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खाने से खेल, जिंदगी सूली पर

१५ मई २०१३

कई साल से सहायता संगठन ऑक्सफेम खाद्य पदार्थों में हेराफेरी का विरोध करता रहा है. उनका आरोप है कि बैंक और बीमा कंपनियां भी खाद्य पदार्थों की कीमत कम करवाने की जिम्मेदार हैं.

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तस्वीर: Getty Images

खाद्य पदार्थों में हेरा फेरी अरबों का व्यवसाय है. फंड के जरिए बैंक और संस्थान फसलों की कीमतों को कम ज्यादा करने के लिए बोली लगा सकते हैं. जर्मन बजार में 11 अरब यूरो खाद्य पदार्थों की बोली में लगाए गए हैं. इनमें से 6.2 अरब का निवेश बीमा कंपनी आलियांस ने किया है.

इसकी सहयोगी कंपनी पिम्को निवेश कंपनी है. खाद्य क्षेत्र में इसके तीन फंड हैं. दो छोटे फंड आलियांस ग्लोबल इन्वेस्टर में लगाए हुए हैं. यह भी आलियांस कंपनी की सहयोगी कंपनी है. ऑक्सफेम का दावा है कि आलियांस ने जर्मन बैंक डॉयचे बांक को भी इस क्षेत्र में साथ लिया है.

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बढ़ती कीमतेंतस्वीर: AFP/Getty Images

भूख का चक्र

आलू की थैलियां, लाल सफेद बैंड्स और आलियांस कैसिनो के पोस्टर के साथ ऑक्सफेम ने म्यूनिख में आलियांस के ऑफिस के सामने विरोध प्रदर्शन किया. आरोप है कि आलियांस भूख का एक चक्र बना रहा है. यही ऑक्सफेम की स्टडी का भी नाम है. जिसमें आलियांस सहित बैंकों की भी आलोचना की गई है.

ऑक्सफेम में व्यापार मामलों के विशेषज्ञ और इस स्टडी को लिखने वाले डेविड हाखफेल्ड का कहना है, "हमें ऐसा लगता है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार चढ़ाव का एक कारण बाजार की अटकलें हैं. और जहां कीमतों के ये ग्राफ ऊपर या नीचे जाते हैं ये वहां जोरदार वार करते हैं." दूसरे सहायता संगठन जैसे फू़डवॉच भी कच्चे खाद्यपदार्थों की कीमतों पर अटकलें लगा रहे हैं.

300 फीसदी बढ़ोतरी

पूरी दुनिया में कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. और पिछले सालों में इथियोपिया में मक्के की कीमतें करीब 200 फीसदी बढ़ गई. कीमतों में इस बढ़ोतरी के नतीजे जानलेवा हैं. क्योंकि दुनिया के गरीब हिस्सों में लोग अपनी आय का 80 फीसदी खाने के लिए खर्च करते हैं. एक दो सेंट की बढ़ोतरी भी अस्तित्व का संकट पैदा करती है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 87 करोड़ लोग भूखमरी का शिकार हैं. इसमें महिलाओं और बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है. उधर तेजी से गिरती कीमतों से दुनिया का बाजार ध्वस्त हो सकता है.

आलियांस हालांकि नहीं मानती कि वह तेजी से बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेदार है. कॉर्पोरेट मामलों के उपप्रमुख निकोलाई तेवेस कहते है, "हम अपने उपभोक्ताओं को चक्र के विरोध में निवेश करने की सलाह देते हैं. और अगर उनके निवेश का पैटर्न देखा जाए, यानी कब वो खरीदते हैं औऱ कब बेचते हैं तो दिखता है कि ग्राहक कम कीमत पर खरीदते हैं और ज्यादा होने पर बेचते हैं."

तेवेस के मुताबिक बाजार के लिए इसका मतलब कीमतों में समानता होता है. कंपनी के प्रमुख मिषाएल डीकमान इस आलोचना का खंडन करते हैं. वह कहते हैं कि मार्केट में कच्चा माल नहीं बल्कि भविष्य की कीमतों में बदलाव पर लेनदेन होता है, "किसान इस तरह कम कीमतों के खिलाफ और खरीददार ऊंची कीमतों के खिलाफ होते हैं.

विवादास्पद

Eine Gruppe Demonstranten der Hilfsorganisation Oxfam demonstriert am 07.05.2013 in München (Bayern) vor der Hauptversammlung des Versicherungsunternehmens Allianz SE mit einem Glücksrad und einem Transparent gegen die Börsenspekulation mit Nahrungsmitteln durch die Allianz. Der Konzern übertraf die Prognosen für 2012 und verdoppelte den Gewinn auf 5,2 Milliarden Euro. Gut lief es vor allem in der wichtigsten Sparte, der Schaden- und Unfallversicherung. Foto: Tobias Hase/dpa
ऑक्सफेम का विरोधतस्वीर: picture-alliance/dpa

हाले के व्यापार नीति विशेषज्ञ इंगो पीस आलियांस और दूसरे संस्थानों का समर्थन करते हैं. उन्होंने 2010 से 2012 के बीच 30 ऐसे शोधों का आकलन किया है. उनका मानना है कि कुछ और भी कारण हैं जैसे कि मांस या बायोस्पिरिट की मांग, जो कीमतों की बढ़ोतरी के जिम्मेदार है. हालांकि इस शोध की आलोचना भी नही हुई है. संयुक्त राष्ट्र में व्यापार और विकास कॉन्फरेंस के प्रमुख पर्यावरणविद हाइनर फ्लासबेक का आरोप है कि वह पूरी तरह गलत हैं. फूडवॉच के प्रमुख थीलो बोडे भी इस शोधकर्ता के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि स्टडी एकतरफा है. मिसेरेओर के निदेशक मार्टिन ब्रोएकलमान सिमोन कहते हैं कि जब बात भूख जैसे अस्तित्व के मुद्दे की हो तो आर्थिक संस्थाओं को साबित करना होगा कि उनके निवेश के विकल्प नुकसान पहुंचाने वाले नहीं हैं.

कई बैंकों ने तय किया है कि वह इस विवादास्पद व्यवसाय को छोड़ देंगे. जर्मनी में बर्लिन और बाडेन व्युर्टेम्बर्ग की कॉमैर्त्स बांक और डेका बांक ने इस व्यवसाय से अपने हाथ खींच लिए हैं. हालांकि ऑक्सफेम के लिए यह काफी नहीं है. उसका कहना है कि राजनीति को बाजार का नियमन सही तरीके से ही करना चाहिए.

रिपोर्टः श्टेफानी होएपनर/एएम

संपादनः ईशा भाटिया

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