1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या देशद्रोह कानून को मिटाने का वक्त आ गया?

१६ जनवरी २०१९

भारत में विपक्षी दल और मीडिया में अंग्रेजों के जमाने के देशद्रोह से जुड़े कानून को खत्म करने की मांग उठ रही है. यह वही कानून है जिसके तहत जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार और उनके दोस्तों पर आरोप लगाए गए हैं.

https://p.dw.com/p/3Bdm1
Indien Studentinen
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

पुलिस ने 1870 में बने इस कानून के तहत 10 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया है. पुलिस का कहना है कि 2016 में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक सभा के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए गए. छात्र इन आरोपों से इनकार करते हैं. इन छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर आम चुनाव से पहले हिंदू राष्ट्रवादियों को खुश करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बंदिश लगाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल का कहना है, "आज के दौर में देशद्रोह कानून की जरूरत नहीं है, यह औपनिवेशिक दौर का कानून है. बहुत से लोगों पर सिर्फ सरकार के खिलाफ बोलने या फिर ट्वीट करने के लिए देशद्रोह के आरोप लगाए जा रहे हैं, केंद्र सरकार नागरिकों पर नियंत्रण के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है." 

Indien Proteste JNU Campus Neu Delhi Kanhaiya Kumar Student
2016 में कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया था फिलहाल वो जमानत पर हैं.तस्वीर: Reuters

2016 में जेएनयू की सभा में छात्र नेता कन्हैया कुमार भी शामिल थे. यह सभा कश्मीरी अलगाववादी अफजल गुरू की फांसी का विरोध करने के लिए बुलाई गई थी. अफजल गुरू को 2001 में संसद पर हुए हमलों के लिए अदालत ने दोषी करार दिया था. हालांकि कन्हैया कुमार के वकीलों का कहना है कि उन्होंने हिंसा के इस्तेमाल से इनकार किया था और कोई ऐसा अनुचित बयान नहीं दिया. कन्हैया के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने दक्षिणपंथी छात्र गुटों की आलोचना की थी.

दिल्ली के थिंक टैंक ऑब्जर्वर फाउंडेशन से जुड़े मनोज जोशी ने टेब्लॉयड मेल टुडे में लिखा है, "फरवरी 2016 में जेएनयू के छात्रों ने कथित रूप से "भारत विरोधी नारे" लगाए और उसके तीन साल के बाद चुनाव से ठीक पहले उन पर आरोप लगाए गए हैं. इससे तो यही लगता है कि इसके पीछे उद्देश्य राजनीतिक है."

मोदी की पार्टी से जुड़े राष्ट्रवादी लंबे समय से कश्मीर पर कड़ा रुख अख्तियार करने की मांग करते रहे हैं. उनका कहना है कि तुष्टिकरण की नीति से भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है. देशद्रोह के खिलाफ कानून में उम्र कैद तक की सजा हो सकती है.

आर्थिक मामलों से जुड़े प्रमुख अखबार इकोनॉमिक टाइम्स का कहना है, "आजाद भारत को पास खुद पर इतना भरोसा होने चाहिए कि 1947 के पहले पुलिस की सत्ता के लिए बने देशद्रोह कानून को खत्म कर सके और अपने नागरिकों को डराए बगैर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लागू कर सके."

पुलिस पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में पिछले महीने एक महीने से एक शिक्षाविद, एक पत्रकार और एक किसान के नेता के खिलाफ संभावित देशद्रोह का आरोपों की छानबीन कर रही है. इन लोगों का कसूर बस इतना है कि इन्होंन पड़ोसी देशों से आने वाले गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने की योजना का सार्वजनिक रूप से विरोध किया था.

भारत के प्रमुख अखबार हिंदुस्तान टाइम्स का कहना है, "इस कानून को अब खत्म होना चाहिए. एक परिपक्व और उदार लोकतंत्र अपने नागरिकों से नहीं लड़ सकता."

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें