खेल से होगी सजा कम
१८ नवम्बर २०१३अमेरिका, चीन और रूस के बाद ब्राजील में दुनिया के सबसे ज्यादा कैदी हैं. 2005 से लेकर 2012 तक कैदियों की संख्या तीन लाख इकसठ हजार से बढ़कर पांच लाख से ज्यादा हो गई. जेलों में केवल तीन लाख मुजरिमों के लिए जगह है.
खेल के जरिए
सरकार अब कुछ करना चाहती है. 2014 तक 30 करोड़ यूरो की राशि लगाई जाएगी और नए कैदखाने बनाए जाएंगे. ब्राजील की संसद में इस पर बहस हो रही है. पहली बार ऐसा प्रस्ताव रखा गया है कि खेल कूद के जरिए कैदियों की सजा कम की जाए.
उधर विश्वविद्यालयों और गैर सरकारी संगठनों ने अपनी तरफ से एक राष्ट्रीय "समझौते" का प्रस्ताव रखा है ताकि कैदियों को सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल किया जा सके. अगर कैदियों की सजा और उनके जुर्मों की जांच की जाए तो ऐसे में उनकी सजा कम की जा सकता है.
जज दूग्ला दे मेलो मार्तिंस राष्ट्रीय कानून परिषद के प्रतिनिधि हैं और कैदखानों पर निगरानी रखते हैं. उनका कहना है कि ब्राजील में जेलों की हालत काबू से बाहर हो चुकी है. उनका मानना है कि कैदियों को कम संख्या में समाज में दोबारा शामिल करने की कोशिशें की गई हैं और यह काफी सफल रही हैं.
फैसले के इंतजार में सजा
न्याय परिषद इस वक्त ब्राजीलियाई राज्य आल्गोआ में जेलों की जांच कर रही है.यहां की जेलों में 2,353 कैदियों के लिए केवल 1,493 सेल है. कैदियों में से ज्यादातर अब भी अदालत के अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
लेकिन कैदियों की हालत अब ब्राजीलियाई समाज को हिला रही है. जेल में दंगे फसाद, यातना और हिंसा की रिपोर्टों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां मानवाधिकारों की स्थिति कितनी खराब है. 25 साल पहले साओ पाओलो के कैदियों ने बगावत की थी जिसके बाद सेना ने उनपर गोलीबारी की. 111 कैदियों की जान गई. आज भी इस हादसे को याद किया जाता है.
अब सरकार नए कार्यक्रमों के जरिए हालात में बेहतरी लाना चाहती है. अब कैदी काम और शिक्षा के जरिए अपनी सजा कम करा सकते हैं. तीन दिनों के काम के लिए या 12 दिन की पढ़ाई के बदले उनकी सजा में से एक दिन कम कर दिया जाता है.
साइकिल से बिजली
ब्राजील के सारे कारावासों के पास कैदियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. मिनास जेराइ राज्य के जेल में 130 कैदी साइकिल चलाते हैं और इससे शहर की सड़कों की लाइटें जलाई जाती हैं. आरियोसवालदो दे कांपोस पिरेस नाम की जेल में कैदी स्वेटर बुनते हैं. राजधानी ब्राजीलिया में जेल यूनियन और गैर सरकारी संगठन "खुले दरवाजे" का दिन मनाते हैं. जो कैदी साथ आना चाहता है, उसे एक किताब पढ़नी होती है और उसकी समीक्षा लिखनी होती है. अगर जूरी को समीक्षा पसंद आती है तो वह उसकी सजा कम कर देते हैं.
लेकिन अब तक 120 कैदियों में से केवल 12 इसके लिए सामने आए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कैदियों को किताब क्यों पसंद आएगी- इनमें से ज्यादातर कैदियों के पास पानी नहीं होता और वह नहीं जानते कि वह जेल में अगले दिन जिंदा बचेंगे या नहीं. पादरी वालदीर जोआओ सिलवेरा ब्राजील के जेलों में प्रेयर करवाते हैं. उनका कहना है कि ज्यादातर कैदी अनपढ़ हैं, बहुत को नहीं पता कि वह कहां और कब जन्में थे. उनके पास पहचान पत्र भी नहीं हैं.
सिलवेरा का मानना है कि पहले कैदियों को उनके अधिकार दिलाने होंगे, उसके बाद ही समाज में उनके घुलने मिलने का काम शुरू हो सकता है.
रिपोर्टः एरिका दे साल/एमजी
संपादनः आभा मोंढे