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समाज

कहां गायब हो गए पाकिस्तानी यहूदी?

इस्मत जबीं, इस्लामाबाद
२० जुलाई २०१८

पाकिस्तान में पिछले आम चुनावों के दौरान 890 यहूदी वोटर थे. लेकिन इस बार की वोटर लिस्ट में एक भी यहूदी नहीं है. आखिर कहां गए पाकिस्तान के यहूदी?

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Deutschland Demonstration gegen Antisemitismus in Berlin | Berlin wears kippa
तस्वीर: Reuters/F. Bensch

पांच साल के भीतर सैकड़ों यहूदी वोटरों का इस तरह से गायब हो जाना बड़ी हैरानी की बात है. डीडब्ल्यू की छानबीन में पता चला कि पाकिस्तान के किसी विभाग को इस बारे में जानकारी नहीं है कि देश में यहूदियों की कुल संख्या कितनी है.

सच तो यह है कि ज्यादातर यहूदी पाकिस्तान छोड़ चुके हैं और जो पाकिस्तान में मौजूद हैं, वे वोटर के तौर पर अपना नाम रजिस्टर करा कर अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते. पाकिस्तान में बढ़ता चरमपंथ देश की गैर मुस्लिम बिरादरी में असुरक्षा की भावना पैदा कर रहा है और इसीलिए वे एक नागरिक के तौर पर मताधिकार से भी वंचित हो रहे हैं.

पाकिस्तान की लगभग 20 करोड़ की आबादी में गैर मुसलमान लगभग पांच फीसदी हैं और उनके वोटों की संख्या 36 लाख से ज्यादा है. इनमें हिंदू, ईसाई, अहमदी, सिख, बौद्ध, पारसी और जिकरी जैसे समुदाय शामिल हैं. इनके अलावा छोटे गैर मुस्लिम समुदायों में यहूदी भी शामिल हैं. अनुमान है कि पाकिस्तान में यहूदियों की आबादी एक हजार से भी कम है.

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इस बारे में जानकारी पाने के लिए डीडब्ल्यू ने जिन अधिकारियों से भी संपर्क किया, उन्होंने कहा कि हाल में जो वोटर लिस्ट तैयार की गई है, उसका आधार 2017 की जनगणना है. इस जनगणना में सिर्फ पांच बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की गिनती की गई थी. इनमें हिंदू, ईसाई, अहमदी, पारसी और सिख शामिल थे. बाकी दूसरे छोटे छोटे अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले समुदायों को छठी श्रेणी यानी 'अन्य' में रख दिया गया. इस तरह पाकिस्तान चुनाव आयोग के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि अगर देश में यहूदी वोटर हैं तो उनकी संख्या कितनी है.

पाकिस्तान में जनगणना विभाग के प्रवक्ता हबीबुल्लाह खटक कहते हैं, "हमारे पास पाकिस्तानी यहूदियों को लेकर अलग से कोई डाटा नहीं है. हमने सिर्फ धार्मिक समुदायों पर ही ध्यान दिया. सबसे पहले बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी, फिर अल्पसंख्यकों में हिंदू, ईसाई, पारसी और अहमदी हैं. बाकी सब को एक साथ अन्य के खाने में रख दिया गया. इसलिए हमारे पास ऐसे कोई आंकड़े नहीं कि जो बता सकें कि पाकिस्तान में यहूदियों की कितनी आबादी है."

दूसरी तरफ, पाकिस्तानी चुनाव आयोग के प्रवक्ता अल्ताफ अहमद कहते हैं, "यहूदी वोटरों के बारे में हमने अभी तक कोई वोटर लिस्ट जारी नहीं की है, तो आंकड़ों का पता कैसे लगाया जा सकता है. हम अभी इस पर काम कर रहे हैं. जब पूरे आंकड़े मिल जाएंगे तो वोटर लिस्ट जारी कर दी जाएगी."

अल्ताफ अहमद कहते हैं कि पाकिस्तानी यहूदी भी देश के नागरिक हैं. उनके मुताबिक कोई मुसलमान हो या गैर मुसलमान, अगर उसके पास राष्ट्रीय पहचान पत्र है तो उसका नाम वोटर के तौर पर दर्ज किया ही जाएगा.

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पाकिस्तान में रहने वाले यहूदियों की संख्या क्यों घटती जा रही है या फिर इस समुदाय के सामने क्या दिकक्तें हैं, इस बारे में किसी यहूदी से बात करना खासा मुश्किल है. फिर भी, रावलपिंडी में रहने वाले एक बुजुर्ग यहूदी ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, "लगभग तीस साल पहले तक लगभग 45 परिवार रावलपिंडी, इस्लामाबाद और गुरजाखान में रहते थे. मेरे परिवार समेत कई यहूदी परिवार अब यूरोप, अमेरिका या फिर दक्षिण अफ्रीका में जाकर बस गए. कम से कम छह यहूदी परिवार कराची जा चुके हैं."

वह कहते हैं, "एक ऐसे समाज में, जो साफ तौर पर धार्मिक हो, जहां चरमपंथी मुस्लिम गुट सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हों, वहां अल्पसंख्यकों के लिए अपने धार्मिक विश्वासों के अनुसार सुरक्षित और खुले आम जिंदगी गुजारना मुश्किल होता है. हम यहूदियों के लिए तो ऐसी जिंदगी लगभग असंभव है."

इस यहूदी बुजुर्ग का कहना है, "70 के दशक में रावलपिंडी में दो यहूदी प्रार्थना स्थल (सिनेगॉग) थे, लेकिन फिर इन्हें इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि उनके लिए रब्बी ही नहीं मिलते थे. जहां तक वोटर लिस्ट की बात है तो यहूदियों ने वोटर लिस्ट में खुद को रजिस्टर कराना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि इससे हमारे हालात में तो कुछ बदलने वाला है नहीं."

वह कहते हैं, "पाकिस्तान में यहूदी समुदाय कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहा. लेकिन जिया उल हक की तानाशाही के बाद बहाल होने वाले लोकतंत्र के अस्थिर होने की वजह से और लगभग सभी सियासी पार्टियों की यहूदियों में खास दिलचस्पी न होने की वजह से हमारी दिलचस्पी भी खत्म हो गई. मैंने खुद अपना वोट आखिरी बार 1990 के चुनाव में डाला था. इसके बाद कभी वोट डालने का मन नहीं हुआ."

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