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कार चलाने से बनेगी ऊर्जा

मार्टिन रीबे/ओएसजे७ नवम्बर २०१४

जर्मनी में कारों से छोड़ी जाने वाली ऊष्मा के जरिए ऊर्जा पैदा करने की कोशिश हो रही है. सफल होने पर इससे पर्यावरण को तो फायदा होगा ही, इसकी मदद से कई उद्योगों के लिए ऊर्जा का इंतजाम भी हो सकेगा.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Dedert

जर्मनी की सड़कों पर करीब छह करोड़ कारें दौड़ती हैं और लगातार ऊष्मा छोड़ती हैं. इंजन में ईंधन के जलने से ऊर्जा पैदा होती है जो ऊष्मा के रूप में भी बाहर आती है. जर्मनी का सबसे बड़ा पावर प्लांट साल भर में जितनी ऊर्जा पैदा नहीं कर पाता, उससे भी ज्यादा कारें पैदा करती हैं.

फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर फिजिकल मेजरमेंट टेक्नीक के वैज्ञानिक इस ऊष्मा का इस्तेमाल करना चाहते हैं. एक थर्मोइलेक्ट्रिकल जेनरेटर के जरिए, जो ताप में आने वाले अंतर को बिजली में बदलता है. इंस्टीट्यूट के रिसर्चर डॉक्टर किलियान बार्टोलोमे प्लास्टिक के दो डिब्बों की मदद से इसे समझाते हैं. वह कहते हैं, "आपस में जुड़े इन डिब्बों में से एक में ठंडा पानी डाला जाए और एक में गर्म, तो थर्मोइलेक्ट्रिक मॉड्यूल में ऊष्मा का प्रवाह गर्म से ठंडे की ओर होगा. इससे बिजली का करंट तैयार होगा. इस छोटे से उपकरण से एक टॉर्च को जलाया जा सकता है."

धातुओं का मिश्रण

थर्मोइलेक्ट्रिक मॉड्यूल बनाने के लिए बिसमुथ, टेलुरियम, एंटीमोनी या मैग्नीशियम और सिलिकन जैसे धातुओं के मिश्रण की जरूरत होती है. इस मिश्रण को सिक्के के बराबर आकार वाली प्लेट पर अत्यधिक दबाव और लगभग 1000 सेंटीग्रेट तापमान में रखा जाता है. इससे मिश्रित धातु तैयार होती है. अब इसे बेहद बारीकी से मिलीमीटर के हिसाब से छोटे छोटे ब्लॉकों में बांटा जाता है. ऐसा करने से मिश्रित धातु के गुण बेहतर होने लगते हैं.

बार्टोलोमे कहते हैं, "आम तौर पर अगर धातुओं में, जब बिजली का प्रवाह बढ़ता है तो ऊष्मा का प्रवाह भी बढ़ता है. यहां कुछ ट्रिक्स के जरिए आपको इसे रोकना है. यानी बिजली का प्रवाह तो बढ़े लेकिन ऊष्मा का प्रवाह कम."

साइलेंसर का फायदा

मॉड्यूल या जेनरेटर में इन्हें फिट करते समय स्थिर हाथ के साथ बेहद सटीक होने की जरूरत है. मॉड्यूल बाद में तापमान में होने वाले 100 डिग्री से ज्यादा के बदलाव को सहन कर सकता है. हालांकि इससे बहुत कम वोल्टेज पैदा होती है लेकिन बिजली तब तक पैदा होती है जब तक तापमान में अंतर रहता है. अगर आप कार में ऐसा मॉड्यूल लगाना चाहते हैं तो सबसे बढ़िया जगह है साइलेंसर. बार्टोलोमे के मुताबिक, "थर्मोइलेक्ट्रिक मॉड्यूल को साइलेंसर में लगाने का फायदा यह है कि वहां बहुत ही ज्यादा तापमान होता है, करीब 6, 7 या 800 डिग्री सेल्सियस. और वहीं ठंडा पानी भी होता है, इससे ताप में बहुत ही ज्यादा अंतर वाली स्थिति बनेगी जिसका इस्तेमाल थर्मोइलेक्ट्रिसिटी के लिए हो सकता है."

हर कार से करीब 600 वाट बिजली बनाई जा सकती है, वैकल्पिक मशीनें चलाने के लिए यह काफी है. ऐसा हुआ तो ईंधन की बचत होगी और कार्बन डाई ऑक्साइड भी कम निकलेगा. जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच ऑटो उद्योग के लिए थर्मल जेनरेटर बड़ी कामयाबी साबित हो सकते हैं.