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कैसे सुधारी जर्मनी ने शिक्षा की क्वॉलिटी

महेश झा७ अप्रैल २०१६

शिक्षा में गुणवत्ता की समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं है. जर्मनी जैसे विकसित देशों में भी यह समस्या है और समय समय पर उसे दूर करने की कोशिश की जाती रही है. साल 2000 के बाद जर्मनी ने शिक्षा को बेहतर बनाने के कई कदम उठाए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kastl

जब औद्योगिक देशों के संगठन ओईसीडी द्वारा कराई गयी पहली पीसा स्टडी के आंकड़े आए, तो यह जर्मनी के लिए सदमे जैसा था. अंतरराष्ट्रीय तुलना में देश के स्कूलों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. तब से प्राथमिक शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार भी हुआ है. इसके नतीजे ताजा पीसा सर्वे में भी दिख रहे हैं.

पीसा सर्वे

पीसा यानि प्रोग्राम फॉर स्टूडेंट एसेसमेंट. यह औद्योगिक देशों के संगठन आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी द्वारा सदस्य देशों और गैर सदस्य देशों में कराया जाने वाला विश्वव्यापी सर्वे है. पिछली बार इसमें 65 देशों ने हिस्सा लिया था. इसके तहत 15 साल के स्कूली बच्चों का गणित, विज्ञान और टेक्स्ट पढ़ने का टेस्ट किया जाता है. पहली बार यह सर्वे 2000 में हुआ था और हर तीन साल पर इसे दोहराया जाता है.

इस सर्वे का मकसद शिक्षास्तर में सुधार के लिए शिक्षा नीति को बेहतर बनाने में मदद देना है. अंतिम नतीजे 2012 में आए, जब 65 देशों के 5,10,000 छात्रों ने दुनिया भर के 2.8 करोड़ छात्रों की ओर से सर्वे में हिस्सा लिया. 2015 के सर्वे में 70 देश भाग ले रहे हैं. इनमें पहली बार भारत भी शामिल है. पीसा का सर्वे इस मायने में दूसरे सर्वे से अलग है कि यह स्कूली बच्चों से पाठ्यक्रम से जुड़े सवाल नहीं पूछता, बल्कि यह जानना चाहता है कि अनिवार्य शिक्षा के अंत में बच्चे सामान्य जीवन में उसका कितना इस्तेमाल कर पाएंगे.

जर्मन अनुभव

साल 2000 का पहला सर्वे जर्मनी के लिए सदमा था, तो शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए शिक्षा संरचना के खस्ता हाल होने की पुष्टि. उसके बाद स्थिति को सुधारने के लिए सरकार और स्कूल के स्तर पर बहुत सारे कदम उठाए गए. 2012 के नतीजे दिखाते हैं कि हालत बेहतर हुई है, हालांकि और सुधारों की भी जरूरत है. खासकर कमजोर छात्रों के मामले में बेहतरी के संकेत हैं. शिक्षाशास्त्री प्रीस्कूल शिक्षा, बाध्यकारी मानक और शिक्षकों की नियमित ट्रेनिंग को जरूरी मानते हैं.

पिछले पंद्रह सालों में जर्मनी में इनपर काम भी हुआ है. एक तो शिक्षा संरचना सुधारने में प्रांतीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा दिखी है. स्कूलों को जरूरी बजट देने के अलावा नए शिक्षकों की भर्ती, पढ़ाए जाने वाले जरूरी विषयों के बारे में शिक्षकों की ट्रेनिंग और छात्रों में उसके लिए संवेदनशीलता के अलावा स्कूलों के इंस्पेक्शन ने भी स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

कमजोर वर्ग

जर्मनी के पीसा नतीजों की एक खास बात यह थी कि स्कूल में कामयाबी और बच्चों की सामाजिक पृष्ठभूमि में जो संबंध यहां दिखा वह और कहीं नहीं है. इस बीच सभी तबकों के बच्चों को समान संभावना देने के कदम उठाए गए हैं और इस मामले में जर्मनी ओईसीडी के औसत के करीब पहुंच गया है. शिक्षा में भाषा की अहम भूमिका होती है. खासकर आप्रवासी परिवार के बच्चों को भाषा सिखाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है ताकि वे स्कूलों में बेहतर प्रदर्शन कर सकें.

आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को शिक्षा के मामले में नीदरलैंड्स और स्विट्रजरलैंड ने बेहतर नतीजे दिए हैं. जर्मनी में इन तबकों के छात्रों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के अलावा मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन देने की भी जरूरत है. शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन ने कमजोर छात्रों की संख्या 10 प्रतिशत से कम करने और मेधावी छात्रों की संख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा करने का लक्ष्य रखा है. शिक्षा से जुड़े सभी वर्ग यदि साथ काम करें तो यह संभव है.

जर्मनी में छात्र जीवन

अनिवार्य शिक्षा

जर्मनी में दसवीं कक्षा तक शिक्षा अनिवार्य है और राज्य तथा नगरपालिकाएं सभी बच्चों को स्कूल तक लाने की भी जिम्मेदारी लेते हैं. इसमें घर के करीब स्कूलों का होना, नहीं होने पर ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था शामिल है. जर्मनी शिक्षा पर अपने बजट का करीब 10 प्रतिशत खर्च करता है. जर्मनी में 2012 में 5.6 प्रतिशत काम करने वाले लोग यानि 23 लाख लोग शिक्षा से जुड़े संस्थानों में काम कर रहे थे.

2011 के आंकड़ों के हिसाब से जर्मनी ने शिक्षा, शोध और विज्ञान पर 243 अरब यूरो खर्च किए. शिक्षा के क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 35 प्रतिशत खर्च सामान्य शिक्षा पर होता है. बाकी का धन प्राथमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और उच्च शिक्षा पर होता है. 2005 से केंद्र और राज्य सरकारों ने विश्वविद्यालयों में शोध को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ठता पहल शुरू की है. चुनिंदा विश्वविद्यालयों में शोध को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों यूरो की राशि खर्च की जा रही है. साथ ही दुनिया भर से प्रतिभाओं को आकर्षित करने की पहल भी की गई है.

ब्लॉग: महेश झा