खतरे में 'मेड इन जर्मनी'
१४ अगस्त २०१३जर्मन सोसायटी फॉर क्वालिटी के प्रमुख युर्गेन फारविष 'मेड इन जर्मनी' को लेकर यूरोपीय आयोग की योजना पर कतई खुश नहीं हैं. वे कहते हैं, "मैं उसे अच्छा नहीं समझता, क्योंकि इससे और नौकरशाही होगी." जर्मन उद्योग और व्यापार संघ के विदेश व्यापार विभाग के प्रमुख फोल्कर ट्रायर बताते हैं, "अब तक निर्माता अपने ऐसे माल पर स्वैच्छिक तरीके से यह मुहर लगा सकते हैं, जिनका ज्यादातर हिस्सा या ता जर्मनी में बना हो या जर्मन उत्पाद से आया हो." उनका कहना है कि यदि डिजाइन, विकास और एसेंबलिंग जर्मनी में हुई हो, और सिर्फ पुर्जे ही विदेश से आए हों, तो उसे 'मेड इन जर्मनी' कहा जा सकता है.
क्वालिटी की गारंटी
फारविष का कहना है कि 'मेड इन जर्मनी' की मुहर इसके स्रोत का पता देने से ज्यादा है. "उसके पीछे प्रोसेसिंग, विश्वसनीयता और उसका टिकाऊ होना है, हर वह चीज जिसे क्वालिटी कहा जाता है. और लोग छवि भी खरीदते हैं, मसलन जर्मन इंजीनियरिंग की कला." एक अनुमान के मुताबिक 'मेड इन जर्मनी' का ब्रांड मूल्य 100 अरब यूरो के बराबर है, क्योंकि उद्यम और उपभोक्ता महंगे जर्मन सामान की खरीद का फैसला करते हैं, न कि दूसरे देशों के सस्ते उत्पादों की. फारविष का कहना है कि यूरोपीय संघ की योजनाओं से यह यूएसपी खतरे में है. "ब्रसेल्स का कोई नौकरशाह आ रहा है और कह रहा है कि कस्टम के लिए इसकी जरूरत है."
यूरोपीय संघ के आयोग के अनुसार हर निर्माता को भविष्य में इसकी सूची बनानी होगी कि उत्पाद का कौन सा हिस्सा किस देश में तैयार किया गया है. इसके आधार पर यह तय होगा कि कहां सबसे ज्यादा मूल्य का उत्पादन हुआ है. इसके आधार पर यूरोपीय संघ के नए कस्टम कोडेक्स के अनुरूप अंतिम उत्पाद पर सीमाशुल्क की राशि तय की जा सकेगी. यह कोडेक्स इस साल के अंत में लागू होगा. फारविष नाराजगी से कहते हैं, "फिर हमें गुणवत्ता के बदले कस्टम के नियमों पर ध्यान देना होगा."
कोई लाभ नहीं
जर्मन उद्योग और वाणिज्य संघ भी वर्तमान नियमों को जारी रखने के पक्ष में है, क्योंकि स्वैच्छिक रूप से 'मेड इन जर्मनी' की मुहर लगाना फायदेमंद है. ट्रायर कहते हैं, "यदि विवाद की स्थिति पैदा होती है तो इसे साबित करना होता है. इसलिए लोग आसानी से ये मुहर नहीं लगाते." संघ की चिंता यह भी है कि ग्राहकों को कोई फायदा हुए बिना यूरोपीय संघ द्वारा तय बाध्यकारी मुहर से खासकर मझौले उद्यमों का खर्च बढ़ जाएगा. लेकिन ब्रांड विशेषज्ञ वकील मॉर्टन डगलस इससे सहमत नहीं हैं, "मैं नहीं मानता कि इसका असर मुख्य रूप से मझौले उद्यमों पर होगा, बल्कि इससे बड़े उद्यम इससे प्रभावित होंगे, जो विदेशों में भारी खरीदारी करते हैं."
जर्मन उद्योग और वाणिज्य संघ तथा जर्मन सोसायटी फॉर क्वालिटी का मानना है कि आयोग के प्रस्ताव के पीछे संरक्षणवादी रुख भी हो सकता है. इसके लागू होने के बाद दक्षिण पूर्व एशिया के सस्ते देशों की जगह दक्षिणी यूरोप के कमजोर देश ले सकते हैं. भविष्य में देशों की मुहर की जगह 'मेड इन यूरोप' ले सकता है. फारविष का कहना है कि इस तरह का विकास जर्मनी जैसे निर्यातक देश के लिए समस्याजनक हो सकता है. "हम जरूर चाहते हैं कि यूरोप आगे बढ़े, लेकिन इसके लिए दूसरे देशों को अपनी प्रतियोगी क्षमता बढ़ानी चाहिए. यह इस तरह नहीं होना चाहिए कि अचानक नियमों को बदल दिया जाए."
लक्ष्यों की नई व्याख्या
पोशाक बनाने वाली कंपनी ट्रिगेमा के प्रमुख वोल्फगांग ग्रुप्प माल के बनने की जगह के बारे में बाध्यकारी जानकारी को सही मानते हैं. उनकी कंपनी काफी समय से सारा प्रोडक्शन जर्मनी में ही कराती है. कपास जैसा कच्चा माल, जो जर्मनी में पैदा नहीं होता, यह कंपनी विदेशों से खरीदती है. ग्रुप्प की राय में जर्मनी या यूरोप को सूदूर पूर्व के सस्ते प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने की कोई जरूरत नहीं है. सिर्फ लक्ष्यों को नए तरीके से तय करने की जरूरत है. "मुझे दुनिया का सबसे बड़ा कार निर्माता बनने की जरूरत नहीं है, मुझे दुनिया की सबसे अच्छी गाड़ी बनानी चाहिए. हमें हर तरह की चीज बनाने की हालत में होना चाहिए और वह बेहतरीन क्वालिटी में."
उनके ब्रांच का अनुभव दिखाता है कि बहुत से प्रतिद्वंद्वी जो किफायती उत्पादन के चलते सस्ते मजदूरी वाले देशों में चले गए हैं, पहले से खराब आर्थिक हालत में हैं, कुछ को तो सब कुछ पूरी तरह छोड़ देना पड़ा है. 'मेड इन जर्मनी' की मुहर के प्रचलन को पूरी तरह बंद होने में अभी वक्त लगेगा. इसे लागू करने के लिए यूरोपीय आयोग के प्रस्ताव को संसद में पास कराने के अलावा सदस्य देशों के अनुमोदन की जरूरत होगी. जर्मन उद्योग और वाणिज्य संघ के फोल्कर ट्रायर कहते हैं, "सबसे अच्छा होगा कि इस प्रस्ताव को कचरे के डब्बे में फेंक दिया जाए, क्योंकि हमें नहीं दिख रहा कि इससे प्रोडक्ट की सुरक्षा कैसे बेहतर बनाई जा सकती है. अब तक किसी प्रोडक्ट पर मेड इन का लेवल नहीं होने पर कोई हल्ला नहीं करता."
रिपोर्ट: मार्टिन कॉख/एमजे
संपादन: आभा मोंढे