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चीनी फजीहत का नया कारण बन रहा शिनजियांग कपास

राहुल मिश्र
५ अप्रैल २०२१

चीन के लिए कूटनीतिक विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. और इसकी वजह हैं चीन की खुद की दमनकारी नीतियां जो एक-एक कर दुनिया के सामने आती रही हैं.

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China boykottiert westliche Bekleidungs-Firmen
तस्वीर: STEPHEN SHAVER/newscom/picture alliance

शिनजियांग में उइगुर अल्पसंख्यक समुदाय के मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचार की खबरें यूं तो पिछले कई महीनों से सुर्खियों में हैं लेकिन अब इसे लेकर विवाद बढ़ रहा है जिसका असर चीन की पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ व्यापारिक और संसाधनों के क्षेत्र में संबंधों पर व्यापक रूप से पड़ने की आशंकाएं सामने आ रही हैं. अगर व्यापक पैमाने पर ऐसा हुआ तो चीन और पश्चिमी देशों के बीच नए शीत युद्ध की संभावना से भी इनकार करना मुश्किल है.

हाल के दिनों में कई अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों ने शिनजियांग में हो रहे उइगुर लोगों पर अत्याचार और रीएजुकेशन के नाम पर उनसे बंधुआ मजदूरी कराए जाने के मुद्दों को लेकर कई कंपनियों ने चीन से कपास के आयात पर रोक लगाने का निर्णय लिया है.

एचएंडएम नामक बहुराष्ट्रीय कपड़े बनाने वाली कंपनी इसमें प्रमुख रूप से सामने आई है. इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस कदम से चीन का बिफरना लाजमी था. लिहाजा चीन ने एचएंडएम और उसके जैसी तमाम कंपनियों को धमकी भी दे डाली कि अगर एचएंडएम चीन से शिनजियांग कपास  नहीं खरीदता तो चीन में उसे एक युआन का भी मुनाफा नहीं होगा और चीन इस बात को सुनिश्चित भी करेगा. राज्य-प्रशासित अर्थव्यवस्था होने के कारण चीन के लिए ऐसा करना आसान भी है.

विवाद के दिनों दिन गहराने का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चीनी गुस्से की चपेट में एचएंडएम के अलावा अब नाइकी, बरबरी, एडीडास और कनवर्स जैसी बड़ी कंपनियां भी आ गई हैं.

अति गरीबी से निकले चीनी गांव

दूसरी ओर, चीन ने न सिर्फ अपने ऊपर लगाए आरोपों से इनकार किया है, बल्कि यह भी कहा है कि जिसे भी शिनजियांग को लेकर कोई शक या शंका है, वह खुद शिनजियांग जाकर वहां के खुशहाल लोगों से मिलकर स्थिति का अंदाजा लगा सकता है. हालांकि शिनजियांग जाना इतना भी आसान नहीं है और सेटेलाइट तस्वीरों से यह भी जाहिर है कि चीनी सरकार ने वास्तव में उइगुर लोगों को बंधुआ मजदूरी में लगा रखा है और जेल में ये लोग तमाम यातनाओं का शिकार हो रहे हैं.

चीन के साथ इस टकराव में इन कंपनियों के शामिल होने से एक बात तो तय हो ही गई है कि विवाद इतनी आसानी से सुलझने नहीं जा रहा है. क्योंकि इन कंपनियों ने शिनजियांग मुद्दे को नैतिक तौर पर उठाया है, इस वजह से इन कंपनियों को पश्चिमी देशों, सिविल सोसायटी संगठनों और दुनिया के तमाम देशों के मानवाधिकार संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है.

इन विवादों के बीच 22 मार्च 2021 को यूरोपीय काउंसिल ने चार चीनी हस्तियों और शिनजियांग से जुड़ी एक कंपनी पर भी प्रतिबंध लगा दिया. प्रतिबंधित लोगों की सूची में शिनजियांग पब्लिक सिक्यूरिटी ब्युरो के निदेशक चेन मिंगुओ पर भी यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाया है.

यूरोपीय संघ उन्हें मानवाधिकार उल्लंघनों का दोषी मानता है. इसके अलावा वांग मिंगशान, वांग तुनझेंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शिनजियांग के उपसचिव झू हाइलान और शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कोर पर भी प्रतिबंध लग चुका है. 1989 के बाद यह पहली बार है जब यूरोपीय संघ के 27 देशों ने चीन पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं. अमेरिका और कनाडा ने भी शिनजियांग को लेकर कई बड़ी चीनी हस्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. जापान के शिनजियांग कपास मसले में पड़ने से यह स्थिति और खराब होने की आशंका बढ़ गई है.

शिनजियांग चीन का सबसे बड़ा स्वायत्त क्षेत्र है. माना जाता है कि अकेले शिनजियांग दुनिया के 20 प्रतिशत से अधिक कपास का उत्पादन करता है. अगर पश्चिम के देश शिनजियांग कपास का आयात रोकने में सफल हो जाते हैं, तो यह चीन के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका होगा. वैसे इन कंपनियों के लिए भी स्थिति इतनी आसान नहीं होगी क्योंकि अचानक कपास की इतनी मात्रा में आपूर्ति होना भी मुश्किल होगा. डर यह भी है कि शिनजियांग कपास कहीं कालाबाजारी के हत्थे न चढ़ जाए.

जो भी हो, यूरोपीय संघ के साथ प्रतिबंधों की बढ़ा बढ़ी में चीन कहीं न कहीं यह भूल रहा है कि यूरोप के साथ संबंध खराब होने से उसकी अर्थव्यव्स्था को काफी बड़ा झटका लगेगा. चीन और यूरोपीय संघ दोनों ही इस विषम परिस्थिति को अच्छी तरह समझते हैं. समस्या यह है कि न उनके नैतिक मूल्यों में सामंजस्य बैठ पा रहा है और न ही उनके सामरिक हितों में तालमेल. यह बात तय है कि जैसे जैसे यूरोपीय संघ और चीन के संबध खराब होते जाएंगे,  दुनिया शीत युद्ध 2.0 की तरफ बढ़ती जाएगी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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