कार्बन डायॉक्साइड नापेगा उपग्रह
१३ जून २०१४नासा की मानें तो वातावरण में कार्बन डायॉक्साइड की मात्रा अब काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी है. उत्तरी गोलार्ध के वायुमंडल में इस साल अप्रैल में कार्बन डायॉक्साइड का मासिक घनत्व 400 पीपीएम के स्तर को भी पार कर गया. नासा के अनुसार, "आठ लाख साल में दर्ज किया गया यह उच्चतम आंकड़ा" है. ऐसे में एजेंसी पहली बार इसी महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस के बारे में काफी बड़े स्तर पर सही सही आंकड़े इकट्ठे करने के मकसद से एक उपग्रह भेज रही है.
ऑर्बिटिंग कार्बन ऑब्जर्वेटरी 2 (ओसीओ 2) नाम का यह उपग्रह काफी कुछ इसके पहले भेजे गए ओसीओ 1 जैसा ही है. फरवरी 2009 में भेजे जाने के क्रम में ही ओसीओ 1 नष्ट हो गया था. ओसीओ 2 पूरी दुनिया के वायुमंडल में फैली हुई प्राकृतिक और मानव निर्मित कार्बन डायॉक्साइड की मात्रा का संपूर्ण खाका खींच सकेगा. इसके अलावा यह उपग्रह जंगलों और महासागरों जैसे कार्बन 'सिंक' कहे जानी वाली जगहों के असर को भी आंकड़ों में दर्ज कर पाएगा. ये कार्बन 'सिंक' ग्रीनहाउस गैसों को सोख कर वातावरण में वापस जाने से रोकते हैं.
नासा के अर्थ साइंस डिविजन के निदेशक माइकल फ्राइलिश बताते हैं, "हमारे वातावरण के ऊर्जा संतुलन में कार्बन डायॉक्साइड अहम रोल अदा करती है और जलवायु परिवर्तन को समझने में भी यह काफी महत्वपूर्ण है." फ्राइलिश ने बताया, "ओसीओ 2 मिशन की मदद से नासा वैश्विक निगरानी के लिए एक बिल्कुल नया स्रोत मुहैया करा पाएगा. इससे हमारी धरती और उसके भविष्य की चुनौतियों को भी बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी."
सैटेलाइट ओसीओ 2 को एक जुलाई को कैलिफोर्निया के वैंडनबर्ग वायुसैनिक अड्डे से छोड़ा जाएगा. इसे धरती की सतह से 705 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक कक्षा में स्थापित करने का लक्ष्य तय किया गया है. नासा चाहता है कि ऐसे छह उपग्रह हर 99वें मिनट में धरती का चक्कर लगाएं, जिससे पूरे विश्व के वातावरण से आंकड़े लगातार मिल सकें. ओसीओ 2 इस सीरीज का पहला उपग्रह होगा. इसे कम से कम दो साल काम करने के लिहाज से डिजाइन किया गया है.
इंसान की बहुत सारी गतिविधियों जैसे तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले को ईंधन के रूप में जलाने से हर साल वातावरण में करीब 40 अरब टन कार्बन डायॉक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. यह ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में दर्ज की गई अभूतपूर्व बढ़त का एक बहुत बड़ा कारण बनके उभरी है. जलवायु विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कार्बन डायॉक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण धरती का प्राकृतिक कार्बन चक्र प्रभावित हुआ है. यही कारण है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन हो रहा है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि फिलहाल हम विभिन्न तरीकों से जितनी कार्बन डायॉक्साइड छोड़ते हैं, उसकी आधी से कम मात्रा वायुमंडल में ही रह जाती है. इस नए सैटेलाइट से मिले आंकड़ों को धरती पर मौजूद पर्यवेक्षणशालाओं, हवाई जहाजों और दूसरे उपग्रहों से मिली जानकारी के साथ मिला कर देखने से स्थिति की पूरी तस्वीर मिल पाएगी.
आरआर/एजेए (एएफपी)