घुमक्कड़ी छोड़ो किसान बनो
२१ अक्टूबर २०१३जरूरत से ज्यादा चारागाह बनने के कारण घास के मैदान खत्म हो रहे हैं, ऐसे में अब सरकार ने इन बंजारों के लिए खास योजना बना कर इन्हें बसाना शुरू कर दिया है.
सूरज की किरणों में तपी त्वचा वाले 53 साल के सोग्साइखान ओर्गोडोल के पैरों में अब भी घुमक्कड़ों वाले जूते हैं लेकिन उनका कबीला यहां वहां घूमता नहीं. सरकार की ओर से इन्हें 1000 हेक्टेयर जमीन दे दी गई है. इसके बदले उन्हें अपने मवेशियों की तादाद घटानी है और एक ही जगह पर साल भर रहना है जिससे कि जमीन को दोबारा उपज का मौका मिल सके. ओर्गोडोल कहते हैं, "मैं अपनी बकरियों की तादाद घटा कर आधी करने पर तैयार हो गया. एक ही दिक्कत है कि दूसरे जानवर भी आ जाते हैं. वे जान जाते हैं कि इधर अच्छी घास है. हमें उन्हें खदेड़ना पड़ता है और कोई तरीका नहीं." घोड़े पर सवार ओर्गोडोल अपने 200 जानवरों पर नजर रखते हैं. इनमें मुख्य रूप से भेड़ें हैं और कुछ गाय भी. उनकी जमीनों पर बाड़ नहीं लगी है.
इस प्रोजेक्ट के तहत उलान बाटोर और मंगोलिया के दो दूसरे बड़े शहरों एर्डेनेट और दारखान के करीब की 300 जमीन के टुकड़ों को शामिल किया गया है, जिसमें कुल मिला कर 1000 से ज्यादा परिवार रहेंगे. ओर्गोडोल के 22 सदस्यों को दो टुकड़े मिले हैं और एक पक्का मकान भी. यह जगह राजधानी उलान बाटोर से करीब 45 किलोमीटर दूर है. पुरानी परंपरा यह थी कि जमीन सबके लिए थी और चरवाहे साल में कई बार पानी और चारे की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते थे.
अमेरिकी पैसे से काम करने वाली सहायता एजेंसी मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन, एमसीसी ने मंगोलिया में जमीन देने का यह कार्यक्रम शुरू किया. एमसीसी से जुड़े न्यामसुरेन खागवासुरेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "देश में मवेशियों की तादाद बढ़ कर 4 करोड़ से ज्यादा हो गई थी. मंगोलिया एक बड़ा देश है लेकिन फिर भी यह उसके लिए उचित सीमा से बहुत ज्यादा है."
पिछले महीने ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगॉन के रिसर्चरों ने नासा के लिए उपग्रह चित्रों की मदद से बताया कि मंगोलिया के घास मैदान का 70 फीसदी हिस्सा अब बुरा है. हाल के वर्षों में देश के बायोमास में करीब 12 फीसदी की कमी आई है. उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा चरने के कारण घास के मैदान बहुत कम हो गए हैं.
मंगोलिया जब सोवियत संघ के अधीन था तब कई दशकों की कम्युनिस्ट तानाशाही में साम्यवादी अर्थव्यवस्था थी और मवेशी भी सभी के थे. बाद में 1990 के दशक में लोकतंत्र और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के आने के बाद बहुत से मंगोलियाई नागरिकों ने अपने मवेशी अलग कर लिए. इसकी एक वजह यह भी थी कि देश में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी. अब देश में काम करने वाली 40 फीसदी आबादी चरवाहा है.
कृषि मंत्री बाटुलगा खाल्तमा जमीनों के बंजर होने पर चिंता जताते हैं लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगॉन की रिसर्च को उतना महत्व नहीं देते. उनका कहना है कि समस्या चरने से ज्यादा पर्यावरण में बदलाव की है. उनका कहना है, "जमीन के आकार की तुलना में मवेशियों की तादाद उतनी ज्यादा नहीं है." वो ध्यान दिलाते हैं कि सोवियत युग में भी देश में बहुत बड़ी तादाद में मवेशी घूमते रह थे. खाल्तमा का कहना है, "समाजवाद के दौर में हमारे पास 2.6 करोड़ मवेशी थे और स्तालिन का लक्ष्य 2.5 करोड़ था जिससे कि साइबेरिया में गोश्त की मांग पूरी की जा सके."
एनआर/एएम (एएफपी)