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'कंफर्ट विमेन' पर विवाद

२१ जून २०१४

जापान ने युद्धकाल में सेक्स गुलामों के रूप में इस्तेमाल की गई महिलाओं पर हुए अत्याचारों के लिए 1993 के बयान को बरकरार रखा है. दक्षिण कोरिया की जोरदार मांग के बावजूद जापान अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

जापान में पुराने जमाने से चले आ रहे 'कंफर्ट विमेन' के प्रचलन पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं. दक्षिण कोरिया का आरोप रहा है कि इस चलन के नाम पर जापान में उनके देश की महिलाओं को गुलाम बनाकर युद्ध काल में उनसे देह व्यापार कराया गया. तमाम तरह के अत्याचारों की शिकार रही महिलाओं के आरोपों की जांच के लिए दक्षिण कोरिया और चीन की ओर से जापान पर दबाव था. शुक्रवार को जापान ने फैसला किया कि वह 1993 में जारी किए गए माफीनामे पर कायम है और पूर्व 'कंफर्ट विमेन' के प्रमाणों की पुष्टि नहीं हुई है. इस नतीजे पर दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्री ने "गहरा अफसोस" जताते हुए कहा कि "तथ्यों के साथ छेड़छाड़" हुई है और जापान की 1993 की माफी को कम करके आंका गया है.

'कोनो स्टेटेमेंट' में लिखा है

जापान कहता रहा है कि उस समय के हालात अलग थे जब 'कंफर्ट विमेन' का प्रचलन था. उस समय देश में देह व्यापार एक वैधानिक गतिविधि थी और विदेशी यौनकर्मियों को भी जापानियों के बराबर ही कीमत मिलती थी. इस मुद्दे पर अमेरिका के दस्तावेजों में लिखा गया है कि कोरियन और जापानी यौनकर्मियों में कोई भेदभाव नहीं किया गया और साथ साथ स्वास्थ्य अधिकारी भी पुलिस को यही सुनिश्चित करने में लगे थे कि उन 'कंफर्ट विमेन' के साथ किसी तरह की बदसलूकी ना हो.

Comfort Women Protest in Taipeh
दक्षिण कोरिया, चीन और फिलिपींस में उठती रही है माफी की मांगतस्वीर: Sam Yeh/AFP/Getty Images

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि जापान अपनी माफी को वापस नहीं लेगा. इस प्रसिद्द माफीनामे को 'कोनो स्टेटेमेंट' के नाम से जाना जाता है. 1993 में जापानी अधिकारियों ने दक्षिण कोरिया के आग्रह पर ऐसी सोलह महिलाओं से बयान लिया था. इन्हीं बयानों के आधार पर जारी इस बयान में उदारवादी जापानी सरकार ने पहली बार माना था कि शाही जापानी सेना ने जापान के औपनिवेशिक देशों से महिलाओं से जबर्दस्ती वेश्यावृत्ति करवाई थी.

अमेरिका चाहता है सुलह

दक्षिण कोरिया में यह मामला काफी संवेदनशील है. उन्हें लगता है कि जापान ने अपने इस अत्याचार के लिए कभी ठीक से माफी नहीं मांगी. 1965 में दोनों देशों के बीच अरबों डॉलर की संपत्ति और दूसरे दावों को लेकर एक बड़ी संधि भी हुई लेकिन 'कंफर्ट विमेन' का मसला सामान्य नहीं हो पाया. दोनों देशों के लिए इस मुद्दे को भुला ना पाना अब अमेरिका के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है. ये दोनों ही देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी हैं. चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए अमेरिका के लिए अपने इन दोनों सहयोगियों को साथ लाना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. कुछ ही महीने पहले इस क्षेत्र के दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 'कंफर्ट विमेन' के प्रचलन की आलोचना करते हुए उसे "मानवाधिकारों का भयानक और अपूर्व उल्लंघन" बताया था.

अखबार का आरोप

'कोनो स्टेटमेंट' लाने वाली उदारवादी सरकार के उलट पिछले कई सालों से देश में रुढ़िवादी और काफी हद तक राष्ट्रवादी माने जाने वाली सरकार का शासन है. प्रधानमंत्री आबे भी उसी श्रृंखला के शासक माने जाते हैं और वे पहले भी जता चुके थे कि उन्हें पूर्व 'कंफर्ट विमेन' के बयानों को पूरी तरह सच नहीं मानते है. फिर भी दक्षिण कोरिया और चीन में उठ रही पुरजोर आवाजों के मद्देनजर आबे ने माफीनामे से जुड़ी प्रक्रिया की जांच के लिए फरवरी में एक टीम के गठन का फैसला किया था.

कोरिया के चोसुन इल्बो नामके अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है, "आबे प्रशासन दिसंबर 2012 को सत्ता में आने के साथ ही माफीनामे को कमजोर बनाने की कोशिशों में लगा है. इसके लिए वह सही और गलत सभी तरीके अपना रहा है." अखबार का आरोप है, "आबे प्रशासन का सीधा मकसद है द्वितीय विश्व युद्ध में उनके ढाए गए जुल्मों की जिम्मेदारी लेने से बचना."

आरआर/आईबी (एएफपी, एपी)