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कोयले के कालिख से हाथ धोने की जल्दी में जर्मनी

१७ जनवरी २०२०

जनता और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दबाव के चलते जर्मनी ने भूरे कोयले से चलने वाले बिजली घरों को पूरी तरह बंद करने की अंतिम समय सीमा और घटा दी है. जर्मनी ने अब 2035 तक ही कोयले को इतिहास बनाने की विस्तृत योजना बना ली है.

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Bergheim - Greenpeace Projektion auf Kühlturm des Kraftwerks in Niederaussem
तस्वीर: Imago/CoverSpot/B. Lauter

राजधानी बर्लिन में पत्रकारों से बातचीत में जर्मनी की पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने कहा, "कोयले से बाहर निकलना अभी से शुरू हो रहा है और यह करना ही है." पहले 2038 तक कोयला आधारित पावर प्लांटों को पूरी तरह बंद करने की बात कही गई थी लेकिन अब इसे तीन साल और जल्दी पूरा करने की योजना है. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल और चार जर्मन राज्यों के प्रमुखों ने मिलकर उनके यहां चल रहे बिजलीघरों के "शटडाउन प्लान" पर सहमति बना ली है. यह राज्य हैं - सैक्सोनी-आनहाल्ट, सैक्सोनी, नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया और ब्रांडेनबुर्ग. इन चारों राज्यों को पूरी योजना के दौरान 40 अरब यूरो (44.7 अरब डॉलर) दिए जाएंगे.

इस पूरी योजना को एक कानून के मसौदे के रूप में लिखा जाएगा और जनवरी के अंत तक पेश किया जाएगा. इस बीच सरकार ने साल 2020 में बंद होने जा रहे कोयला आधारित बिजली घर चलाने वाली कंपनियों को 4.35 अरब यूरो (4.9 अमेरिकी डॉलर) का मुआवजा देने की घोषणा की है. जर्मन वित्त मंत्री ओलाफ शोल्त्स ने कहा है कि यह भुगतान "बंद होने के 15 सालों तक किश्तों में दिया जाएगा."

इस मुआवजे का बड़ा हिस्सा नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में कोयला आधारित पावर प्लांट चलाने वाली एक बड़ी कंपनी आरडब्ल्यूई को मिलना है. कंपनी को 2.6 अरब यूरो मिलने हैं जबकि उसने खुद करीब 3.5 अरब यूरो के नुकसान का अनुमान लगाया है. इस ऊर्जा कंपनी में कम से कम 3,000 नौकरियां खत्म होंगी और 2020 तक समय से पहले रिटायर होने वालों को मिलाकर करीब 6,000 नौकरियां जाएंगी. यह इस कंपनी के कुल वर्कफोर्स का करीब 60 फीसदी हिस्सा है. ये लोग ज्यादातर भूरे कोयले से जुड़े काम में लगे थे. कमोबेश ऐसा ही हाल ज्यादातर कंपनियों का है.

सन 2038 तक कोयला वाले प्लांटों को बंद करने की बात करीब एक साल से चल रही थी. लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दबाव बनाने से उसे तीन साल और कम कर दिया गया है. इस कदम को भी नाकाफी बताते हुए भूरे कोयले का विरोध करने वाले एक गुट एंडेगेलैंडे ने ट्वीट में लिखा: "कोयला छोड़ने के रास्ते में कोई तकनीकी अड़चन नहीं है... यह सीधे सीधे राजनीतिक इच्छाशक्ति का सवाल है... 2035 भी बहुत लेट है!" पहले इस योजना से भूरे कोयले को बाहर रखा गया था लेकिन अब पहली बार विस्तार से बताया गया है कि कब और कैसे कैसे भूरे कोयले से चलने वाले प्लांटों को बंद किया जाएगा. इसके अलावा योजना में प्राचीन हामबाख जंगल को काटे जाने पर भी रोक लगाना भी शामिल है जो एक तरह से जर्मनी के कोयला-विरोधी आंदोलन का प्रतीक बन गया था.

Hambacher Forst Aktivisten im Regen
तस्वीर: Reuters/W. Rattay

जर्मनी पहले ही फैसला कर चुका है कि साल 2022 तक ही परमाणु ऊर्जा से चलने वाले बिजली घरों को भी बंद कर दिया जाना है. देश की कुल बिजली आपूर्ति में फिलहाल एक तिहाई हिस्सा परमाणु ऊर्जा वाले बिजली घरों से ही आता है. कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कभी कभी संक्रमण काल के दौरान ही किया जाता है. इस तरह जर्मनी दुनिया का पहला देश बन सकता है जो बिजली बनाने के लिए परमाणु और कोयले से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं करता. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए जर्मनी उन परियोजनाओं को बंद करने के अलावा अक्षय ऊर्जा में बहुत भारी निवेश करेगा.

जर्मनी में सामान्य कोयले से चलने वाले पावर स्टेशनों को बंद करने का काम पहले से ही जारी है. अब इस नए पैकेज में भूरे कोयले यानि लिग्नाइट को भी शामिल कर लिया जाएगा. कोयले की इस सबसे प्रदूषक किस्म लिग्नाइट का जर्मनी सबसे बड़ा उत्पादक है और इससे देश की करीब 19 फीसदी बिजली बनाई जाती है.

आरपी/एके (एएफपी, रॉयटर्स)

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