छोटे ज्वालामुखी से जलवायु परिवर्तन धीमा
२१ नवम्बर २०१४लंबे अर्से से शोधकर्ताओं को पता है कि ज्वालामुखी जलवायु परिवर्तन से बचाव कर सकते हैं लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि मामूली विस्फोट भी वातावरण के लिए बहुत कुछ कर सकता है. शोधकर्ताओं ने अपने ताजा शोध में पाया कि पहले किए गए अनुमान के मुकाबले छोटे ज्वालामुखी विस्फोट करीब करीब दो गुना सौर विकिरण हटा चुके हैं. एनवॉयरमेंटल रिसर्च लेटर्स में छपे अध्ययन के मुताबिक, "आने वाली सौर ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस धकेलकर, साल 2000 से हाल के विस्फोटों से निकलने वाले सल्फ्यूरिक एसिड के कण वैश्विक तापमान को 0.05 से 0.12 डिग्री सेल्सियस तक घटाने के लिए जिम्मेदार हैं. इन नए डाटा से यह जानने में मदद मिल सकती है कि पिछले 15 वर्षों में बढ़ता वैश्विक तापमान धीमा क्यों हुआ है."
रिकॉर्ड के मुताबिक 1998 सबसे गर्म साल था और 20वीं सदी के औसत में हाल के कुछ साल अधिक गर्म रहे हैं. ऐसा कयों हो रहा है इस पर तरह तरह की थ्योरी है जिनमें सागरों द्वारा गर्मी सोख लेने के तरीके में बदलाव या कमजोर सौर गतिविधि की अवधि शामिल हैं. जलवायु अनुमान में ज्वालामुखी विस्फोट कारक नहीं माने जाते क्योंकि मौसम की भविष्यवाणी के दौरान ज्वालामुखी विस्फोटों के बारे में बता पाना बहुत ही कठिन है.
हालांकि बड़े विस्फोट जैसे 1991 में फिलीपींस के माउंट पीनातूबा में ज्वालामुखी के फटने से 2 करोड़ मीट्रिक टन सल्फर डायोक्साइड निकला जो सल्फ्यूरिक एसिड बनकर आसपास के आसमान में छा गया. माना जाता है कि इसने वैश्विक जलवायु को प्रभावित किया.
इस शोध को धरती, वायु और अंतरिक्ष से की गई निगरानी को मिलाकर कर तैयार किया गया है. समतापमंडल के निचले हिस्से में जब एरोसोल की जांच की गई तो पता चला कि अनुमान से ज्यादा एरोसोल वहां है. जानकारों का कहना है कि भविष्य के जलवायु मॉडल में बेहतर ऐरोसोल डाटा को शामिल करने की जरूरत है.
एए/एएम (एएफपी)