्य बहुत ही भावुक है और इसे देख कर उन्हें वे बीते दिन याद आ जाते हैं, "बहुत डरावना सीन है. मुझे याद है अफगानिस्तान में जब हम इस तरह से किसी को बुर्का पहने देखते थे तो हमें उनकी जांच करनी होती थी कि कहीं उन्होंने सुसाइड बेल्ट तो नहीं पहनी हुई. मैं अब भी वो सब महसूस कर सकता हूं."
हेनरिक मॉर्गन का कहना है कि इस नाटक ने उन्हें एक नया जीवन दिया है, "मैं यहां वो सब कर रहा हूं जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. नाटक में हिस्सा ले कर मुझे एहसास होता है कि मैं भी बाकियों की ही तरह हूं." वह कहते हैं कि एक तरह से उनके घायल होने ने उनके लिए नई दुनिया के दरवाजे खोल दिए, "क्योंकि अगर मैं घायल नहीं हुआ होता, तो मुझे यहां कभी बुलाया ही नहीं गया होता."
उन्हें उम्मीद है कि नाटक सिर्फ उन्हीं की नहीं, दर्शकों की भी मदद कर रहा है, "मैं उम्मीद करता हूं कि जो भी कोई इसे देखता है उसकी जंग के बारे में समझ बेहतर होती है. यहां ऐसा नहीं कि बस हीरो बच्चों को बचा रहे हैं या फिर कुछ पागल लोग बच्चों की जान ले रहे हैं. यह आम लोगों की कहानी है."
वहीं मार्टिन एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हैं जहां कोई जंग ना हो, "मैं जानता हूं कि ऐसा मुमकिन नहीं है. क्योंकि जब तक अलग अलग धर्म रहेंगे, अलग अलग तरह के लोग रहेंगे, अमीर-गरीब, श्वेत-अश्वेत और ना जाने क्या क्या, तब तक जंग की कोई ना कोई वजह मिलती ही रहेगी."
रिपोर्ट: मैल्कम ब्रेबैंट/आईबी
संपादन: महेश झा