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खाने को तरस रहे शरणार्थी

४ फ़रवरी २०१६

सीरिया शांति वार्ता स्थगित होने के बाद राहत एजेंसियों की नजर लंदन दाता सम्मेलन में जमा होने वाली आर्थिक मदद पर टिकी है. फंड की कमी के चलते शरणार्थी केवल एक समय खाना खाने और जूते चप्पल जलाकर टेंट गर्म करने को मजबूर हैं.

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तस्वीर: picture alliance/Photoshot

उत्तरी इराक के शरणार्थी कैंप में रह रही दो बच्चों की 28 वर्षीय मां परवीन ने बताया, "मैं सुबह 11 बजे खाना बना लेती हूं. अगर कुछ बचता है तो शाम को खा लेते हैं. क्यों? क्योंकि हमारे पास अब खाने को नहीं बचा है." द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अब तक के सबसे बड़े शरणार्थी संकट से जूझ रहे संयुक्त राष्ट्र और अन्य राहत एजेंसियों के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है. लेकिन उनके पास मदद घटाने और खाद्यान्न की सप्लाई कम करने के अलावा और विकल्प फिलहाल मौजूद नहीं.

सीरिया और इराक में निकट भविष्य में संकट रुकता नजर नहीं आ रहा. लाखों शरणार्थियों को अपने यहां पनाह देने वाले मेजबान देशों के लिए भी मुश्किलें आसान होती नहीं दिख रही हैं. सीरिया से भाग रहे लोग यूरोप में प्रवेश करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लंदन में सालाना दाता सम्मेलन में दाता संगठनों और देशों से मांग की जा रही है कि वे 2016 में शरणार्थियों की मदद के लिए राहत एजेंसियों और उन्हें अपने यहां टिकाने वाले देशों को 9 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दें. यह अब तक की गई सबसे बड़ी आर्थिक मदद की मांग है.

गत्ते से बना घर

पिछले साल दाताओं के पास से पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं आई. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि पिछले साल उनके पास इराक कार्यक्रम के लिए फंड की 61 फीसदी कमी रही. उन्हें मिले फंड से 18 लाख विस्थापित इराकियों और सीरिया से आए 60,000 शरणार्थियों को खाद्यान्न संबंधी मदद दी गई. पिछले साल मदद की कमी के कारण वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को खाद्यान्न की आपूर्ति में कटौती करनी पड़ी.

राहत एजेंसियों के मुताबिक कुछ शरणार्थियों को पहले के मुकाबले आधा ही खाना मिल पा रहा है और कुछ उससे भी महरूम रह जाते हैं. हर महीने मिलने वाली आर्थिक मदद भी घटाकर 10 डॉलर प्रति व्यक्ति कर दी गई है. खाने की कमी के चलते कई शरणार्थी यूरोप का रुख करने का मन भी बना रहे हैं. हालांकि वे ऐसा करने में शामिल खतरों को बखूबी जानते हैं. परवीन के 20 वर्षीय पड़ोसी नवरोज अहमद कहते हैं, "यहां रहने से बेहतर है कि लोग समुद्र में डूब कर मर जाएं. कम से कम आधे लोग तो मंजिल तक पहुंच पाएंगे."

परवीन के पति कई महीनों से बेरोजगार हैं. कुर्द इलाकों में स्थानीय अर्थव्यवस्था इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में बुरी तरह प्रभावित हुई है. परवीन ने बताया, "हम अपने घर का सामान बेच रहे हैं ताकि जिंदगी चलती रहे. ज्यादातर हम केरोसीन बेचते हैं." यह केरोसीन उन्हें सहायता एजेंसियों से टेंट गर्म करने और खाना बनाने के लिए मिलता है.

लेबनान में भी सीरियाई शरणार्थियों की हालत खराब है. खाना बनाने और खुद को गर्म रखने के लिए शरणार्थी अक्सर अपने जूते चप्पल भी जला देते हैं. लेकिन प्लास्टिक के जलने से वे छाती के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं. एक सहायता कर्मचारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "रात को वे एक दूसरे के जूते चुरा लेते हैं ताकि उन्हें जलाकर खुद को गर्म रख सकें. यह बहुत दुख की बात है. हमने कभी नहीं सोचा था कि बात यहां तक पहुंच जाएगी." सीरिया में जारी संकट के चलते लगातार बढ़ रही शरणार्थियों की समस्या से निपटने की राह में आर्थिक मदद एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा हो गया है.

एसएफ/एमजे (एपी)