चुरी के राज खोलता रोजेटा
१३ फ़रवरी २०१५घूमकेतु चुरी में हैरान करने वाले कई राज हैं. इसका आकार भी बिलकुल अलग है, जिसके चलते इसे स्पेस डक यानी अंतरिक्ष की बत्तख भी कहा जा रहा है. पिंड की सतह अनुमान से कहीं ज्यादा सख्त है. फिले लैंडर में धूमकेतु की सहत को खोद कर, डाटा भेजने वाले मेजरमेंट सेंसरों यानी मुपुस हैं. मुपुस लैब की तरह हैं जो धूमकेतु की सतह पर वार करता है, साथ ही वहां मौजूद धूल की परत पर काम करता है. लेकिन कुछ ही सेंटीमीटर की खुदाई के बाद ड्रिल किसी सख्त और माइनस 170 डिग्री ठंडी चीज से टकरा गई.
कल्पना से बिल्कुल परे
बर्लिन में जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिक इस घटना से हैरान हैं. अंतरिक्ष विज्ञानी टिमन श्पोन के मुताबिक, "धूमकेतु के गर्भ के बारे में अब तक की जानकारी के हिसाब से वहां बर्फीली ढलान या बहुत सख्त बर्फ जैसी चीज होने की उम्मीद थी. इसे फिर्न कहा जाता है. उम्मीद यह थी - न कि असली बर्फ जैसी सख्त चीज की."
अभियान में बाधाएं भी हैं. चुरी का गुरुत्व बल बेहद कमजोर है. फिले लैंडर का धरती में भार सौ किलोग्राम है, वहीं चुरी में मशीन का भार सिर्फ चार ग्राम लगता है. इसी वजह से फिले लैंडर को सतह पर बने रहने में परेशानी हुई. मशीन को धूमकेतु की सतह पर हार्पून गाड़ कर वहीं टिकना था, लेकिन ऐसा न हो सका. योजना के मुताबिक रोबोट - लैंडिंग के लिए एकदम सही जगह पर पहुंचा.
मुश्किल में रोबोट
लेकिन सतह से टकराने के बाद वो उछलकर वापस हवा में आ गया. और फिर एक दीवार पर बैठ गया.
सेंसर योजना के मुताबिक तय की गई दूरी तक नहीं जा सकते. एक सुराख किया जा सकता है, वो भी बिना कैमरा इमेज कंट्रोल के. श्पोन इसे बेहद जोखिम भरी स्थिति करार देते हैं, "हम इसे बंद करने के लिए वहां गए. हमें पता नहीं है कि वहां आगे क्या है. और जाहिर है वहां बड़ा रिस्क था. मुपुस को बंद करना जोखिम भरा था लेकिन उसे आंख मूंदकर बंद करना और बड़ा रिस्क था. और इसलिए हो सकता था कि वो सचमुच काम न करता."
रोलिस कैमरा टीम के लिए ये मुश्किल बढ़िया साबित हुई. लैंडर रोबोट के नीचे लगे कैमरा रोलिस काम कर रहा है.धूमकेतु पर लैंडिंग की कोशिश के दौरान भी ये कैमरा लगातार काम करता रहा. इसने प्लानिंग से कहीं ज्यादा डाटा भेजा. दो लैंडिंग स्पॉटों के क्लोज अप भी भेजे. तस्वीरों में एक छोटे से पिंड में बिल्कुल ही अलग सतह दिखती है. ऐसा क्यों, इसका जबाव रिसर्चर खोजेंगे.
हलचल कैसी
चुरी में धूल की हलचल- लेकिन वहां न तो वायु और न ही कोई वातावरण, तो फिर हलचल कैसी. क्या सूर्य के विकिरण से जब बर्फ पिघलती है तो धूल हिलती है? या फिर पिंड में दबे भाप के चश्मों की वजह से. क्या फिर किसी और जगह बारिश की वजह से. कई सवाल सामने हैं. टिलमन श्पोन कहते हैं, "डाटा में हमें और कुछ भी मिलेगा, जिसकी हमने कल्पना नहीं की है. फिलहाल सब कुछ संतुलित लग रहा है. हां, ऐसा कुछ सोचा था कि ये ऐसा होगा. और फिर..नहीं नहीं, ये अजीब सा है. मुझे लगता है कि कुछ समय बाद ये सही रास्ते पर जाएगा."
फिले को धूमकेतु तक ले गया अंतरिक्ष यान रोजेटा ही उसे वहां खोजेगा भी. फिलहाल फिले को सूरज का इंतजार है. रोबोट की सोलर बैटरी खत्म हो चुकी है. शायद 2015 में रोबोट फिर हरकत में आकर अभियान आगे बढ़ाए. लेकिन इस बीच रोजेटा सूर्य की तरफ बढ़ते चुरी के साथ ही रहेगा. यान धूमकेतु के ताप को परखेगा और ये भी देखेगा कि चुरी अंतरिक्ष में कितनी बर्फ छोड़ता है. ब्रह्मांड के रहस्यों की ही तरह, भविष्य के कई सवाल भी अभी छिपे हैं.