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खोखली जमीन पर डोलती जिंदगी

१ सितम्बर २०१४

विकास और औद्योगिकरण के नाम पर कभी कभी भारी गलतियां हो जाती हैं. जर्मनी की रुअर घाटी इसका जीता जागता उदाहरण है. कभी यहां से खूब कोयला निकाला गया लेकिन आज पूरा इलाका डूबने की कगार पर खड़ा है.

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तस्वीर: DW

जर्मनी की रुअर घाटी में प्रोस्पर हानियल खान. एक ट्रॉली के सहारे खनिक जमीन के भीतर करीब हजार मीटर की गहराई में उतरेंगे. वो भी डेढ़ मिनट के अंदर. रुअर घाटी की यह कोयला खदान देश की ऐसी आखिरी खानों में है जहां अब भी खनन चल रहा है. लेकिन चार साल के बाद यहां से पत्थर का कोयला निकालना बंद कर दिया जाएगा.

रुअर घाटी में करीब छह करोड़ टन कोयला है. कई दशकों तक जर्मन सरकार ने कोयला उत्पादन को रियायत दी, लेकिन अब खनन को जारी रखना यहां बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं. दक्षिण अफ्रीका, रूस या ऑस्ट्रेलिया से कोयला मंगाना ज्यादा सस्ता है.

गड़बड़ा गया संतुलन

बंद या चालू खदानों में पानी सबसे बड़ी समस्या है. ऐसे हजारों पम्प यहां से लगातार पानी बाहर निकालते हैं, इनके बिना सुंरग भर सकती है. पाइप सैकड़ों किलोमीटर के दायरे में फैले हैं. खदान बंद होने के बाद भी पम्पिंग सिस्टम काम करता रहेगा, वरना यहां के जमीन के भीतर का पानी दूषित हो सकता है. खान सर्वेक्षक योआखिम सुरंग के भीतर जाकर इस मुश्किल को समझाते हैं, "हमारे चारों ओर पानी है और हम अपने चारों तरफ हर चीज को सूखा रखते हैं. पम्प सुरंग को सुखा कर रखते हैं. हम प्रासेस्ड वॉटर भी बाहर निकालते हैं. अगर हम इसे बंद कर देंगे तो पानी धीरे धीरे भरने लगेगा. ये मिनरल वाटर है. ये चट्टान एक प्राचीन समुद्र से बनी है, इसीलिए इसमें नमक है. हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि नमक वाला पानी ऊपर की तरफ न जाए और पीने के पानी से न मिल जाए."

रुअर घाटी के नीचे करीब पचास हजार सुरंगें हैं. खदानों के पम्प पानी का स्तर बढ़ने से रोकते हैं. इनके बंद होते ही बीस साल के भीतर यहां बड़ी झील बन जाएगी. लेकिन पम्पों को चालू रखने में भी अरबों यूरो का खर्च आएगा. जर्मनी के पूर्व वित्त मंत्री वेर्नर मुलर इससे निपटना चाह रहे हैं. राजनीति से संन्यास के बाद वह जर्मनी की सबसे बड़ी कोयला कंपनी रुअरकोह्ल के प्रमुख रहे. उनके अच्छे संपर्क भी हैं. आरएजी फाउंडेशन के प्रमुख मुलर का दावा है कि उनकी संस्था इलाके को डूबने से बचा सकती है, "अगर आप मुझसे पूछें कि लोग यहां कब तक रहेंगे तो मैं कहूंगा जब तक वो रहेंगे तब तक हम पम्प करते रहेंगे. मुझे लगता है कि लोग यहां हमेशा रहेंगे और हम भी हमेशा पम्प करते रहेंगे."

सामने आते गंभीर नतीजे

लेकिन खोखली हो चुकी जमीन के ऊपर रहने वाले कई लोग और खास तौर पर किसान भविष्य को लेकर परेशान हैं. उनके मुताबिक धीरे धीरे जिंदगी मुश्किल होती जा रही है. पम्पिंग के बावजूद भूजल सतह तक आ ही जाता है. दशकों के खनन के चलते अब यहां की जमीन धंसने लगी है. किसान हेरमन शुल्से-बेर्कामेन कहते हैं, "इसका नतीजा यह हुआ कि आस पास पानी भरने लगा है, जिनमें बत्तखें तैरने लगी हैं. अतिरिक्त पानी का मतलब है कि हम हमेशा की तरह खेती नहीं कर पाएंगे. कभी कभी ऐसा भी होता है कि बुआई और कटाई नहीं कर सकते. हमारे लिए इसके गंभीर आर्थिक नतीजे हैं."

प्रोस्पर हानियल खान 2018 में बंद हो जाएगी. तब कंपनी खनिकों को दूसरे पेशों के लिए ट्रेनिंग देगी. वे इलेक्ट्रिशियन, मैकेनिक या तकनीशियन बनेंगे. कुछ को पम्प ऑपरेटर की नौकरी मिलेगी. किसी को नहीं पता कि पम्पों के सहारे सुरंग को सुखा कर रखने में कितना खर्चा आएगा. अगले 100 साल में यहां क्या होगा, इसका जवाब भी किसी के पास नहीं.

रिपोर्ट: क्लाउडिया लाचाक/ओएसजे

संपादन: अनवर जे अशरफ