कैसा है मोदी की ऐतिहासिक जीत का फॉर्मूला
2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का भारतीय जनता दल (बीजेपी) रिकॉर्ड जीत के साथ सत्ता में वापस आ रहा है. 90 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 60 करोड़ ने अपने वोट डाल कर मोदी के पक्ष में फैसला सुना दिया है.
करिश्माई व्यक्तित्व
नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि तमाम विपक्षी नेताओं के व्यक्तित्व के कुल जमा असर पर भी भारी रही. चुनाव भले ही लोकसभा सीटों के लिए हुए हों, लेकिन ज्यादातर वोटरों ने अपने स्थानीय उम्मीदवार की नहीं बल्कि मोदी के नाम पर अपना वोट बीजेपी को दिया.
भरोसेमंद सेनापति
चुनाव के नतीजों में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की भूमिका बहुत बड़ी है. बीजेपी ने शुरु से अपने पीएम पद के उम्मीदवार मोदी को सामने रखा और अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए सभी जरूरी गठजोड़ करने का जिम्मा शाह को सौंपा, जो कि चुनाव दर चुनाव इसमें अपनी महारत साबित करते आ रहे हैं.
लंबे चलने वाले चुनाव
लंबे चले प्रचार अभियानों के कारण मोदी को देश के कोने कोने में जाकर लोगों से सीधा संपर्क स्थापित करने का मौका मिला. वाक् कला के धनी मोदी को सुनने के लिए वैसी ही भीड़ उमड़ती है जैसी कभी नेहरू, इंदिरा और अटल बिहारी वाजपेयी के लिए आती थी. इस सीजन में खुद मोदी ने 130 से अधिक जनसभाएं कीं.
संगठन की शक्ति
बीजेपी के पास ना केवल उसके सुपरस्टार प्रचारक मोदी हैं बल्कि एक बेहद गठा हुआ अनुशासित संगठन भी. बीजेपी खुद प्राथमिक सदस्यों के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है और इसका मूल संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवकों का संगठन है. संघ ने भी विश्व भर में मोदी समर्थक माहौल तैयार करने में भूमिका निभाई.
धन बल
बीजेपी के पास खर्च करने के लिए कांग्रेस और अन्य पार्टियों के मुकाबले कई गुना ज्यादा धन था. केवल सोशल मीडिया की बानगी देखें, तो फेसबुक और गूगल पर ही कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने छह गुना ज्यादा पैसा खर्च किया. अनुमान है कि बीजेपी का चुनाव प्रचार में कुल खर्च कांग्रेस से 20 गुना ज्यादा था.
पाकिस्तान-विरोध पर एकजुटता
चुनाव के ठीक पहले पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव पर पीएम मोदी के रवैये के कारण भी उन्हें बहुत फायदा हुआ. फरवरी में पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर हुए आत्मघाती हमले का जवाब देने का उनका कदम और तरीका दोनों कहीं ना कहीं लोगों को पंसद आया, जिसका सबूत उन्होंने अपने वोट के रूप में दिया. राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के नाम पर काफी लोग उनके साथ जुड़े.
लोकलुभावन नीतियां
देश के गरीबों के लिए बीते पांच साल में लाई गई योजनाओं के अंतर्गत कई लोगों के घरों में गैस सिलिंडर पहुंचा, टॉयलेट बनवाए गए, बिजली पहुंची और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़ाने के प्रयास हुए. हालांकि कई इलाकों में ये काम अधूरे हैं लेकिन नतीजों से लगता है कि लोगों ने कुल मिलाकर इन कदमों का स्वागत किया है.
नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति
बीजेपी और उसके नेताओं की देश के सत्ता के गलियारों में बने रहने, देश को नेतृत्व देने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति लोगों को नजर आती है. वो हर तरह कोशिश करके सत्ता में रहना चाहते हैं. जिस तरह से बीजेपी ने अपने कमजोर सहयोगियों की मांग भी पूरी की और उन्हें अपने साथ रखा उस तरह की प्रतिबद्धता दूसरे दलों में नजर नहीं आती है.