क्या भ्रष्टाचार वेलवेट क्रांति के नतीजों को पलट देगा
१३ नवम्बर २०१९यह वो वक्त था जब तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ समर्थित निरंकुश शासन व्यवस्था चार दशकों से देश पर राज कर रही थी. साल 1989 की वेलवेट क्रांति का आगाज हुआ और देश में साम्यवादी सरकार के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन और आम हड़ताल शुरू हो गया. चेकोस्लोवाकिया तब सैनिक गठबंधन वारसॉ पैक्ट का सदस्य था. शांतिपूर्ण आंदोलनों की आंधी में निरंकुश सरकारें ही नहीं गिरी, शीतयुद्ध और उसके साथ वॉरसा पैक्ट का भी अंत हो गया.
हालांकि राजनीति से साम्यवाद कभी गायब नहीं हुआ और आज फिर यह लोकलुभावन राजनीति करने वाली ताकतों के साथ मिलकर आज के चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया में सत्ता की दौड़ में शामिल हो गया है. वेलवेट क्रांति के सबसे प्रमुख नेताओं में एक रहे स्लोवाक अभिनेता मिलान कनाज्को कहते हैं, "साम्यवाद की विरासत स्लोवाकिया में आज भी मौजूद है और भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है. झूठ, भ्रष्टाचार, पाखण्ड, धमकी और लोगों के साथ बदमाशी यह सब साम्यवादी तौर तरीके हैं जो आज यहां हर जगह दिखाई देती हैं." चेक गणराज्य में अब पेंशन पाने वाले कामिल मिरोस्लाव केर्नी 1989 के विपक्षी गुट में शामिल थे. उनका कहना है, "हम आज भी आजादी, कानून व्यवस्था, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की शर्तों पर खरे नहीं उतर सके हैं."
पहले साम्यवादी रहे और वर्तमान में पॉपुलिस्ट चेक प्रधानमंत्री आंद्रेइ बाबिस का नाम 1980 के दशक में खुफिया पुलिस की फाइलों में एजेंट के रूप में मिलता है. अरबपति बाबिस इससे साफ इनकार करते हैं. उनकी अल्पमत सरकार साम्यवादियों के अनौपचारिक समर्थन पर टिकी है. 200 सदस्यों वाले संसद के निचले सदन में कम्युनिस्ट पार्टी के 15 सदस्य हैं. बाबिस भ्रष्टाचार और हितों के टकराव के आरोपों में भी घिरे हैं. फार्मिंग, मीडिया और केमिकल उद्योग से जुड़ी कंपनी एग्रोफेर्ट को लेकर उनपर कई आरोप हैं.
इसी साल जून में प्राग के केंद्र में बाबिस के इस्तीफे की मांग को लेकर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. मीडिया रिपोर्टों में करीब ढाई लाख लोगों के पहुंचने की बात कही गई. वेलवेट क्रांति के बाद यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरे. प्रदर्शन के आयोजक मिलियन मोमेंट फॉर डेमोक्रैसी मूवमेंट का कहना है कि वह 16 नवंबर को वेलवेट क्रांति की सालगिरह पर इसी तरह के विरोध प्रदर्शन की तैयारी में हैं. मुख्य आयोजक मिकलाउस मिनार ने इस हफ्ते कहा,"हम आंद्रेइ बाबिस के लिए अंतिम शर्त रखेंगे, या तो हितों के टकराव को खत्म करें या प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दें."
रॉबर्ट फिको स्लोवाकिया की सत्ताधारी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता हैं, वह सरकार में नहीं हैं लेकिन माना जाता है कि सरकार के बड़े फैसले वही करते हैं. 2018 की शुरुआत में खोजी पत्रकार यान कुचियाक की क्रूर हत्या के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ने पर विवश होना पड़ा. कुचियाक ने फिको प्रशासन के कुछ अधिकारियों के इटली के माफियाओं से कथित संबंधों के बारे में खबर दी थी.
कुचियाक की हत्या के बाद स्लोवाकिया में भारी प्रदर्शन हुए जो वेलवेट क्रांति के बाद सबसे बड़े बताए जाते हैं. दसियों हजार लोग तो केवल ब्रातिस्लावा में ही प्रदर्शन के लिए जमा हुए. बाद में पता चला कि इस हत्या का संदिग्ध आदेश उद्यमी मारियन कोचनर ने दिया था और उनसे संबंध रखने के आरोपों में कई और अधिकारियों को भी इस्तीफा देना पड़ा.
तीस साल पहले 17 नवंबर 1989 को चेकोस्लोवाकिया की कम्युनिस्ट पुलिस ने प्राग में छात्रों के एक शांतिपूर्ण मार्च को बड़ी क्रूरता से कुचल दिया था. इसके नतीजे में लोग लोकतंत्र की मांग को लेकर अड़ गए और इसे वेलवेट क्रांति नाम दिया गया. दो दिन बाद ही लोग बड़ी संख्या में प्राग और ब्रातिस्लावा की सड़कों पर बड़ी संख्या में जमा हो गए और अगले कई दिनों तक वहीं डटे रहे.
आखिरकार कम्युनिस्टों को झुकना पड़ा और मशहूर विपक्षी नाटककार वात्स्लाव हावेल 1990 के लोकतांत्रिक चुनावों में बड़े नेता बन कर उभरे और चेकोस्लोवाकिया के राष्ट्रपति बने. तीन ही साल बाद देश का विभाजन हो गया. अलग होने के बाद 1993 में चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया दो देश बने और उन्होंने नाटो और यूरोपीय संघ की सदस्यता ले ली. 2009 में स्लोवाकिया तो यूरोजोन में भी शामिल हो गया.
इस दौरान कई राजनीतिक पार्टियों का उभार हुआ लेकिन वोटरों का धैर्य इन्हें लेकर खत्म हो रहा है. इसकी एक बड़ी वजह तो भ्रष्टाचार है. लोग अब धीरे धीरे साम्यवादी विरासत वाले राजनेताओं की तरफ ही मुड़ रहे हैं. चेक शहर ओलोमुक की पेलेकी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले राजनीतिक विश्लेषक थोमास लेबेडा कहते हैं, "उच्च स्तर की राजनीति में पूर्व शासन के साथ सहयोग पहले मंजूर नहीं था लेकिन अब उसके लिए भारी पैमाने पर स्वीकार्यता बढ़ रही है. ऐसी पार्टियों के लिए समाज में स्वीकार्यता बढ़ रही है और ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डाल सकती हैं."
फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक बाबिस चेक गणतंत्र के पांचवें सबसे अमीर शख्स हैं. उन्होंने 2013 में देश का वित्त मंत्री बनने के लिए संदिग्ध कारोबार और अपने साम्यवादी अतीत से कंधे झाड़ लिए थे. उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने की शपथ ली थी. 2013 के चुनाव में उनकी आनो (येस) पार्टी दूसरे नंबर पर आई थी और 2017 के चुनाव में वह जीत गए. उसके बाद से ही वह सर्वेक्षणों में आगे चल रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बाबिस के साथ करीब 30 फीसदी वोटर डटे हुए हैं.
उधर स्लोवाकिया में बीते एक दशक से ज्यादा वक्त फिको का शासन रहा. वह 2006-10 और 2012-18 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे. ताजा सर्वे के नतीजे बता रहे हैं कि फरवरी में होने वाली चुनाव में उनकी पार्टी सबसे आगे रहेगी. चेक गणतंत्र के राजनीतिक विश्लेषक यान कुबाचेक का कहना है, "मजबूत शख्सियतों का अतीत चाहे जैसा हो वो चुनाव जीत जाते हैं. क्रांति के बाद जो गैर साम्यवादी नए चेहरे थे वो नाकाम हो गए हैं और लोग विकल्प ढूंढ रहे हैं." ऐसा लगता है यहां साम्यवाद के दिन फिरने वाले हैं.
एनआर/एमजे (एएफपी)
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