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मुंबई हमलों में आईएसआई का सीधा हाथ?

शामिल शम्स/आरआर११ फ़रवरी २०१६

मुंबई हमलों के अभियुक्त डेविड हेडली की अदालत को दी गई गवाही में हुए खुलासे इस्लामाबाद पर दबाव बढ़ा सकते हैं. लेकिन क्या वाकई आईएसआई के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं?

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

पाकिस्तानी-अमेरिकी अभियुक्त हेडली ने एक बार फिर पाकिस्तानी अधिकारियों खासकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में रहने की बात कही है. 55 साल के हेडली ने भारतीय अदालत को दी वीडियो गवाही में बताया कि पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा को आईएसआई ने "नैतिक, सैनिक और आर्थिक सहयोग" दिया. लश्कर पर ही 2008 के मुंबई हमलों की योजना बनाने का आरोप है जिसमें 166 लोग मारे गए थे.

David Headley zu 35 Jahren verurteilt
डेविड हेडली को अमेरिकी कोर्ट ने सुनाई 35 साल जेल की सजातस्वीर: AP

अमेरिकी कोर्ट द्वारा 2013 में 35 साल की जेल की सजा सुनाए जाने के बाद बीते दिसंबर में हेडली को मुंबई मामले में भारत ने इस शर्त पर माफी दी कि वह भारतीय अदालत में गवाही देगा और इसी सिलसिले में दी गवाही में उसने मुंबई हमलों से जुड़ी जानकारी दी.

कटुता का एक स्रोत

भारत मुंबई हमलों के पीछे लश्कर का हाथ मानता है, वहीं इस्लामाबाद भी ये मानता है कि पाकिस्तान में प्रतिबंधित आतंकी समूहों ने पाकिस्तान के भीतर रहते हुए मुंबई हमलों की योजना बनाई. लेकिन इसमें पाकिस्तानी सरकार का हाथ होने से इनकार करता है.

लश्कर के पाकिस्तान में बैन होने के बावजूद हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी जैसे उसके कई नेता आजाद हैं. वे इस्लामी चैरिटी समूह चलाने के लिए और देश भर में सार्वजनिक रैलियां करने के लिए स्वतंत्र हैं. कुछ जानकार ऐसा मानते हैं कि इन लश्कर नेताओं को आईएसआई का संरक्षण मिला हुआ है, जिस दावे को पाकिस्तानी प्रशासन नहीं मानता. दोनों पड़ोसी देशों के बीच इस पर कटुता बनी हुई है कि इस्लामाबाद उन्हें सईद और लखवी को क्यों नहीं सौंप रहा. हेडली के ताजा बयानों से इस्लामाबाद का और झेंपना तय है.

क्या इस्लामाबाद करेगा भारत से सहयोग?

हेडली के आईएसआई के सीधे हस्तक्षेप वाले दावों के बाद क्या इस्लामाबाद लश्कर और उसके नेताओं के पीछे जाएगा? इस सवाल पर इस्लामाबाद के ही एक पत्रकार अब्दुल आगा ने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा. एक तो हेडली ने कोई नई बात नहीं कही है. दूसरे, लश्कर ए तैयबा के नेताओं को गिरफ्तार कर उन्हें भारत को सौंपने का मतलब सार्वजनिक रूप से यह कबूल करना माना जाएगा कि पाकिस्तान प्रशासन का मुंबई हमलों में हाथ था. इससे तो भानुमति का पिटारा खुल जाएगा."

आगा बताते हैं, "पाकिस्तानी सेना जिसके हाथों में असली ताकत है, वो तो आने वाले समय में अपनी भारत-विरोधी नीतियां बदलता नहीं दिखता. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार भारत के साथ बेहतर संबंध चाहती है लेकिन वे भी इस मामले में ज्यादा आगे नहीं जा सकते."

गलती मानना उसे सुधारने का पहला कदम

अमेरिका में रहने वाले पत्रकार और लेखक आरिफ जमाल का मानना है कि "पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका की ओर से सचमुच का दबाव ना होने के कारण ही, पाकिस्तानी सेना अपनी खुफिया एजेंसी से आतंकी संगठनों को मिल रहे समर्थन को नहीं रोक पाई है." जमाल पाकिस्तान और इस्लामी आतंक के विषय पर कई किताबें लिख चुके हैं.

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि एक एक कर सामने आते सबूतों, गवाहियों और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बढ़ने से ही इस्लामाबाद भारत-विरोधी आतंकी समूहों का समर्थन छोड़ेगा. पत्रकार आगा कहते हैं, "जब तक आईएसआई को नागरिक सरकार के नियंत्रण में नहीं लाया जाता और इस्लामाबाद जिहादी गुटों का साथ नहीं छोड़ता, तब तक भारत-पाकिस्तान के बीच सही मायनों में शांति नहीं होगी."