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दृष्टिहीनों के दिमाग की प्रक्रिया

१७ फ़रवरी २०१६

वैज्ञानिक इस बात से काफी प्रभावित हैं कि कुछ लोग पक्षियों की तरह ध्वनि का इस्तेमाल चलने फिरने में कर सकते हैं. वे जानना चाहते हैं कि दिमाग में आखिर होता क्या है. दृष्टिहीन और देख सकने वालों के दिमाग में क्या अंतर है?

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्लिक सोनार का इस्तेमाल कर इंसान दृष्टिहीनता की कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकता है और आस पास के माहौल को महसूस भी कर सकता है. इसलिए वैज्ञानिकों की दिलचस्पी यह जानने में है कि दिमाग जानकारी पाने के लिए आवाज को किस तरह से प्रोसेस करता है. डॉक्टर लोरे थालर कई सालों से क्लिक सोनार तकनीक पर काम कर रही हैं. वे दृष्टिहीन लोगों के अनुभवों से संबंधित रिपोर्ट जमा करती हैं. क्लिक सोनार के जरिए सिर्फ दूरी का ही पता नहीं चलता, आवाज की प्रतिध्वनि आस पास के माहौल के बारे में भी जानकारी देती है. मसलन वहां घास का मैदान है या कोई दीवार, बाधा प्लास्टिक की है या लकड़ी की. मनोविज्ञानी थालर कहती हैं, "हम इस बात से बहुत प्रभावित थे कि कुछ लोग सोनार का इस्तेमाल कर चल फिर सकते हैं और एकदम देखने वाले लोगों की तरह व्यवहार कर सकते हैं."

जब देख सकने वाला इंसान कुछ देखता है तो उसे रजिस्टर करने की प्रक्रिया पता है. लेकिन नहीं देख सकने वाला इंसान जब सोनार की मदद से अपने माहौल का खाका खींचता है तो उसके दिमाग के अंदर क्या होता है? मनोविज्ञानी थालर मैग्नेटिक रेजोनेंस टोमोग्राफी का इस्तेमाल कर पता करती हैं कि इसके दौरान दिमाग का कौन सा हिस्सा सक्रिय हुआ.

मरीज को स्कैनर में लेटा दिया जाता है और पहले से रिकॉर्ड की हुई आवाजें सुनाई जाती है. वे इसे सुनकर उसकी रिपोर्ट देते हैं कि यह एक पेड़ है, एक इमारत है. लोरे थालर बताती हैं, "जिन चीजों की गूंज सुन कर वे बताते हैं, वहां सचमुच पेड़, कारें और इमारतें होती हैं. और उनका कहना करीब करीब हमेशा ही ठीक होता है." एको लोकेशन का इस्तेमाल दृष्हीन व्यक्ति के दिमाग को पुनर्गठित करता है.

क्लिक सोनार तकनीक

इस टेस्ट की खास बात यह थी कि क्लिक सोनार तकनीक का इस्तेमाल करने वाले दृष्टिहीन लोग दिमाग के उस हिस्से में भारी सक्रियता दिखाते हैं जहां दृष्टि वाले लोग विजुअल उत्तेजना को प्रोसेस करते हैं. ध्वनि की प्रोसेसिंग विजुअल सेंटर में होती है. और वे दिमाग में तस्वीरें पैदा करते हैं, हालांकि संबंधित व्यक्ति उन्हें देख नहीं पाता. डॉक्टर लोरे थालर इसे दृष्टि का विकल्प बताती हैं. लेकिन साथ ही कहती हैं, "दिमाग उस क्षमता का लाभ उठाता है जो हम सबके पास है. ऐसा कर पाने के लिए सुपर ब्रेन वाला होने की जरूरत नहीं है."

क्लिक तकनीक की मदद से दृष्टिहीन टॉमी को आराम से बेकरी तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती. वह अलग अलग तरह के केक में फर्क नहीं कर सकते लेकिन इसकी उन्हें चिंता भी नहीं है. टॉमी ने बताया, "मेरे दिमाग में एक 3-डी मॉडल सा बन जाता है और फिर मुझे पता चलता है कि मेरी दायीं ओर खिड़की है और सामने में टेबल कुर्सी, जिस पर मैं बैठ सकता हूं." उन्हें इस बात की खुशी है कि वह किसी भी दूसरे 18 वर्षीय किशोर की ही तरह, अपने को आजाद, उन्मुक्त और मजबूत महसूस करते हैं. वह बताते हैं खुद अपने लिए रास्ते ढूंढ लेने और अपने काम खुद करने के अनुभव ने उनकी दुनिया फिर से रोशन कर दी है. अब उन्हें पहले की तरह बौखलाहट भी नहीं होती.

एसएफ/आईबी