कब मिलेगा मौतों का हिसाब
१२ जुलाई २०१३परेशान हाल लोग अपनों की तलाश में भटक रहे हैं. कई लोग तो निराशा और उम्मीद की मिलीजुली भावना के साथ अपने घरों को लौट गए हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है, “15 जुलाई के बाद लापता व्यक्ति को मृत मानकर उसका मुआवजा परिजनों को दे दिया जाएगा. उत्तराखंड से बाहर ये काम उन राज्यों के मुख्य अतिथि के जरिए होगा जिनके यहां से सैलानी आए थे.” लेकिन कितने लोगों की इस आपदा में मौत हुई है इस पर कोई भी सरकारी एजेंसी कोई एक साफ आंकड़ा देने की स्थिति में नहीं है.
मुख्यमंत्री जब शासन की रिपोर्ट के आधार पर कहते हैं कि लापता लोगों की संख्या 4045 है जिनमें उत्तराखंड के 795 है तो अगले ही दिन राज्य के आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण केंद्र की रिपोर्ट कहती है लापता पांच हजार से ज्यादा हैं और मृतकों का कोई आंकड़ा अभी दिया नही जा सकता. कहने को इस आपदा सेंटर की रिपोर्ट में मरने वालों की संख्या 580 बताई गई है लेकिन ये संख्या कैसे मिली. क्या इतनी लाशें मिली थीं. मिली थीं तो क्या उनकी शिनाख्त हो पाई. इस बात का जवाब फिलहाल किसी सरकारी एजेंसी के पास नहीं है. आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण केंद्र के निदेशक पीयूष रौतेला मानते हैं कि लापता या मरे हुए लोगों की सूची के लिए कोई डेडलाइन जारी करना संभव नहीं है. उनके मुताबिक,“लापता लोगों की रिपोर्ट आ तो गई है लेकिन उनकी पुष्टि इतने कम समय में संभव नहीं हैं.” (अपनों के इंतजार का अंत नहीं)
इतने कम समय से रौतेला का आशय असल में ये है कि राज्य सरकार ने दावा किया है कि 15 जुलाई तक लापता लोगों की सूची जारी कर दी जाएगी. मुख्यमंत्री ने खुद ये बात कही थी. केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त नोडल अधिकारी वीके दुग्गल भी कमोबेश यही बात कह चुके हैं. उनके मुताबिक, “दो चार दिन में हम सही संख्या बता पाने की स्थिति में होंगे.”
उधर शासन की मिसिंग सेल में लापता लोगों की सूची को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जिन राज्यों के यात्री उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पर आए थे वहां से लापता लोगों के नाम आ गए हैं.
उत्तर प्रदेश से लापता यात्रियों की संख्या को लेकर असमंजस बना हुआ है. एक आंकड़ा 1300 का आया है तो एक करीब 800 का है. इसका मिलान किया जा रहा है. आंकड़ों को लेकर आखिर ये भ्रम की स्थिति क्यों बनी है. इस पर सरकार के पास कोई सीधा जवाब नहीं है. पिछले दिनों मरने वालों की संख्या को लेकर भी विवाद हो गया था. मुख्यमंत्री बहुगुणा ने कहा था कि एक हजार के करीब मौतें हुई हो सकती हैं. केदारनाथ क्षेत्र की विधायक शैला रानी रावत ने मरने वालों की संख्या पांच हजार के आसपास होने का अनुमान लगाया था. फिर यही बात आपदा प्रबंधन मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल आर्य ने भी कही. विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि मरने वालों की संख्या दस हजार हो सकती है. प्रभावित इलाकों का दौरा कर लौटे विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों ने हजारों मौतों की बात कही है.
असल में संख्या को लेकर ये विवाद न होता अगर उत्तराखंड सरकार अपनी चारधाम यात्रा को लेकर कुछ बुनियादी बातें कड़ाई से लागू करती. सबसे पहली तो यही कि यात्रियों का पंजीकरण होता. पहाड़ में जाने वाली हर गाड़ी का नंबर दर्ज किया जाता. निश्चित प्रवेश मार्ग बनाए जाते और इस व्यवस्था को बहुस्तरीय बनाया जाता. हालात की विकटता और भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार धाम रूट पर भारी बारिश और बाढ़ की उस अवधि में एक लाख से ज्यादा लोग थे. जबकि पर्यावरणवादियों और भूविज्ञानियों के मुताबिक मध्य हिमालय की बनावट और रास्तों का कच्चापन इतने सारे लोगों और इतने सारे वाहनों को सहने के लिए नहीं है. इस पर एक नियंत्रण हमेशा रहना चाहिए और ऐसी यात्राओं के मौके पर तो विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए. लेकिन हो रहा है इसका उलट.
बद्रीनाथ मार्ग के प्रमुख पड़ाव गोविंदघाट की तबाही इसकी एक मिसाल है. अलकनंदा नदी को पार कर यहीं से रास्ता हेमकुंड साहिब के लिए जाता है. लोग अपने छोटे बड़े वाहन यहीं खड़ा करते हैं.लेकिन उस दिन जो प्रलय आई वो सब कुछ बहाकर ले गई. गोविंदघाट को एक विशाल पार्किग प्लेस में तब्दील कर दिया गया. वाहनों के काफिले के काफिले चार धाम यात्रा मार्गों पर उमड़ पड़ते हैं. पहाड़ को काटकर पार्किंग के लिए जगहें निकाली गई थी और नदी के बिल्कुल किनारों से लॉज होटल आदि उठा दिए गए थे. ये एक दिन का काम नहीं था. लंबे समय से प्रशासन की नाक के नीचे ये सब हो रहा था. किसी ने सुध नहीं ली.
रिपोर्टः शिवप्रसाद जोशी, देहरादून
संपादनः एन रंजन