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क्यों होते हैं बलात्कार?

ईशा भाटिया२० मई २०१५

भारत में बलात्कार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे. हर नया मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर देता है कि आखिर क्यों होते हैं बलात्कार. हमने लोगों से इसकी वजह जाननी चाही. जवाबों ने हमें हैरान कर दिया.

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Symbolbild Gewalt Frauen Schutz
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec

फेसबुक के जरिए हमने लोगों से पूछा कि क्या छोटे कपड़े बलात्कार का कारण हैं. कुछ ही घंटों के भीतर हमारे पास 600 से अधिक जवाब आए. अधिकतर लोगों ने हां में जवाब दिया. संतोष पांडे ने लिखा कि महिलाएं ओर बेटियां साड़ी और सलवार कमीज में ही संपूर्ण नारी लगती हैं. इसी तरह आदिल शेख का कहना था कि बलात्कार के लिए कई चीजें जिम्मेदार हैं और कपड़ों के साथ साथ लड़कियों को मिलने वाली खुली छूट भी इसमें शामिल हैं. सूरज कुमार सोनी ने लिखा, "लड़की के जो जो अंग मर्द को आकर्षित करते हैं, अगर वह छोटे कपड़े पहन कर उन्हें दिखाएगी, तो उसका बलात्कार नहीं तो और क्या होगा?"

क्या चाहती हैं लड़कियां?

केवल कपड़ों पर ही नहीं, कई लोगों ने मेकअप पर भी सवाल उठाया कि आखिर लड़कियां इसके जरिए करना क्या चाहती हैं. मुन्ना फरेंदा ने तो महिलाओं की तुलना वस्तुओं से करते हुए लिखा कि जैसे "खाने को देख कर भूख लगती है, बिस्तर को देख कर नींद आती है, कार को देख कर उसे खरीदने का मन करता है" वैसा ही छोटे कपड़े देख कर भी होता है.

बहुत सी लड़कियों ने इस तरह की सोच का विरोध किया. दिव्या नागपाल ने लिखा, "यह कोई जरूरी नहीं कि छोटे कपड़ों के कारण बलात्कार होता है. बलात्कार इसलिए होता है कि लोगों की सोच खराब हो चुकी है. 1920 के दशक में तो छोटे कपड़े नहीं होते थे, फिर भी लड़कियों के बलात्कार होते थे ना. फिर आप किसे दोष देंगे? अपनी सोच को बदलिए!" दीक्षा शर्मा ने भी सवाल किया कि क्या सलवार कमीज पहनने वाली लड़कियों का बलात्कार नहीं होता. जवाब में उन्हें पुरुषों के अपशब्दों का सामना करना पड़ा. लड़कियों को उनकी जगह बताने का जिम्मा लेने वाले राजा प्रकाश कुमार ने ना केवल उन्हें गालियां दीं, बल्कि परिवार के सामने वस्त्रहीन हो कर बैठने की सलाह भी दी.

संस्कारों की बात

हालांकि ऐसा नहीं कि सभी पुरुष महिलाओं के बारे में ऐसी सोच रखते हों. आदित्य कुमार ने विस्तार में लिखा, "इसका सीधा संबंध सोच से ही है जिसके कई कारण हैं, जैसे कि भड़काऊ विज्ञापन, फिल्मों में परोसी जा रही अश्लीलता जो सीधे मानसिकता को प्रभावित करती है. छोटे कपड़े इसके लिए उत्तरदायी नही हैं. इसका बड़ा और अच्छा उदाहरण कुछ पश्चिमी देश हैं और इस सोच को बदलने के लिए भारतीय स्कूली शिक्षा में ही यह सोच परिवर्तित की जा सकती है, जो शुरू से ही बच्चों को ऐसे शिक्षित करें जिससे यह समस्या ही ना हो और नारी का सम्मान करना सिखाया जाए. इसमें माता पिता का सबसे अहम रोल होगा."

शिव कुमार भी इस सोच से इत्तिफाक रखते हैं. उन्होंने लिखा, "जहां तक मेरा मानना है, यह मां बाप के बच्चों को संस्कार देने पर निर्भर करता है. जो बच्चे संस्कारी होते है, वे किसी भी लड़की का बलात्कार नहीं कर सकते और रही बात छोटे कपड़ों की तो अगर कहीं कोई लड़की निर्वस्त्र भी कहीं मिल जाती है, तो संस्कारी व्यक्ति अपने कपड़ों से उसे ढक देगा लेकिन उसका बलात्कार नहीं करेगा. अगर बलात्कार को रोकना है तो अपने बच्चे संस्कारी बनाओ."

फिल्मों को दोष

बहुत से लोगों का मानना है कि टीवी, फिल्मों और विज्ञापन में दिखाई जाने वाली अश्लीलता बलात्कार के बढ़ते मामलों की वजह है. नमित मिश्रा का कहना है, "ब्लू फिल्म और भारतीय फिल्मों में अश्लीलता, लड़कियों के कम और बोल्ड कपड़े पहनने के ही कारण ये सब ज्यादा हो रहा है." इसके विपरीत राजेश बोस ने लिखा है, "बलात्कार एक मानसिक विकृति है. यह ना तो फिल्मों, विज्ञापनों और ना ही लड़कियों के अंग प्रदर्शनों की वजह से होता है. इसे रोकने के लिए लड़कों और लड़कियों को बेहतर पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों से अवगत कराना होगा."

जहां एक तरफ लोग लगातार बढ़ते आंकड़ों से परेशान हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रामप्रताप प्रजापति जैसे आशावादी लोग भी दिखे जिन्हें लगता है, "शुक्र है 99.75% भारतीय पुरुष संस्कारी हैं, वर्ना बलात्कार अपराध नहीं, कदम कदम पर सड़कों पर मिलने वाले गड्ढों के सामान छोटी मोटी दिक्कत जैसा होता."

ब्लॉग: ईशा भाटिया

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