खाड़ी के शाहों का स्वागत करते ओबामा
१४ मई २०१५गुरुवार को अमेरिका और खाड़ी देशों का सुरक्षा सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा कैंप डेविड प्रेसिडेंशियल रिट्रीट में हो रहा है. छह खाड़ी देशों के नेता इसमें शामिल होने पहुंचे हैं और ओबामा की कोशिश है कि शाह सलमान जैसे महत्वपूर्ण सदस्य के मौजूद ना होने के बावजूद वह मध्यपूर्वी देशों के साथ चले आ रहे मतभेदों को दूर कर सकें.
इस सम्मेलन की जगह अमेरिका और खाड़ी देशों के संबंधों के लिहाज से ऐतिहासिक महत्व वाली है. अमेरिका में राष्ट्रपति जिमी कार्टर और बिल क्लिंटन के समय में भी यह रिट्रीट मध्यपूर्व के साथ शांति संबंधों की बहाली की कोशिशों की गवाह रही है.
राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने खाड़ी देशों के चुनिंदा अमीरों, शहजादों और शेखों को समझाने बुझाने की एक कड़ी चुनौती है. ओबामा बताना चाहते हैं कि उनकी ईरान के साथ परमाणु समझौते को लेकर की जा रही बोतचीत का ये मतलब नहीं समझा जाए कि वह लंबे समय से अपने सहयोगी रहे खाड़ी देशों से दूर हो रहे हैं.
गुरुवार के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए एक दिन पहले पहुंचे सऊदी शहजादों को ओबामा ने खुद व्हाइट हाउस के अपने आधिकारिक निवास में ओवल ऑफिस दिखाया और उनके साथ 1940 से ही अपनी "असाधारण दोस्ती और फ्रैंकलिन रूजवेल्ट एवं किंग फैजल के समय से चले आ रहे संबंधों" का जिक्र किया. ओबामा ने कहा, "हम आज के मुश्किल वक्त में भी उसी संबंध को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं." यमन, सीरिया और इराक में भड़की हिंसा की आग में पूरा मध्यपूर्व झुलसा हुआ है.
ओबामा ने इस मौके पर अपने मेहमानों क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन नईफ और उप-क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की खाड़ी इलाके में आतंकवाद के खिलाफ जंग में उनकी भूमिका की तारीफ की. सऊदी नेता शाह सलमान ने इस सम्मेलन में शिरकत ना करने को कुछ लोग एक राजनयिक घुड़की मान रहे हैं तो वहीं रियाद ने इसे गलत बताया है. सम्मेलन में शिरकत कर रहे पांच अन्य खाड़ी नेताओं में भी केवल कतर और कुवैत के ही राष्ट्रप्रमुख पहुंचे हैं.
कैंप डेविड सम्मेलन से पहले खाड़ी देशों के नेताओं के लिए ओबामा के गर्माहट भरे संबोधनों से ईरान को लेकर उनकी नाराजगी दूर होगी, इसमें संदेह है. पहले भी अरब वसंत के स्वागत और खाड़ी के तेल भंडारों पर अमेरिका की घटती निर्भरता को लेकर संबंधों में तनाव चला आ रहा है. अरब देश और खासतौर पर सुन्नी बहुलता वाले मुसलमान राष्ट्र ओबामा के ईरान के साथ परमाणु समझौते को संदेह की नजर से देख रहे हैं. उनका मानना है कि उनके चिरशत्रुओं के इस तरह अमेरिका के साथ जुड़ने के साथ ही शिया मुसलमानों की विश्व पटल पर बड़ी भूमिका में आने की शुरुआत होगी. खाड़ी देश चाहेंगे कि अमेरिका उन्हें इस बात का भरोसा दे कि डील के बदले वह ईरान से साथ कोई "बड़ा सौदा" नहीं करने वाले.
अरब गल्फ स्टेट्स इंस्टीट्यूट के हुसैन इबिश बताते हैं, "सबसे ज्यादा वे जिस बात को लेकर आशंकित हैं, वह ये है कि कुछ कारणों से अमेरिकी नीतियां अपने परंपरागत क्षेत्रीय सहयोगियों की बजाए तेहरान की ओर झुकती दिखाई दे रही हैं."
आरआर/एमजे (एएफपी)