छत्तीसगढ़ में नहीं बदले चुनाव के मुद्दे
१९ अक्टूबर २०१८नए राज्य के रूप में जन्म लेने के बाद छत्तीसगढ़ के लिए अगर कुछ नहीं बदला तो वह हैं चुनावी मुद्दे. इस बार भी विधानसभा चुनाव में लगभग वही मुद्दे हैं जो 2003 के पहले विधानसभा चुनाव के समय थे, यानी बेरोजगारी और कृषि संकट का मुद्दा. पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा इन दोनों समस्याओं पर नियंत्रण पाने का दावा कर रही है लेकिन प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि संकट और गहरा गया है.
किसान और राजनीतिक दल
राज्य के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग खेती किसानी से जुड़ा हुआ है. ये किसान ही हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में जीत को हार और हार को जीत में बदलने का माद्दा रखते हैं. किसानों की इस ताकत से सभी दल वाकिफ हैं और इन्हें साधने के लिए तरह तरह के जतन किए जा रहे हैं. भाजपा किसानों की आय दोगुनी करने के वादे कर रही है. सरकार का कहना है कि किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए धान के समर्थन मूल्य को 2,070 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है.
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि 1 नवंबर से शुरू हो रही धान की खरीद में किसानों को समर्थन मूल्य के साथ-साथ 300 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस भी दिया जाएगा. उनके अनुसार, "धान खरीदी की व्यवस्था जब से शुरू हुई है तब से लेकर ऐसा पहली बार होगा जब 13 लाख किसानों को समर्थन मूल्य के साथ बोनस भी मिलेगा.” दुर्ग जिले के एक किसान रामदयाल कहते हैं, "बोनस के बाद धान का समर्थन मूल्य 2070 रुपये प्रति क्विंटल होगा जो राहत देने वाला नहीं कहा जा सकता.”
किसान आत्महत्या, कर्जमाफी और समय पर नए कर्ज का मुद्दा भी ग्रामीण क्षेत्रों में बरकरार है. किसानों के साथ सहानुभूति दिखाते हुए कांग्रेस पार्टी भाजपा पर औद्योगिक घरानों के लिए किसानों के हित को चोट पहुंचाने का आरोप लगा रही है. कांग्रेस का कहना है कि पिछले तीन वर्षों में ही छत्तीसगढ़ में 1400 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है.
बेरोजगारी
कांग्रेस पार्टी इस बार बेरोजगारी के मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठा रही है. नए वोटरों तक पहुंच बनाने के लिए आंकड़ों को सामने रख रही है. कांग्रेस नेता अमित श्रीवास्तव के अनुसार, राज्य में लगभग 50 लाख बेरोजगार हैं. इसमें पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों तरह के बेरोजगार शामिल हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राज्य में विभिन्न रोजगार केंद्रों में 25 लाख बेरोजगारों का पंजीकरण है. खेती में हो रहे नुकसान के चलते अब बहुत से किसान भी बेरोजगार हो गए हैं.
खरीफ फसल के दौरान सूखे ने पिछले साल राज्य में किसानी से जुड़े लगभग दस लाख से अधिक लोगों को प्रभावित किया था. इनमें से अधिकतर नए रोजगार की तलाश में हैं. सरकार मुद्रा योजना के जरिये या दूसरी योजनाओं के तहत युवाओं को ऋण देकर स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. वैसे, इन प्रयासों के बावजूद बेरोजगारी का मुद्दा छाया हुआ है.
जातीय समीकरण
तमाम मुद्दों के साथ उम्मीदवार की जाति भी चुनाव में एक अहम मुद्दा होता है. कथित रूप से अगड़ी जाति के वोटरों में भाजपा की पैठ काफी मजबूत है. अन्य पिछड़ी जातियों के वोट के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला है. वहीं दलित-आदिवासी वोट पर कांग्रेस के एकाधिकार को इस बार अजित जोगी-मायावती की जोड़ी चुनौती दे रही है. राज्य में लगभग 32 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं और 11 फीसदी से अधिक दलित समुदाय के मतदाता हैं. यानी इन दोनों समुदाय के पास 43 फीसदी से अधिक वोट हैं, जो किसी भी पार्टी के लिए सत्ता की सीढ़ी साबित हो सकते हैं. जातीय समीकरण के चलते ही अजित जोगी की छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस और मायावती की बसपा का गठबंधन कई क्षेत्रों में मजबूत दिखाई दे रहा है. इस गठबंधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल हो गई है.
इन मुद्दों के अलावा जनता के अपने मुद्दे भी हैं. महंगाई और भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता के मुद्दे विपक्ष उठा रहा है तो वहीं सत्ता में वापसी के लिए भाजपा केंद्र की मुद्रा योजना, आयुष्मान स्वास्थ्य योजना और उज्ज्वला योजना को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. हां, राष्ट्रवाद भी एक मुद्दा है लेकिन यह सिर्फ शहरों तक सीमित है.