बुध से संदेशे भेजता मेसेंजर
३० जुलाई २०१५रिसर्चर खास कर यह जानना चाहते हैं कि मर्करी यानि बुध का जन्म कैसे हुआ. और समय के साथ ग्रह कैसे बदला. मर्करी खास है. सूरज की किरणों का तेज वहां पृथ्वी के मुकाबले दस गुना होता है. वहां का एक दिन धरती के 176 दिन के बराबर होता है. इसके विपरीत मर्करी का एक साल धरती के सिर्फ आधे साल के बराबर होता है. ग्रह बहुत ही छोटा है, चांद से कुछ ही बड़ा. उसका सूरज वाला हिस्सा 430 डिग्री तक गर्म हो जाता है, छाया में तापमान 170 डिग्री होता है.
दिलचस्प ग्रह
बुध पर कई खाइयां हैं, रिसर्चर इन्हें होलो कहते हैं. ऊंची नीची खाइयां तब बनती हैं जब सतह से रासायनिक तत्व निकलते हैं और भाप बनते जाते हैं. बुध ग्रह धरती के मुकाबले सूरज के तीनगुना करीब है. अमेरिकी अंतरिक्ष यान मेसेंजर जब 2008 में वहां पहुंचा तो ग्रह की सतह का आधे से ज्यादा हिस्सा अपरिचित था.
सालों तक मेसेंजर ने इस पथरीले छोटे ग्रह पर नजर रखी और इसके लिए सात उपकरणों का इस्तेमाल किया. लगातार छोटी होती दूरी से अंतरिक्ष यान ने ग्रह की सतह की विस्तृत तस्वीर ली. इसके अलावा ग्रह से होने वाले विकिरण को विभिन्न तरंग दैर्घ्य से नापा. मेसेंजर अभियान के पेलोड मैनेजर रॉबर्ट गोल्ड मेसेंजर के अभियान को समझाते हुए कहते हैं, "कैमरा आपको सतह की डिजायन और संरचना के बारे में बताता है. स्पेक्ट्रोमीटर धातु संरचना और माहौल में अणु संरचना के बारे में बताता है. यहां का वातावरण बहुत ही पतला है जिसे मर्करी का एक्सोस्फीयर कहा जाता है."
कैसे जन्मे ग्रह
बेहद कठिन परीक्षण से तैयार नक्शे को रिसर्चरों ने रोशनी की किरणों की तस्वीरों के साथ जोड़ा है. इस तरह उन्होंने मेसेंजर से मिले डाटा की मदद से पत्थरों का एक नक्शा तैयार किया है. इसकी मदद से अब विभिन्न तत्वों को पहली ही नजर में पहचाना जा सकता है. मर्करी के इस नक्शे की मदद से रिसर्चर समझ पा रहे हैं कि पथरीले ग्रह का किस तरह से विकास हुआ है.
जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिक योर्न हेलबर्ट चुनौतियों से वाकिफ हैं, "धरती के हिसाब से इसे समझना मुश्किल है. यहां मौसम है, पानी है, कटाव है. मतलब यह कि जो कुछ भी पहले था, उसकी बहुत बार जांच हुई है. बुध पर यह सब नहीं है. वहां हम देख सकते हैं कि शुरू में कौन सा तत्व था, जिससे पार्थिव ग्रह बने हैं."
बर्फ का रहस्य
मर्करी की सतह पत्थर के दूसरे ग्रहों से अलग है. उसमें गंधक और क्लोरीन जैसे तत्व बहुत ज्यादा हैं. दशकों तक रिसर्चर ये सवाल करते रहे कि क्या मर्करी पर लावा भी फूटता है. अंतरिक्ष यान ने दिखाया है कि ग्रह की समतल घाटियां गर्म और तेजी से बहने वाले लावे से तैयार हुई हैं.
2012 में मेसेंजर ने मर्करी के उत्तरी ध्रुव पर सनसनीखेज खोज की. हमेशा छांह में रहने वाले ज्वालामुखी में अंतरिक्ष यान को बर्फ मिली. वह ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल की स्याह परत के नीचे छुपी थी. संभव है कि दोनों कॉमेट और एस्टेरॉयड की वजह से मर्करी पर पहुंचे होंगे.
2016 में मेसेंजर सूरज की किरणों के ऊपर से गुजरेगा. शताब्दी में ऐसा तेरह या चौदह बार होता है. 2017 में ग्रह पर धरती से एक और मेजबान आएगा, यूरोपीय जापानी अंतरिक्ष यान के रूप में. वह मेसेंजर के काम को आगे बढ़ाएगा.
रिपोर्ट: कोर्नेलिया बोरमन/ओएसजे