गूगल से उपजी वीजा की आशा
१५ नवम्बर २०१३इश्तिहार में दिल्ली और लाहौर के दो बुर्जुग दोस्तों बलदेव और यूसुफ की दशकों की जुदाई के बाद मिलन सिर्फ चार मिनट में हो जाता है. लेकिन हकीकत में इस काम में बरसों बरस लग जाते हैं.
भारत और पाकिस्तान में सीमा पार के सैकड़ों लोगों का ख्वाब है कि वे अपने बचपन के दोस्तों या रिश्तेदारों से मिलें, लेकिन दोनों देशों ने वीजा के लिए सख्त नियम अपना रखे हैं. हालांकि दोनों देशों ने बुजुर्गों के लिए देश पहुंचने पर फौरन वीजा देने का नियम लागू किया है लेकिन आम आदमी को यहां तक पहुंचने में भी मुश्किल होती है.
सरदार मुहम्मद हबीब खान 98 साल के हैं और वह पाकिस्तान के पूर्व सरकारी कर्मचारी हैं. वह यूं तो पाकिस्तानी हिस्से वाले कश्मीर के हैं लेकिन 1940 के दशक में उन्होंने श्रीनगर और बारामूला जैसे शहरों में भी नौकरी की है. उन्होंने तीन बार वीजा के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. उनका कहना है, "मुझे देहरादून की बहुत याद आती है क्योंकि वन अधिकारी के रूप में मैंने वहीं ट्रेनिंग की थी." लेकिन अब 98 साल की उम्र में उनके लिए यह भी संभव नहीं है कि वे अपने 60 साल के बेटे से जाकर मुलाकात करें.
ऐसी ख्वाहिशें सरहद के दोनों पार दब कर रह जाती हैं. हालांकि भारतीयों के साथ भी ऐसी ही हालत है. अपनी पैदाइश के शहर की बातें करते हुए उनकी भी आंखें भर आती हैं लेकिन वीजा पाना आसान नहीं.
विदर्भ धवल 87 साल के हैं और बंटवारे के बाद भारत आ गए थे. उनका कहना है, "कैसी अजीब बात है कि मैं पूरी दुनिया में घूम सकता हूं लेकिन लाहौर नहीं जा सकता, जब तक कोई मेरे नाम पर बांड न भरे. मैं अब पाकिस्तान में किसी को नहीं जानता लेकिन वहां जाना चाहता हूं."
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अशरफ जहांगीर काजी भी मानते हैं कि दोनों देशों के बीच वीजा की रस्मों को आसान करना चाहिए, "लोगों का आपस में मिलना बहुत जरूरी है, नहीं तो हम अजीब नजरअंदाजी की दुनिया में जीने लगेंगे. जबकि संभ्रांत, उद्योगपति, छात्र, पत्रकार और ऐसे लोगों को वीजा मिल जाएगा, लेकिन सभी तबके के लोगों को वीजा मिलना चाहिए."
गूगल का यह विज्ञापन फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया साइटों पर तेजी से फैला है और समझा जाता है कि इसकी वजह से वीजा को लेकर दोनों देशों में संजीदगी बढ़ेगी.
एजेए/एमजी (पीटीआई)