गंगा और यमुना को मिले कानूनी अधिकार
२१ मार्च २०१७न्यायाधीश राजीव शर्मा और आलोक सिंह ने कहा कि यह असामान्य कदम जरूरी था क्योंकि इन दोनों पवित्र नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं. इस मामले में अधिकारियों ने शिकायत की थी कि उत्तराखंड और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की सरकारें गंगा की रक्षा के जो प्रयास केंद्र सरकार कर रही हैं उसमें सहयोग नहीं कर रही हैं.
इस निर्णय के एक दिन पहले न्यूजीलैंड में भी शांगनुई (Whanganui) नदी को जीवित घोषित किया गया था और नदी के लिये दो संरक्षकों को नियुक्त भी किया गया. दुनिया में किसी नदी को इस तरह से अधिकार देने का यह पहला मामला है. गंगा और यमुना पर अपना फैसला सुनाते हुये बेंच ने इस फैसले का उल्लेख भी किया था.
हाईकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुये कहा गंगा और यमुना को करोड़ों हिंदू पवित्र नदियां मानते हैं. इन्हें कानूनी संरक्षण का अधिकार है और इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता. अदालत ने कहा कि विवाद की स्थिति में ये पक्ष भी हो सकते हैं. अदालत ने आदेश दिया दोनों नदियों का प्रतिनिधित्व, गंगा के संरक्षण से जुड़ी परियोजनाओं की निगरानी करने वाली सरकारी संस्था "नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा", साथ ही राज्य के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता करेंगे.
याचिकाकर्ता मोहम्मद सलीम के वकील एम सी पंत ने कहा यह अधिकार नदियों की रक्षा करने में मदद करेगा, क्योंकि अब इनके पास जीवन के अधिकार सहित मानव जीवन की तरह संवैधानिक और वैधानिक अधिकार भी होंगे. उत्तर भारत से लेकर बांग्लादेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली गंगा तकरीबन 2500 किमी लंबा रास्ता तय करती हैं. हालांकि औद्योगिक कचड़े और सीवेज के चलते गंगा दुनिया की सबसे मैली नदियों में से भी एक हैं लेकिन इसके बावजूद लाखों भारतीय आज भी इसकी चमात्कारिक शक्ति पर आस्था रखते हैं. देश की सरकारें इसकी साफ-सफाई में अब तक करोड़ों रुपया खर्च कर चुकी हैं लेकिन हालात नहीं बदले. लेकिन अदालत के इस फैसले पर विशेषज्ञ भी विश्वास जता रहे हैं.
नई दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरमेंट से जुड़े सुरेश रोहिल्ला के मुताबिक अदालत का यह आदेश नदियों की बिगड़ती स्थिति पर ध्यान जरूर आकर्षित करता है और इन्हें बचाने में यह कुछ कारगर भी साबित हो सकता है.
एए/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)