1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या भारत एशिया में अक्षय ऊर्जा के भविष्य का अगुआ होगा?

वेस्ली रान
१५ दिसम्बर २०१८

दिग्गज एशियाई देश भारत और चीन ने पोलैंड में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के वैश्विक मंच का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया कि बिना जीवाश्म ईंधन के भी वे अपना आर्थिक विकास जारी रख सकते हैं.

https://p.dw.com/p/3AA5v
Indien Chhattisgarh Kraftwerk
तस्वीर: Ravi Mishra/Global Witness

काटोवित्से में जब अमेरिकी ट्रंप प्रशासन ने जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देने वाली कांफ्रेंस की मेजबानी की तो भारत ने कॉप24 का इस्तेमाल अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को दिखाने के लिए किया. चीन पहले ही वायु और सौर ऊर्जा की तकनीक के मामले में दुनिया का अगुआ बना हुआ है और वह हरित विकास के क्षेत्र में अपनी छवि को कायम रखने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है.

दोनों देश एक तरफ भारी प्रदूषण से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सस्ती ऊर्जा की चुनौती का सामना कर रहे हैं. भारत के लिए भविष्य की ऊर्जा का स्रोत सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा होगी. सरकार को उम्मीद है कि इनके दम पर अगले 10 सालों में वह कोयले पर अपनी निर्भरता काफी कम कर लेगी. 

UN-Klimakonferenz 2018 in Katowice, Polen
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press/Le Pictorium Agency/S. Souici

अंतर सरकारी संस्था ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रांक रिज्सबर्मन के मुताबिक चीन भले ही वायु और सौर ऊर्जा के विकास में अगुआ है लेकिन भारत के पास औद्योगिक अर्थव्यवस्था के विकास के शुरुआती चरण में होने का फायदा है. भारत कोयला या फिर परमाणु उर्जा पर निर्भर हुए बगैर भी विकास कर सकता है.

चीन को अपनी आर्थिक राजधानी से प्रदूषण फैलाने वाले बिजलीघर हटाने पड़ेंगे जो वह पहले ही बना चुका है लेकिन भारत शुरुआत से ही हरित अर्थव्यवस्था को विकसित करने पर काम कर सकता है. रिज्सबर्मन ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत बहुत सारे कोयले से चलने वाले बिजली घर बनाने जा रहा था लेकिन अब वह उसकी बजाय ज्यादा से ज्यादा अक्षय ऊर्जा बनाने में जुटा है. पिछले साल उन्होंने कई ठेके वापस कर दिखा दिा कि बड़े सौर बिजली घर जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोत कोयले से सस्ते है. तो उनके लिए कोयले से चलने वाले बिजली घर बनाने का कोई औचित्य नहीं है."

कोयला अब भी राजा

भारत भले ही कोयला से चलने वाला नया बिजलीघर नहीं बना रहा लेकिन पहले से चल रहे बिजलीघरों को चलाने के लिए भी काफी निवेश करना पड़ रहा है. जब आप फैक्ट्रियों को चलाने वाली, सड़कों पर रोशनी करने वाली और घरों को चलाने वाली ऊर्जा के स्रोत की बात करें तो भारत जीवाश्म ईंधन पर अब भी बहुत ज्यादा निर्भर है. भारत के केंद्रीय बिजली प्राधिकरण के मुताबिक देश की बिजली क्षमता का 60 फीसदी अब भी कोयले पर निर्भर है. ऊर्जा के इस भार में इस बात का विचार नहीं किया जाता कि ढुलाई, गर्म करने और ठंडा करने में कितनी ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न होती है.

Frankreich Katowice - COP 24
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MAXPPP/F. Dubray

अक्षय ऊर्जा की ओर जब जाने की बात होती है तो एक डरावनी तस्वीर उन लोगों की भी उभरती है जिनका जीवन जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से चलता है. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक साल 2018 में भारत ने अप्रैल से नवंबर के बीच करीब 15.6 करोड़ टन कोयले का आयात किया.

भारत के कुल उत्सर्जन में भी काफी इजाफा हुआ है. पिछले हफ्ते ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट नाम के एक गैरसरकारी संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की. इसके मुताबिक भारत में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 6.3 फीसदी बढ़ गया है जो चीन और अमेरिका से भी ज्यादा है.

रिज्सबर्मन कहते हैं, "आपको याद रखना होगा कि दुनिया में उर्जा की खपत का महज 20 फीसदी ही बिजली से आता है. भारत में ज्यादातर बसें डीजल से चलती हैं. ऐसे में वे केवल ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि कई और क्षेत्रों में प्रदूषण फैला रही हैं." रिज्सबर्म ने इसके साथ ही कहा कि घरों को गर्म या फिर ठंडा करने में भी बहुत सारी ग्रीनहाउस का उत्सर्जन होता है और यहां बदलाव की रफ्तार बहुत धीमी है. उन्होंने कहा, "वे बहुत तेजी से अक्षय ऊर्जा को अपनाने जा रहे हैं लेकिन वो दूसरे क्षेत्रों में तब भी बड़े प्रदूषण फैलाने वाले रहेंगे."

भविष्य सूरज का?

Polen - 24. Weltklimakonferenz in Katowice - COP24
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Dubray

भारत फिलहाल भले ही प्रदूषण को रोक पाने में असमर्थ है लेकिन एक साफ सुथरे भविष्य और देश की उर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा पर दांव लगा रहा है. अंतरराष्ट्रीय सोलर गठबंधन के महानिदेशक उपेंद्र त्रिपाठी ने डीडब्ल्यू से कहा कि सौर ऊर्जा के लिए धन और बिजली के भंडारण की समस्या सरकार की मदद से पूरी हो रही है.

कोयले पर निर्भर समुदाय अपना रोजगार छिनने के डर से चिंतित हैं और अक्षय ऊर्जा के लिए यह एक बड़ी चुमौती है लेकिन भारत फिर भी इस बदलाव को खुशगवार बनाने के लिए काम कर रहा है. त्रिपाठी ने बताया, "2015 में सरकार ने 100 गीगावाट सौर ऊर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखा था, 2015 से 2018 के बीच 23 गीगावाट बिजली आने लगी है. हर एक मेगावाट सौर उर्जा का मतलब है कि सड़क पर से 50 गाड़ियों का हट जाना."

रिज्सबर्मन कहते हैं, "2017 भारत के लिए बड़ा बदलाव लेकर आया, तब बड़े स्तर के बिजली घर कारोबारी रूप से सक्रिय हो गए. भारत हरित विकास के लिए बहुत फायदेमद है. निजी क्षेत्र से अरबों डॉलर का निवेश बड़े सौर ऊर्जा के बिजली घरों में किया जा रहा है.

क्या दूसरे एशियाई देश भी अक्षय ऊर्जा पर भरोसा करेंगे?

भारत ने यह दिखाया है कि कैसे सौर ऊर्जा को फायदेमंद बनाया जा सकता है. एशिया के उभरते देशों को अभी इस बात पर रजामंद करना होगा कि अक्षय ऊर्जा फायदेमंद हो सकती है. रिज्सबर्मन कहते हैं, "वे जानते हैं कि हरित विकास बेहतर है, लेकिन उन्हें यह भी जानना होगा कि वे इसका खर्च उठा सकते हैं. वे कहते हैं कि हम कम आय वाली अर्थव्यवस्था हैं और पश्चिमी देश सारा उत्सर्जन पैदा करते हैं, तो हमें भी हमारी अर्थव्यवस्था को विकसित करने का अधिकार है."

हालांकि फिर भी अगर भविष्य में एशिया का विकास ऐसी उर्जा के सहारे हो सका जो जलवायु परिवर्तन नही लाता तो भी दुनिया में उत्सर्जन पहले की तुलना में ज्यादा होता रहेगा. 2018 में अब तक उत्सर्जन की सबसे ज्यादा मात्रा दर्ज की गई है.

रिज्सबर्मन कहते हैं, "उत्सर्जन घटाने में यूरोप एशिया से आगे है. नई तकनीकों को विकसित करने और उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने में एशियाई देश आगे हैं लेकिन आंशिक रूप से ही क्योंकि वे अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं. भले ही वे हरित तकनीक को तेजी से ला रहे हैं लेकिन वो फिर भी सबसे बड़े प्रदूषक हैं."

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी