गांवों के साथ ही होगा असली विकास
२४ अप्रैल २०१५एक ओर, भारत में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण हुआ तो दूसरी ओर, अमेरिका में डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलरी क्लिंटन ने भारत और बांग्लादेश की ग्रामीण महिलाओं द्वारा छोटे ऋणों की मदद से किए जा रहे संगठित प्रयासों को एक मिसाल बताया. लेकिन ग्राम विकास के क्षेत्र में काम करने वाले कई लोगों ने कई नौकरशाही बाधाओं और पिछड़ी मानसिकता से भारी परेशानी उठाई है. सलाव उठता है कि अगर सामाजिक कार्यर्ताओं को जानकारियां हासिल करने में इतनी दिक्कत होती है तो खुद गांव वाले सरकार से कितनी उत्तरदायिता की उम्मीद करें.
भारत में पंचायती राज की अवधारणा महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के मूल विचार पर आधारित है. इसका मकसद था सत्ता की डोर को देश की संसद से लेकर गांवों की ईकाई तक जोड़ना.
बीते कुछ सालों में महिलाएं भी ग्राम पंचायत स्तर पर काफी सक्रिय हुई हैं. यह भी पाया गया है कि कई गांवों में आज भी महिला सरपंचों के पति उनकी जगह पर सत्ता की बागडोर संभालते हैं. इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कड़े शब्दों में आपत्ति जताई. कई गांवों में महिलाओं की भूमिका मजबूत होने से माहौल बेहतर हुआ है और लड़कियों के प्रति भेदभाव के रवैये में भी कमी दिखी है.
देश के कई राज्यों में गांवों का नेतृत्व अब कुछ ऐसे हाथों में है जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी तक को चलाने का माद्दा रखते हैं. राजस्थान में एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल छवि राजावत के ग्राम सभा में प्रबंधन की मिसाल पेश करने का उदाहरण ऐसे ही कई मामलों में से एक है. यह ग्रामीण नेता ना केवल नए विचार और उपाय गांवों में ला रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया जैसे नए माध्यमों का इस्तेमाल कर दुनिया से सीधे जुड़ भी रहे हैं.
दूसरी ओर, खाप पंचायतों की समस्या आज भी कई गांवों में बरकरार है. अंग्रेजी में 'कंगारू कोर्ट' कहे जाने वाली ऐसी कानूनी गैरमान्यताप्राप्त पंचायत के सदस्य किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनकर नहीं आते बल्कि समाज के कुछ रसूखदार लोगों का समूह होते हैं. यह समय समय पर ग्रामीण समाज के लिए मनमर्जी से सामाजिक और नैतिक फरमान और फैसले देते आए हैं.
आरआर/एसएफ