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समाज

कोरोना की सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर

प्रभाकर मणि तिवारी
३१ मार्च २०२०

युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की हालत में महिलाएं और बच्चे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. दुनिया भर में महामारी का रूप लेने वाला कोरोना वायरस भी इसका अपवाद नहीं है. भारत में लंबे लॉकडाउन की वजह से महिलाओं पर दबाव है.

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Indien Coronavirus Lockdown Frauen Kalkutta
तस्वीर: DW/P. Tewari

यह बात अलग है इसकी चपेट में आने वालों में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की तादाद ज्यादा है. लेकिन इस बीमारी के महामारी में बदलने से भारतीय परिवारों में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित है तो वह महिलाएं ही हैं. 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान पति व बच्चों के चौबीसों घंटे घर पर रहने की वजह से उन पर कामकाज का बोझ पहले के मुकाबले बढ़ गया है. इसके साथ ही घरेलू नौकरानियों के छुट्टी पर जाने की वजह से समस्या और गंभीर हो गई है. अब उनको कामवाली के तमाम काम भी संभालने पड़ते हैं. नौकरीपेशा महिलाओं की मुश्किलें भी कम नहीं हैं. अब उनको एक ओर घर से काम करना पड़ रहा है और दूसरी ओर घर का भी काम करना पड़ रहा है. कई महिला अधिकार संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर शहरी और ग्रामीण महिलाओं के बड़े समूह को भी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में शामिल करने का अनुरोध किया है.

बढ़ता दबाव

21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जहां बच्चों को स्कूल से छुट्टी मिल गई है और कई नौकरीपेशा लोगों को दफ्तर नहीं जाने और घर से काम नहीं करने का मौका मिल गया है वही लाखों की तादाद में नौकरीपेशा महिलाओं की समस्याएं दोगुनी हो गई हैं. अब उनको घर से काम करने के साथ ही घर का भी सारा काम संभालना पड़ रहा है. कोरोना वायरस का आतंक बढ़ने के बाद महानगरों और शहरों की तमाम हाउसिंग सोसायटियों और कालोनियों में घरेलू काम करने वाली नौकरानियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी. कइयों ने डर के मारे खुद ही आने से मना कर दिया. इसकी वजह से महिलाओं को अब झाडू-पोंछा से लेकर कपड़े धोने तक के तमाम काम भी करने पड़ रहे हैं. आईटी कंपनी में नौकरी करने वाली सुनीता सेन कहती हैं, "यह बेहद मुश्किल दौर है. घर से दफ्तर का काम करना पड़ता है. उसके बाद पति और दो बच्चों को समय पर खाना-पीना देना और हजार दूसरे काम. लगता है पागल हो जाऊंगी.” सुनीता इस मामले में अकेली नहीं हैं. देश की लाखों महिलाएं उनकी जैसी हालत से जूझ रही हैं. कामवाली के बिना खान पकाना, साफ-सफाई और बच्चों की देख-रेख उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. यही वजह है कि ज्यादातर महिलाओं ने काम पर नहीं आने के बावजूद कामवालियों को वेतन देने का फैसला किया है.

Indien Coronavirus Lockdown Frauen Kalkutta
तस्वीर: DW/P. Tewari

खासकर मध्यवर्गीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता हावी होने की वजह से माना जाता रहा है कि घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चौका, बच्चों की देख-रेख और कपड़े धोने का काम महिलाओं का है, पुरुषों का नहीं. हालांकि अब कामकाजी दंपतियों के मामले में यह सोच बदल रही है. लेकिन अब भी ज्यादातर परिवारों में यही मानसिकता काम करती है. नतीजतन इस लंबे लॉकडाउन में ज्यादातर महिलाएं कामकाज के बोझ तले पिसने पर मजबूर हैं. समाज विज्ञान के प्रोफेसर रहे सुविनय सेनगुप्ता कहते हैं, "लॉकडाउन का एक लैंगिक पहलू भी है. लेकिन अब तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया है. ज्यादातर घरों में महिलाओं और पुरुषों के बीच कामकाज का बंटवारा समान नहीं है. पति-पत्नी दोनों के घर से काम करने की स्थिति में भी पत्नी को अपेक्षाकृत ज्यादा बोझ उठाना पड़ता है.” वह कहते हैं कि जो महिलाएं नौकरीपेशा नहीं हैं, उन पर भी दबाव दोगुना हो गया है. इसकी वजह है चौबीसों घंटे घर में रहने वाले पति और बच्चों की तीमारदारी.

उत्तर 24-परगना जिले के दमदम इलाके में रहने वाली सुमित्रा गिरी कहती हैं, "पहले पति और बच्चों के दफ्तर व स्कूल जाने के बाद शाम तक फुर्सत रहती थी. लेकिन अब तो दिन भर मुझे या तो रसोई में रहना पड़ता है या फिर घर की साफ-सफाई और दूसरे कामों में. जीवन बहुत कठिन हो गया है.”

रोजाना बिना मेहनताना वाले काम

आर्गेनाइजेशन आफ इकोनॉमिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट की ओर से वर्ष 2015 में किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया था कि भारतीय महिलाएं दूसरे देशों के मुकाबले रोजाना औसतन छह घंटे ज्यादा ऐसे काम करती हैं जिनके एवज में उनको पैसे नहीं मिलते. जबकि भारतीय पुरुष ऐसे कामों में एक घंटे से भी कम समय खर्च करते हैं. प्रोफेसर सेनगुप्ता कहते हैं कि सामान्य हालात में नौकर-चाकर, माली, ड्राइवरों और बच्चों की आया की मौजूदगी की वजह से महिलाओं पर काम के बोझ का पता नहीं चलता. क्वार्ट्ज पत्रिका की एशिया एडिटर तृप्ति लाहिड़ी ने वर्ष 2017 में अपनी पुस्तक मेड इन इंडिया (भारत में कामवाली) में लिखा था कि उच्च मध्यवर्ग परिवारों में कई नौकर रखे जाते हैं. चार लोगों के परिवार में इतने ही काम करने वाले हो सकते हैं.

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तस्वीर: DW/P. Tewari

कोरोना के चलते कामवालियों और ऐसे दूसरे हेल्परों की गैर-मौजूदगी ने महिलाओं की मुसीबतें कई गुनी बढ़ा दी हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्व-सहायता समूहों की महिला सदस्यों के लिए तीन महीने तक पांच सौ रुपए महीने की नकद सहायता के अलावा कई अन्य उपायों का एलान किया है. कई राज्य सरकारों ने भी खासकर महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता के साथ खाने-पीने का सामान मुफ्त देने का एलान किया है. लेकिन महिला संगठनों की राय में यह नाकाफी है.

एक महिला संगठन की प्रमुख जानकी नारायण कहती हैं, "लॉकडाउन का महिलाओं पर गंभीर असर होगा. देश के ग्रामीण इलाकों के पुरुष सदस्य कमाने के लिए बाहरी राज्यों में जाते रहे हैं. लॉकडाउन की वजह उनके वापस नहीं लौट पाने के कारण परिवार में बच्चों और बुजुर्गों की देख-रेख और खान-पान की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होगी. यानी उनको राशन भी लाना होगा और खाना पका कर सबको समय पर खिलाना भी होगा.” वह कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को खेतों में भी काम करना पड़ता है. इसका असर उनके स्वास्थ्य पर हो सकता है. देश में महिलाओं की बड़ी आबादी पहले से ही कुपोषण की शिकार रही है. लाकडाउन के दौरान कुपोषण का यह स्तर तेजी से बढ़ेगा.

प्रधानमंत्री से मांग

कई महिला अधिकार संगठनों ने प्रधानमंत्री को भेजे एक पत्र में महिलाओं के लिए तत्काल सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का एलान करने का अनुरोध किया है. इन संगठनों ने दैनिक मजदूर, असंगठित क्षेत्र और प्रवासी मजदूरों को भी इन योजनाओं में शामिल करने को कहा है. पत्र भेजने वालों में आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन समेत आठ संगठन शामिल हैं. उन्होंने कोरोना और उसकी वजह से जारी लंबे लॉकडाउन के चलते महिलाओं के सामने पैदा होने वाली मुश्किलों पर गहरी चिंता जताई है. पत्र में कहा गया है कि खासकर अकेली महिलाओं, विधवाओं, दैनिक मजदूरी करने या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली और ऐसे परिवारों जिनकी कमान महिलाओं के हाथों में है, को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिली है. उनके सामने कामकाज के दोहरे बोझ के साथ ही वित्तीय संकट भी है. पत्र में इन तबके की महिलाओं को एकमुश्त पांच-पांच हजार रुपए की सहायता देने की अपील की गई है.

महिला कार्यकर्ता सुचित्रा कर्मकार कहती हैं, "युद्ध या दैवीय आपदाओं में महिलाओं को ही सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कोरोना के कारण जारी यह लंबा लॉकडाउन ऐसी तमाम आपदाओं पर भारी साबित हो रहा है. गांव, शहर, गृहिणी या कामकाजी, कोई भी महिला इससे सुरक्षित नहीं है. मौजूदा हालात में सरकार को इस आधी आबादी की सेहत और सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए.”

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