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चीन में स्कूली बच्चों पर फिर हमला

२९ अप्रैल २०१०

आर्थिक प्रगति के साथ सामाजिक समस्याएं घटती नहीं, और बढ़ती हैं. चीन इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण बन गया है. वहां दो ही दिनों के भीतर दूसरी बार किसी किंडरगार्टन या स्कूल के बच्चों पर छुरे-चाकू से अंधाधुंध हमला किया गया है.

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तस्वीर: AP

चीन के च्यांगसू प्रदेश के ताइछिंग शहर में गुरुवार की सुबह हुई इस तरह की ताज़ा घटना में एक बेरोज़गार आदमी ने वहां के केंद्रीय किंडरगार्टन के कम से कम 29 बच्चों और तीन वयस्कों को घायल कर दिया. पांच बच्चे गंभीर रूप से घायल हुए हैं और दो की स्थिति नाज़ुक बतायी जा रही है. घायल वयस्कों में एक पहरेदार और दो किंडरगार्टन शिक्षक हैं.

पुलिस का कहना है कि उसने 47 साल के शू यूयुआन को गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस के साथ मिल कर उसे जिन लोगों ने काबू में किया, उन में से एक हू याफेंग ने बताया कि "शू आज सुबह तो वह बिल्कुल ठीकठाक था, लोगों से बिल्कुल सामान्य ढंग से बातें कर रहा था." पुलिस का कहना है कि गिरफ्तारी के समय शू के पास 20 सेंटीमीटर लंबा एक चाकू था. वह एक स्थानीय बीमा कंपनी के लिए काम किया करता था. 2001 से बोरोज़गार था और अवैध धंधे कर रहा था.

एक ही दिन पहले, बुधवार को, चेन कांगबिंग नाम के एक शिक्षक ने, जो मानसिक कारणों से बीमारी की छुट्टी पर था, चीन के गुआंगदोंग प्रदेश में स्थित लेइज़ौ नाम के शहर में छुरे से 16 स्कूली बच्चों और एक शिक्षक को घायल कर दिया. 33 साल का चेन भी इस समय पुलिस की हवालात में है. प्राइमरी स्कूल के बच्चों पर उस के अंधाधुंध से हमले से कुछ ही घंटे पहले देश के दक्षिणपूर्वी फुजियान प्रदेश में कभी डॉक्टर रहे ज़ेंग मिन्शेंग नाम के उस आदमी को फ़ांसी दे दी गयी, जिसने 23 मार्च के दिन नानपिंग नाम के शहर में छुरे से 8 बच्चों को मार डाला और पांच अन्य को घायल कर दिया था. ज़ेंग की आयु 41 वर्ष बतायी गयी है.

Mediziner in einem Krankenhaus in Beijing, SARS
कुछ बच्चे नाज़ुकतस्वीर: AP

चीन की सरकार निरीह स्कूली बच्चों पर इस तरह के सनसनीखे़ज़ हमलों को केवल स्कूली सुरक्षा का प्रश्न मानती है. वहां के शिक्षामंत्रालय ने किंडरगार्टनों और स्कूलों को सुरक्षा के बेहतर प्रबंध करने के निर्देश दे रखे हैं और समझता है कि स्कूली सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ जाने पर समस्या हल हो जायेगी.

चीन कुछ समय पहले तक एक पिछड़ा हुआ विकासशील देश कहलाता था. तीन दशक के भीतर ही वह एक आर्थिक महाशक्ति बन गया है. होना तो यह चाहिये था कि आर्थिक विकास के साथ खुशहाली आने से अपराध और सामाजिक समस्याएं घटतीं, पर वे घटने की जगह तेज़ी बढ़ रही हैं. ऐसा क्यों है? चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपनी आर्थिक सफलताओं का ढिंढोरा पीटने में इतना व्यस्त और मस्त है कि वह इस तरह के प्रश्न वह सुनना ही नहीं चाहती.

जानकार कहते हैं कि भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती. हत्या और बलात्कार जैसे अपराध और मादक द्रव्यों का सेवन चीन में तेज़ी से बढ़ रहा है. इस की जड़ वे चीन की अतीत में कसी-बंधी सरकारी नियोजित अर्थव्यवस्था के हट जाने और उस की जगह सरकार को आर्थिक विकास का नशा चढ़ जाने में देखते हैं. इससे लोगों के मन-मस्तिष्क और अब तक के सामाजिक तानेबाने भारी तनाव में आ गये हैं.

पिछले वर्ष प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि चीन में 17 करोड़ 30 लाख वयस्क किसी न किसी मानसिक बीमारी या गड़बड़ी से पीड़ित हैं. इन में से 91 प्रतिशत को किसी मनोविशेषज्ञ या मनोचिकित्सक का कभी कोई परामर्श नहीं मिला. चीन के एक मनोवैज्ञानिक मा आई का कहना है कि किसी किसी के सिर पर हिंसा का भूत सवार हो जाने के पीछे वह मानसिक तनाव हो सकता है, जो जीवन में बढ़ रहे तनाव और मीडिया के बढ़ते हुए प्रभाव की देन है. बच्चे इसका सबसे सरल निशाना बनते हैं.

देश में हत्या की अन्य घटनाओं में भी बाढ़ आ गयी है. पिछले सप्ताह ज़ू योपिंग नाम के एक गायक को परपीड़ा सुख देने वाले यौनदुराचार के खेल के दौरान छह लोगों की हत्या कर देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. फ़रवरी में चेन रूइलोंग नाम के एक आदमी को तीन दशकों के दौरान तीन पुलिसकर्मियों सहित 13 लोगों की हत्या कर देने के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई गयी. इस तरह के अधिकतर मामले प्रेस तक या तो पहुँचते ही नहीं या छपते ही नहीं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/राम यादव

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य