भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपेरेंसी की भ्रष्ट देशों की ताजा सूची में भारत को नीचे आया देख थोड़ी राहत तो मिलती है मगर असलियत अब भी इस सूची के नाम जैसी ही लगती है. इस इंडेक्स को 'ग्लोबल करप्शन परसेप्शन' यूं ही नहीं कहते हैं बल्कि यह असल में किसी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की धारणा पर ही आधारित है.
जमीनी हकीकत और लोगों के अनुभव कई बार कोई और ही कहानी कहते हैं. कुल 175 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है. बात तो तब होती जब भारत सिर्फ इसी सूची में नहीं बल्कि विश्व कुपोषण रिपोर्टों, नवजातों की मृत्यु या फिर महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों के इंडेक्सों की भी सूची से बाहर होता. लेकिन पिछले सालों के मुकाबले कुछ बेहतर और पूरे दक्षिण एशिया में सबसे अच्छी रैंकिंग मिलना फिलहाल सांत्वना देने लायक है. सूची जारी करने वाली संस्था ने इसकी कई वजहें बताई हैं जिनमें सरकारी महकमों के उच्चस्तरीय अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामलों में हुई कार्रवाई और देश में नए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस दिशा में और सख्ती बरते जाने की उम्मीदें प्रमुख हैं.
जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र में एक एक कर भ्रष्ट लोगों पर नकेल कसने का सवाल है तो पिछले सालों में कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी सरकार में शामिल रहे कई मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर बख्शा नहीं था. चाहे मामला 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसे मंत्रियों का हो या फिर तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल से इस्तीफा लेने का. बंसल के भतीजे पर रिश्वत लेकर रेल बोर्ड में सदस्यों की नियुक्ति करने का आरोप लगा था. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ही तरह वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी भी ईमानदार व्यक्तिगत छवि वाली शख्सियत रहे हैं.
सत्ता में आने से पहले से ही काले धन को जिस तरह मोदी ने अपना बड़ा मुद्दा बनाया उससे भी इस धारणा को बल मिला कि नई सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाएगी. सरकार बनते ही उन्होंने न्यायालयों से भ्रष्ट नेताओं पर चल रहे मामलों की फास्ट ट्रैक सुनवाई करने की अपील की. मगर दूसरी ओर, इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि वर्तमान कैबिनेट में तमाम आपराधिक मामलों में आरोपित लोगों की तादाद पुरानी कांग्रेस सरकार के दागी मंत्रियों से करीब दोगुनी है. 66 सदस्यीय वर्तमान कैबिनेट के करीब एक तिहाई मंत्री आपराधिक धमकी, धोखाधड़ी तो कुछ दंगा भड़काने और बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों में घिरे हैं.
जटिल प्रशासनिक संरचना और लालफीताशाही के कारण भ्रष्टाचार का खतरा भारत में और भी ज्यादा बताया जाता है. ऐसे में नई सरकार ने कामकाज को कुशलता लाने के लिए मंत्रालयों के पुनर्गठन का काम किया. भ्रष्टाचार को मिटाने की दिशा में और आगे बढ़ने के लिए एंटी करप्शन बिल के कई लंबित बिंदुओं पर विचार करने और लोकपाल जैसी व्यवस्था को लागू करने से भी मदद मिल सकती है. हमें समझना होगा कि केवल आर्थिक विकास भ्रष्टाचार के कम होने की गारंटी नहीं है. मसलन चीन को लें, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने बताया है कि जिस दौरान चीन में तेजी से आर्थिक विकास हो रहा था उसी दौरान वह करप्शन परसेप्शन के मामले में काफी नीचे गिर गया.
1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भ्रष्टाचार को वैश्विक चलन कहा था. इस वक्तव्य के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री के ऐसी बात करने पर खेद जताया था. 1989 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया रहा. और तबसे लेकर आज तक चुनावी मौसम में भ्रष्टाचार मिटाने के दावे बढ़चढ़ कर उछाले जाना आम बात हो गई है. ऐसे में इन दावों की कलई तब खुलती है जब भारत सूची में बुर्किना फासो, जमैका, पेरु और जाम्बिया जैसे देशों के स्तर पर पाया जाता है.
ब्लॉग: ऋतिका राय