कश्मीर विवाद और अंधराष्ट्रीयता
७ सितम्बर २०१५अति राष्ट्रवादी भावनाएं सीमा के दोनों ओर पाई जाती हैं और 1965 युद्ध की वर्षगांठ पर इनका खुल कर प्रदर्शन भी हुआ. बीते हफ्तों में भारत और पाकिस्तान का सोशल मीडिया भी ऐसे अंधराष्ट्रवादिता वाले संदेशों से अटा पड़ा है.
1965 की ही तरह आज भी दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा विवाद कश्मीर को लेकर ही है. 22 अगस्त को इस्लामाबाद की ओर से नई दिल्ली में होने वाली शांति वार्ता को रद्द कर दिया गया. भारत इस वार्ता को आतंकवाद पर केंद्रित करना चाहता था, जिस पर पाकिस्तान का कहना था कि इससे "कुछ भी हासिल नहीं होने वाला."
पाकिस्तान कहता आया है कि वह कश्मीरी अलगाववादियों का केवल राजनीतिक समर्थन करता है, जबकि कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि वह 1947 से ही उन्हें रणनैतिक और सैनिक मदद भी देता आया है. कुछ विद्वानों का दावा है कि पाकिस्तान के संस्थापक माने जाने वाले जिन्ना उसी समय से जिहादियों के साथ "सशस्त्र सेना से असंबद्ध सैन्य दल" को कश्मीर में घुसपैठ करने भेजा करते थे.
इसका नतीजा भारत और पाकिस्तान के बीच एक युद्ध के रूप में सामने आया है. 1948 में हुए इस युद्ध में भारतीय सेना ने कश्मीर के ज्यादातर हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. पाकिस्तान के हाथ इसका एक छोटा सा हिस्सा लगा, जिसे वह "आजाद कश्मीर" कहता है.
1965 का युद्ध भी कश्मीर को लेकर ही हुआ. कराची के रहने वाले अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता शहरम अजहर कहते हैं, "50 साल पहले दोनों देशों के बीच हुए 1965 के युद्ध के दौरान 13,000 से भी अधिक लोग मारे गए. इसके बावजूद दोनों ही देशों के राष्ट्रवादी हमें बताते हैं कि यह एक जश्न मनाने का कारण है. ऐसे समारोहों का केवल एक शब्द में बयान किया जा सकता है: पागलपन."
इस्लामिक आतंकियों के खिलाफ संघर्ष के पाकिस्तान के दावों को लेकर अब भी अमेरिका, अफगानिस्तान और भारत जैसे देश बहुत आश्वस्त नहीं हैं. दोनों ही देशों के अतिवादी आपसी शत्रुता और युद्धोन्माद का फायदा उठाते हैं. दोनों ही देशों के कई युवा चाहते हैं कि पुरानी शत्रुता भुला कर एक नई शुरुआत हो.
इस्लामाबाद के दस्तावेजी फिल्मकार वजाहत मलिक कहते हैं, "भारत और पाकिस्तान के बीच करीबी संबंध विकसित करने के लिए लोगों के बीच मेलजोल बढ़ाना होगा, व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देना होगा. जब लोग साथ आएंगे तो देश भी ऐसा करेंगे."
हांगकांग में एशियाई मानव अधिकार आयोग के वरिष्ठ शोधकर्ता बसीर नवीद बताते हैं, "अगर विवाद ऐसे ही बना रहता है तो भारत और पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को ही फायदा होगा. दोनों ही देशों के दक्षिणपंथी समूह युद्ध और नफरत चाहते हैं."