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गांव में चली खबरों की लहर

३० जून २०१४

चालीस औरतें, ज्यादातर गांव वाली और जज्बा है पत्रकारिता का. वे हफ्तावार समाचारपत्र निकालती हैं, जिसका नाम है खबर लहरिया. इस समाचारपत्र की वेबसाइट ने इस साल जर्मनी में प्रतिष्ठित ग्लोबल मीडिया फोरम का अवार्ड जीता है.

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तस्वीर: DW

कविता सिर्फ 16 साल की थी, जब उसकी शादी हो गई. वह स्कूल में पढ़ती थी. उसका दांपत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं था. ससुराल वालों से उसकी नहीं बनती थी. उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव था लेकिन कविता कच्ची उम्र की थी और उसका गर्भ नहीं ठहरता था.

उसने शादी से अलग होकर पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया. उसने निरंतर नाम की गैरसरकारी संगठन के साथ साक्षरता कार्यक्रम में हिस्सा लिया. कैंप पूरा होने के बाद कविता और उसके साथियों ने पढ़ना लिखना जारी रखने की ख्वाहिश जताई. इसके साथ ही खबर लहरिया की शुरुआत हुई.

Screenshot khabarlahariya.org
खबर लहरिया की वेबसाइट

दिल्ली में खबर लहरिया की संपादकीय प्रमुख पूर्वी भार्गव ने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, "कैंप के दौरान उन्होंने गांव के मामलों पर कहानियां लिखीं, ऐसी कहानियां, जो उनके दिल के करीब थीं. यह उनके समुदाय में काफी लोकप्रिय हुईं. तो उन्होंने कहा कि क्यों न हम इसे आगे बढ़ाएं और क्यों न हम दो या चार पन्नों का अखबार शुरू करें, जिसमें सिर्फ गांव की समस्याओं का जिक्र हो."

लोगों की पसंद

शुरू में खबर लहरिया की रिपोर्टरों को घरों में विरोध का सामना करना पड़ा, खास तौर पर शादीशुदा महिलाओं को. बार बार उनके पति पूछते कि कहीं अखबार छपने के वक्त उन्हें रात में घर से बाहर तो नहीं रहना पड़ेगा. भार्गव बताती हैं, "सारे पति सोचते थे कि पत्नियां रात में घर के बाहर कैसे रह सकती हैं. या फिर महिलाओं के लिए घर से बढ़ कर भला कौन सा काम हो सकता है."

लेकिन धीरे धीरे यह बदलता गया. खबर लहरिया की टीम की सदस्य बार बार इन औरतों के घर गईं और उनके परिवार वालों को समझाया. लेकिन अभी भी स्थानीय प्रशासन इन महिलाओं के काम में आड़े आ रहा है. भार्गव का कहना है, "आम तौर पर प्रशासन में मर्द काम करते हैं और वे महिलाओं से खास तरह से बात करते हैं, चाहे आप खुद को पत्रकार ही क्यों न बताएं. वे आम तौर पर आपको गंभीरता से नहीं लेते हैं."

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बॉन में मीडिया का जमावड़ा

बढ़ता प्रसार

अब खबर लहरिया एक साप्ताहिक समाचारपत्र बन चुका है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार की स्थानीय भाषाओं में छपता है. इसके ज्यादातर पत्रकार समाज के निचले तबके से आते हैं. रिपोर्टर, संपादक और प्रिटिंग एक्सपर्ट, सभी औरतें हैं. ग्लोबल मीडिया फोरम में बॉब्स की जूरी सदस्य रोहिणी लक्षणे बताती हैं, "इन इलाकों में नए पढ़े लिखे लोग खबर लहरिया पढ़ते हैं. इनमें शामिल महिला पत्रकार भी नई पढ़ी लिखी हैं. इन लोगों ने हाल में ही लिखना पढ़ना सीखा है. इस तरह खबर लहरिया साक्षरता भी बढ़ा रहा है."

खबर लहरिया अब एक सफल ऑनलाइन पत्रिका और अखबार बन चुका है. इसके करीब 80,000 पाठक हैं. ऑनलाइन में अंग्रेजी संस्करण भी है. इसके पाठकों में किसान, ग्राम पंचायत के सदस्य, सरकारी अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और गृहिणियां हैं.

खबर लहरिया समाज और मीडिया के तालमेल का सटीक उदाहरण है. समाचारपत्र से स्थानीय आबादी अपने अधिकारों के बारे में भी जानती है. इस तरह यह पर्यवेक्षक का भी काम करता है.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः अनवर जे अशरफ