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कमजोर पड़े भारत में राष्ट्रीय मूल्य

२९ जनवरी २०१६

महात्मा गांधी की हत्या के दिन गोवा में उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे पर एक किताब का विमोचन हो रहा है. कुलदीप कुमार का कहना है कि यह आयोजन दिखाता है कि राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उत्पन्न मूल्य कितने कमजोर पड़ गए हैं.

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Indien Mahatma Gandhi
गांधी और जिन्नातस्वीर: AP

30 जनवरी महात्मा गांधी की शहादत का दिन है. 68 वर्ष पहले इसी दिन नाथूराम गोडसे ने नयी दिल्ली के बिड़ला भवन में सांध्यकालीन प्रार्थनासभा में निहत्थे और कृशकाय 78-वर्षीय महात्मा गांधी के बिलकुल नजदीक जाकर पहले उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर तुरंत अपनी पिस्तौल से उनके शरीर में तीन गोलियां उतार दीं. महात्मा गांधी के मुंह से ‘हे राम' निकला और उन्होंने प्राण त्याग दिए. तभी से इस दिन को पूरे देश में ‘शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है और महात्मा गांधी के साथ देश के लिए अपनी जान निछावर करने वाले अन्य शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

लेकिन सभी भारतवासी श्रद्धांजलि देने में शामिल नहीं होते. भारत को हिन्दू राष्ट्र मानने वालों का आदर्श सर्व-धर्म-समभाव वाले धर्मनिरपेक्ष महात्मा गांधी नहीं बल्कि मुस्लिम-द्वेष पर आधारित राष्ट्रीयता के सिद्धान्त में गहरी आस्था रखने वाला हिंदुत्ववादी गोडसे है. आजादी के बाद कई दशकों तक ये गोडसे-भक्त निष्क्रिय रहे क्योंकि माहौल उनके अनुकूल नहीं था, लेकिन पिछले तीन-चार दशकों के दौरान जैसे-जैसे हिंदुत्ववादी राजनीति ताकतवर होती गयी वैसे-वैसे ही इनके हौसले भी बढ़ते गए. पिछले कुछ वर्षों से तो खुलकर गोडसे का महिमामंडन किया जाने लगा है. यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि नाथूराम गोडसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य था. फिर वह विनायक दामोदर सावरकर के विचारों से आकृष्ट होकर हिन्दू महासभा में शामिल हो गया. लेकिन उसने कभी संघ के साथ भी अपना संबंध नहीं तोड़ा.

Prozess gegen Nathuram Vinayak Godse
गोडसे पर मुकदमातस्वीर: Getty Images

यूं भी संघ और हिन्दू महासभा की विचारधारा एक-जैसी ही थी. जब उस पर महात्मा गांधी की हत्या का मुकदमा चला तो उसने संघ के साथ अपने संबंधों को छुपाए रखा जिसके कारण तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने संघ को प्रतिबंधित करने के कुछ समय बाद कुछ शर्तों के आधार पर प्रतिबंध हटा दिया. लेकिन सरदार पटेल का स्पष्ट मत था कि संघ ने महात्मा गांधी की हत्या के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया और उसके कार्यकर्ताओं ने हत्या की खबर मिलते ही जगह-जगह खुशियां मनाई और मिठाइयां बांटीं. आज वही संघ अपने मानसपुत्र भारतीय जनता पार्टी के जरिये देश पर शासन कर रहा है.

अपना अस्तित्व बचाने और प्रभाव फैलाने के लिए संघ ने महात्मा गांधी का नाम प्रातःस्मरणीय महापुरुषों की सूची में शामिल किया, लेकिन सच यह है कि उसका गांधी-विरोध ज्यों-का-त्यों बरकरार है. अपने बलबूते पर केंद्र में भाजपा के सत्ता में आ जाने के बाद अन्य हिंदुत्ववादी संगठन भी अधिक सक्रिय हो गए हैं. हिन्दुत्व की अवधारणा हिन्दू महासभा के शीर्षस्थ नेता विनायक दामोदर सावरकर ने दी थी और गोडसे पर चले मुकदमे में वह भी एक सह-अभियुक्त थे. उन्हें केवल इस तकनीकी आधार पर बरी किया गया क्योंकि सरकारी गवाह के बयान की किसी दूसरे गवाह द्वारा पुष्टि नहीं हो पायी थी. लेकिन बाद में सामने आए तथ्यों से स्पष्ट हो गया कि गांधी हत्याकांड की साजिश रचने और गोडसे को इसके लिए प्रेरित करने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका थी.

Indien Barack Obama in Neu Delhi 25.01.2015
गांधी समाधि पर बराक ओबामातस्वीर: Reuters/Stringer

इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पिछले वर्ष हिन्दू महासभा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में 30 जनवरी के दिन नाथूराम गोडसे की मूर्ति लगाने की घोषणा की थी. यह संगठन 30 जनवरी को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है, उसी तरह जैसे विश्व हिन्दू परिषद 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ढहाने के कारण शौर्य दिवस के रूप में मनाता है. इस वर्ष हिन्दू महासभा ने 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के बजाय ‘काला दिवस' मनाया और घोषणा की कि उसका लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने का है.

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि गोवा के रवीन्द्र भवन में, जो एक सरकारी संस्था है और जिसके अध्यक्ष भाजपा के नेता दामोदर नायक हैं, 30 जनवरी को अनूप अशोक सरदेसाई द्वारा नाथूराम गोडसे और महात्मा गांधी की हत्या के बारे में लिखी पुस्तक का लोकार्पण समारोह आयोजित हो रहा है और इस समारोह के अध्यक्ष भी दामोदर नायक हैं. नवगठित गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अलावा अनेक क्षुब्ध नागरिक भी इस आयोजन का विरोध कर रहे हैं. यह आयोजन इस सचाई को दर्शाता है कि आजादी के लिए चले राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उत्पन्न मूल्य कितने कमजोर पड़ गए हैं और इस आंदोलन से अलग-थलग रहने वाली सांप्रदायिक राजनीतिक शक्तियां कितनी मजबूत हो गयी हैं. ये शक्तियां गोडसे के इस आरोप को बिना उसका नाम लिए अक्सर दुहराती रहती हैं कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल रहे थे और देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार