क्या कहना चाहते थे कोलोन के इमाम?
२५ जनवरी २०१६कोलोन के इमाम समी अबु यूसुफ नए साल की रात कोलोन में हुई घटना पर रूसी चैनल के साथ बातचीत के बाद सुर्खियों में आ गए. उस रात सैकड़ों लड़कियां अरब और उत्तर अफ्रीकी इलाके के नौजवानों के हाथों यौन दुर्व्यवहार और चोरी का शिकार हुईं. रेन टीवी के पत्रकार ने महिलाओं के बारे में इमाम की टिप्पणियों का अनुवाद इस तरह किया, "यदि वे अर्द्धनग्न होकर घूमेंगी और इत्र लगाएंगी, तो कोई ताज्जुब नहीं कि ऐसी घटनाएं होंगी."
अनुवाद का दोष
समी अबु युसूफ का कहना है कि उनकी बात अनुवाद में खो गयी और कुछ और ही मतलब निकल आया. उन्होंने कोलोन के एक्सप्रेस दैनिक से कहा कि वे कुछ और कहना चाहते थे, "महिलाएं कम कपड़ों में थीं और उन्होंने परफ्यूम लगा रखा था, जब वे पिये हुए लोगों की भीड़ से गुजरीं. यह उत्तर अफ्रीका के कुछ नौजवानों के लिए उन्हें जबरदस्ती छूने का मौका था. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं यह मानता हूं कि लड़कियां को ऐसी पोशाक नहीं पहननी चाहिए. हर किसी को इसे स्वीकार करना होगा. और जिसे यह अच्छा नहीं लगता उसे दूसरे देश चले जाना चाहिए." अब पुलिस ग्रीन पार्टी के सांसद फोल्कर बेक द्वारा दायर एफआईआर के बाद इसकी जांच कर रही है कि क्या इमाम ने रूसी चैनल को भी इसी तरह से बात कही थी.
जर्मनी में बहुत से लोग कोलोन में हुई घटना के लिए इस्लाम को जिम्मेदार मानते हैं. और वे पूरी तरह गलत भी नहीं हैं क्योंकि इसके लिए इस्लाम भी जिम्मेदार है. उसकी अंतरनिहित सेक्सिस्ट सोच नहीं बल्कि वर्गीकृत संरचना का अभाव. साफ साफ कहें तो मुसलमानों का बहुमत नए साल की रात में हुई वारदातों की निंदा करता है. लेकिन फिर भी समस्या यह है कि कोलोन के यौन हमलों की उच्च धार्मिक स्तर पर निंदा नहीं की गई है, और की भी नहीं जा सकती है.
धर्म की विकृत व्याख्या
जब तक खासकर सुन्नी संप्रदाय का कैथोलिक धर्म की ही तरह पोप जैसा प्रमुख नहीं होगा, जो इस्लाम की सबके लिए लागू होने वाली व्याख्या करे, धार्मिक झाड़ का बढ़ना जारी रहेगा. इसका क्या नतीजा हो सकता है, यह सऊदी अरब की मिसाल दिखाता है जो सुन्नी दुनिया का स्वघोषित नेता है. वहां मुहम्मद सालेह अल मुनज्जिद एक सलाफी वेबसाइट चलाते हैं, जो इस संप्रदाय की दस सबसे ज्यादा क्लिक की जाने वाली वेबसाइटों में एक है. वहां हाल में एक यूजर ने अल मुनज्जिद से पूछा कि क्या विवाहित पुरुष "गुलाम महिलाओं" के साथ सेक्स कर सकते हैं. यहां गुलाम महिलाएं वहां घरों में काम करने वाली एशियाई कामगारों के लिए इस्तेमाल किया गया है. धार्मिक गुरु का जवाब था, "हां, बिलकुल, बेशक."
ऐसी ही विकृत सोच आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट का भी वैचारिक आधार है. यह सजा का डर ना होने के कारण आईएस के सदस्यों को महिलाओं का बलात्कार करने की छूट देता है, यजीदियों और दूसरी कैद महिलाओं का बलात्कार. आईएस के सदस्यों का कहना है कि वे ऐसा अल्लाह के आशीर्वाद से कर रहे हैं. अपने अपराध को धार्मिक पुस्तकों के हवाले से उचित ठहराने वाले लोग दूसरे धर्मों में भी हैं. युगांडा में जोसेफ कोनी ईसाई धर्म के आधार पर धार्मिक राज्य बनाने की कोशिश कर रहा था. चिली में पॉल शेफर ने कोलोनिया डिग्नीदाद के समर्थकों को प्राचीन ईसाई जीवन के सपने दिखाए थे. इसमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा उसके लिए स्वाभाविक बात थी.
संदिग्धता के प्रति सहिष्णुता
जहां तक आईएस का सवाल है, मुसलमानों का भारी बहुमत उसकी निंदा करता है. बहुत से इमामों ने आईएस की करतूतों की भर्त्सना की है. लेकिन चूंकि इस्लाम के सुन्नी संप्रदाय में सबके लिए बाध्यकारी व्याख्या करने वाली सर्वोच्च सत्ता का अभाव है, यह जैसी चाहें वैसी व्याख्या की संभावना देता है. जर्मनी में इस्लाम धर्मशास्त्र के विद्वान इसे संदिग्धता के प्रति सहिष्णुता बता कर तारीफ करते हैं. लेकिन विवादास्पद इमामों की व्याख्या की आजादी अत्यंत धुंधली राह पर भी ले जा सकती है.
इसलिए जर्मन आबादी का बड़ा हिस्सा काफी चिंतित है. हो सकता है कि समी अबु युसूफ की बातों का गलत अनुवाद हुआ हो, कि वे नए साल की रात की घटनाओं को उचित नहीं ठहराते, और सिर्फ उसकी गत्यात्मकता को समझने में योगदान देना चाहते थे. इसलिए अच्छी बात है कि अब पुलिस इसकी जांच पड़ताल कर रही है. लेकिन कोलोन वाले मामले से परे भी जर्मनी अपने यहां रहने वाले मुसलमानों को स्पष्टीकरण का कर्जदार है. मुख्य रूप से कानूनी राज्य की अपनी पहचान के लिए भी उसे इस स्पष्टीकरण की जरूरत है. घृणा फैलाने वाले धर्मगुरुओं को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
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