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कैसे मिटेगा ऑनर किलिंग का धब्बा?

१४ मार्च २०१६

अंतरजातीय विवाह करने की वजह से एक दक्षिण भारतीय युवक की हत्या ने भारत में ऑनर किलिंग यानि सम्मान के लिए होने वाली हत्याओं का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Gupta

हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में ऐसे मामले आम हैं. ऐसी कोई घटना होने के बाद सरकार से लेकर गैर-सरकारी संगठन तक इसके खिलाफ सक्रिय हो उठते हैं. लेकिन कुछ दिनों बाद फिर सब कुछ जस का तस हो जाता है.

ऑनर किलिंग के मामले में हरियाणा देश का सबसे बदनाम राज्य है. इसकी एक वजह यह है कि लोकतांत्रिक सरकार के बावजूद राज्य में खाप पंचायतों का समाज पर काफी असर है. विजातीय प्रेम या प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को अमूमन अपने इस अपराध की कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है. ऐसे मामलों में पंचायतों का फैसला ही सर्वोपरि होता है और सरकार व पुलिस प्रशासन भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाता.

निमर्म हत्या से कोई झिझक नहीं

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी खुलेआम इन पंचायतों की वकालत करते हुए उनको समाज सुधार का एक अहम हथियार बता चुके हैं. लेकिन आखिर इसकी वजह क्या है? इस सवाल पर समाजशास्त्रियों का कहना है कि आधुनिकता के मौजूदा दौर में ज्यादातर तबके रुढ़िवादी मानसिकता से नहीं उबर सके हैं. अपनी आन-बान और शान बचाए रखने के लिए लोग आज भी अपने ही बेटे-बेटियों की निमर्मता से हत्या करने में नहीं झिझकते. इस राज्य में कन्या भ्रूण हत्या की दर भी देश में सबसे ज्यादा है. यही वजह है कि यहां लिंग अनुपात बेहद खराब है.

हरियाणा के अलावा राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी अक्सर ऐसी मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन वोट बैंक की राजनीति की वजह से कोई राजनीतिक पार्टी इस पर खास कार्रवाई करने को उत्सुक नहीं नजर आती. ज्यादातर मामलों में पंचायत के फैसले को संबंधित समाज का अंदरुनी मामला बता कर कन्नी काट ली जाती है. किसी मामले में ज्यादा हो-हल्ला मचने की स्थिति में महज एफआईआर दरर्ज कर खानापूर्ति कर ली जाती है.

जागरुकता है जरूरी

ऑनर किलिंग के मामलों में दोषियों को सजा मिलने की मिसाल कम ही मिलती है. अगर सजा मिलती भी है तो बेहद मामूली. इसकी वजह यह है कि ऐसे मामलों में समाज की एकजुटता के चलते पुलिस को दोषियों के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिलता. प्रगतिशील समझे जाने वाले पश्चिम बंगाल में भी कम ही सही, लेकिन पंचायत के निर्देश पर ऐसी हत्याओं के इक्के-दुक्के मामले सामने आ ही जाते हैं. लेकिन ज्यादातर में अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती क्योंकि ऐसे लोग सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी से जुड़े होते हैं.

आखिर झूठी शान बचाने के लिए होने वाली इन हत्याओं पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? इसके तरीकों पर आम राय नहीं है. किसी का कहना है कि बदलते समय के साथ धीरे-धीरे इन पर अंकुश लग जाएगा, तो कोई इनको रोकने के लिए सख्त कानून बनाने और उन पर सख्ती से अमल की वकालत करता है. लेकिन कानून सबूतों के आधार पर काम करता है और जागरुकता के बिना कोई भी व्यक्ति ऐसे मामलों में दोषियों के खिलाफ गवाही देने के लिए सामने नहीं आएगा. तमिल नाडु में भी युवक सरे आम पिटता रहा और लोग चुप चाप तमाशा देखते रहे, कोई उसे बचाने के लिए आगे नहीं आया. ऐसे में कानून बेमानी ही साबित होंगे.

राजनीतिक दलों को चाहिए कि ऐसे मामलों में आपसी मतभेद भुला कर मिल कर काम करें. तभी समाज के माथे पर लगे ऑनर किलिंग के बदनुमा धब्बे को मिटाया जा सकेगा.

ब्लॉग: प्रभाकर