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"घर बैठे जर्मनी और यूरोप की सैर"

१० जनवरी २०१४

पाठकों से मिली नए साल की ढेरों शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद. हमारी वेबसाइट और फेसबुक पर दी गई जानकारियां उन्हें कैसी लगी, जानिए उन्हीं के शब्दों में..

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सर्वप्रथम डीडब्ल्यू के सभी कर्मियों को नव वर्ष की ढेरों बधाई. साल 2013 देखते देखते हमसे विदा हो गया और छोड़ गया ढेर सारी यादें. इसी साल हमारा डीडब्ल्यू से सोशल मीडिया के माध्यम से अटूट संबंध जुड़ा और एक ऐसा मंच मिला जिस पर पहुंच कर हम खुद को गौरवांवित महसूस कर रहे हैं. हमारे लिए नए साल का आगमन खुशियों भरा हुआ. आज साल के पहले ही दिन आपकी ओर से भेजा हुआ उत्साहवर्धन एवं प्यार भरा पार्सल मिला. हालांकि मैं इस समय सऊदी अरब में हूं, पर क्लब सदस्यों की प्रसन्नता को देख मेरे पास धन्यवाद के शब्द कम पड़ रहे हैं. जिस प्रकार हम डीडब्ल्यू से अथाह प्रेम करते हैं ठीक उसी प्रकार आपकी ओर से उत्तर हमारे मनोबल को सातवें आसमान तक पहुंचा देता है. जब हम डीडब्ल्यू के पेज पर जाते हैं तो हर पहलू पर समाचार की प्राप्ति मंत्रमुग्ध कर देती है. जर्मनी के साथ साथ समूचे विश्व की खबरों का ऐसा समावेश होता है मानो समंदर को एक प्याले में समेट दिया गया हो. ऊपर से प्रतियोगिता का आयोजन सोने पे सुहागा जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. - मुहम्मद सादिक आजमी, वर्ल्ड रेडियो एंड टीवी डीएक्स क्लब, लोहिया, जिला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश

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आपको मालूम है कि आपकी वेबसाइट और फेसबुक, दोनों ही जानकारी के बहुत अच्छे माध्यम हैं. साथ ही भरपूर जानकारी हमें मोबाइल पर भी मिलती है. मंथन टीवी सप्ताह में एक बार पर्याप्त है और जो भी जानकारी दी जाती है वह तारीफ के काबिल है. किसी कारण पिछले सप्ताह मंथन का प्रसारण नहीं हुआ, उसका हमें बहुत दुख हुआ. - मोहम्मद असलम, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

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तस्वीर: DW

सबसे पहले डीडब्ल्यू की टीम को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई देता हूं. हमें भारत में घर बैठे इस ठंड के मौसम में चाय की चुस्की के साथ जर्मनी की ताजा खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं. वास्तव में आप लोग जर्मनी और भारत के साथ साथ एशिया पर बहुत अच्छी कवरेज देते हैं. और वर्ष 2013 में आप लोगों ने मंथन के माध्यम से भारत में डीडी नेश्नल चैनल पर एक अलग तरह का कार्यक्रम शुरू किया है जो कभी डीडी नेश्नल पर तो क्या, किसी भी प्राइवेट चैनल पर भी इस तरह का कार्यक्रम नहीं देखा और ना ही कभी सुना है. आप लोग हमें घर बैठे जर्मनी और यूरोप की सैर के साथ बहुत ही अहम विषयों पर जानकारी देते है जिसके लिए मैं धन्यवाद देता हूं. एक बात और, आप सोशल मीडिया पर भी छा गए हैं. आप लोग एक रिपोर्ट में कितना समय लगाते है और कितनी मेहनत से एक कार्यक्रम तैयार करते हैं. जब भारत में फेसबुक, ट्विटर और आपकी वेबसाइट पर भारतीयों की भीड़ देखता हूं तो मैं बहुत खुश होता हूं कि आपकी मेहनत बेकार नहीं जा रही है.- अमीर अहमद, दिल्ली

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रेडियो फेबा इंडिया, नई दिल्ली एंव प्रियदर्शिनी रेडियो लिसनर्स क्लब के संयुक्त तत्वावधान में 30 दिसंबर को भागलपुर में एक दिवसीय श्रोता सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में 'आज के दौर में रेडियो की लोकप्रियता' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 70 श्रोताओं ने भाग लिया. उपस्थित श्रोताओं ने रेडियो की लोकप्रियता पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला तथा कुछ श्रोताओं ने स्वीकार किया कि आज के आधुनिक युग में मीडियम तथा शॉर्टवेव के कार्यक्रमों की लोकप्रियता में कमी आयी है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आज भी बिजली एवं आवागमन की सुविधा का अभाव है, वहां के लोग आज भी रेडियो के द्वारा ही सूचना और ज्ञान प्राप्त करते है. रेडियो ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से कम खर्च में कहीं भी रह कर सूचना, मनोरंजन तथा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है. विगत कुछ वर्षो में हिन्दी सेवा के रेडियो प्रसारणों को बंद किये जाने पर चिंता व्यक्त की गई तथा रेडियो की लोकप्रियता बचाने की पूरजोर वकालत की. - डॉ. हेमंत कुमार, प्रियदर्शिनी रेडियो लिस्नर्स क्लब, भागलपुर, बिहार

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"पारसी समुदाय के अस्तित्व पर संकट", पारसी समुदाय पर यह लेख जानकारीपूर्ण लगा. दुनिया भर में उनकी आबादी का कम होना गंभीर चिंता का विषय है. इसके अनेक कारण हो सकते हैं. उन्हें खुद इसका हल निकालना चाहिए वरना वे इतिहास का एक हिस्सा बन जाएंगे. - जफर हसन, पटना, बिहार

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संकलन: विनोद चड्ढा

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