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कला की सीमाओं को आजमाती हैं शिरीन

२ जुलाई २०१०

दुनिया भर में ईरानी महिला फिल्म निर्देशक शिरीन नेशात की फिल्म जनान ए बेदूने मर्दान यानी पुरुषों बगैर महिलाएं/वीमन विदाउट मेन रिलीज हो रही है. शिरीन को कला की सीमाओं को बार बार आजमाने वाली निर्देशक माना जाता है.

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शिरीन नेशाततस्वीर: AP

53 साल की शिरीन 1979 से ही अमेरिका में रहती हैं.विडियो और फोटोग्राफी में उन्होंने बड़ा नाम कमाया है. जब ईरान में 2009 में राष्ट्रपति चुनावों के विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे, तब शिरीन नेशात ने भी संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के सामने कई दूसरे लोगों के साथ तीन दिन तक भूख हड़ताल की थी.

पुरूषों बगैर महिलाएं फिल्म में शिरीन नेशात चार महिलाओं की कहानी सुनाती हैं. एक महिला किसी से प्यार करती है, लेकिन जिससे वह प्यार करती है वह उससे नहीं प्यार करता. दूसरी महिला बहुत दुखी है और आत्महत्या करने के बारे में सोच रही है. एक ओर एक महिला है जिसका पति उसे धोखा दे रहा हैं और अंतिम महिला एक सेक्स वर्कर है. सभी एक ऐसे रहस्य भरे आंगन में मिलती हैं, जो कभी जंगल बन जाता है तो कभी रेगिस्तान.

Flash-Galerie Women Without Men
वीमन विदाउट मैन का एक दृश्यतस्वीर: Courtesy Co-Production-Office

लेकिन इस आंगन में सभी सुरक्षित हैं और अपनी अपनी कहानियां बयां कर सकती हैं, जो दुख, दर्द, खुशी, निराशा और उम्मीदों से भारी हैं. महिलाओं की पृष्टभूमि को देखते हुए उनमें बहुत अंतर हैं, लेकिन काफी समानताएं भी देखने को मिलती हैं. फिल्म 1953 की बात करती है, जब ईरान के शाह रेजा पहलवी ने सत्ता संभाली थी.

नेशात का कहना है, "इस फिल्म के साथ मैं दिखाना चाह रही थी कि 1950 के दशक में ईरान में जिंदगी बहुत ज्यादा रंगीली थी. आपको पश्चिमी दुनिया से आकर्षित लोग भी दिखते थे, बहुत ही धार्मिक लोग भी- यानी समाज में एक विविधता थी. वह जीवन आज के जीवन से बहुत अलग था. आज तो सब पर धार्मिक होने का दबाव है."

शिरीन कहती हैं कि अपने परिवार में उन्हें अपने सपनों को आगे बढाने के लिए हमेशा समर्थन मिलता रहा है. 1979 में वह कला की पढाई करने के लिए अमेरिका गईं. ठीक उसी वक्त, जब अयातुल्ला खोमैनी सत्ता में आए थे. गर्व के साथ कहती हैं कि न्यू यॉर्क में इतने समय रहते हुए भी वह अपने समाज, अपनी संस्कृति और परंपराओं को भूली नहीं हैं.

"आप ईरानी लोगों को ईरान से निकाल सकते हें. लेकिन ईरान, यानी अपने देश को, ईरानी लोगों के दिलों से नहीं निकाल सकते. मैं 1979 से ईरान में नहीं रह रहीं हूं. लेकिन आज भी मैं अपने आप को ईरानी ही महसूस करती हूं. हां, मैं पश्चिमी दुनिया का भी एक हिस्सा हूं. जिस तरह से मैं रहती हूं या जिस तरह के मैं कपड़ें पहनती हूं. "

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तस्वीर: Courtesy Co-Production-Office

शिरीन नेशात बतातीं हैं कि वह सभी धर्मों को इज्ज़त देना चाहतीं हैं और कुछ साल तक एक कैथोलिक बोर्डिंग सेकूल में रही हैं. "हां, मैं मुसलमान हूं. लेकिन मै इतनी धार्मिक नहीं हूं कि हर दिन नमाज पढ़ा करूं. धर्म का किस तरह से पालन करना है, यह एक बहुत ही व्यक्तिगत फैसला है और दूसरों को इस फैसले को मानना होगा. मैं अपनी फिल्म में कहीं भी इस्लाम की आलोचना नहीं करना चाहती. मैं सिर्फ वही दिखाना चाहती हूं, जो मुझे दिखाई दे रहा है. मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, जैसाकि दूसरे कलाकार करते हैं, कि मैं कहूं कि मेरी फिल्म में इस या उस चीज़ का विरोध हैं. "

शिरीन कहती हैं कि आज़ादी, लोकतंत्र और मानवाधिकार हर समाज पर लागू होने वाले वैश्विक मूल्य हैं, जिनका पालन किया जाना चाहिए. " यदि आप राजनीतिक गतिविधियों की बात करते हैं, तो मैं कहूंगी कि महिलाओँ और पुरूषों के तरीकों के बीच अंतर हैं. महिलाएं ज़्यादा भावनात्मक तरीके से काम करतीं हैं, जिसे मैं बहुत अच्छा मानतीं हूं. वे हिंसा नहीं चाहतीं और हिंसा को सह नहीं सकतीं हैं. पुरूष भी हिंसा को पसंद नहीं करते, लेकिन वे हिंसा सह सकते हैं. पिछले साल 2009 में जब ईरान में विरोध चल रहा था, तब हमने देखा कि महिलाओं ने उस समय प्रदर्शनकारियों का साथ दिया, जब उन्हे मारा-पीटा गया. यह मैं अपनी फिल्म में भी दिखा रहीं हूं कि एक महिला एक मरते हुए सैनिक को अपनी बाहों में ले लेती है और बिलख बिलख कर रोती है. "

रिपोर्ट: एजेंसियां/प्रिया एसलबोर्न

संपादन: एस गौड़