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कड़ाके की सर्दी में रैन बसेरे खस्ताहाल

१२ जनवरी २०११

कड़ाके की ठण्ड से उत्तरी भारत कंपकपा रहा है. हाड़ कंपा देने वाली सर्दी ने जीवन दूभर कर दिया है. सबसे ज्यादा मुसीबत तो उनकी है जिनके पास रहने को घर नहीं है. देश के शहरी क्षेत्रों में ही 26 करोड़ मकानों की जरुरत है.

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तस्वीर: DW

भारत के सविंधान का इक्कीसवां अध्याय देश के हर नागरिक को रहने की सुविधा उपलब्ध कराने का वादा करता है. पिछले साल पांच मई को सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वे जरूरतमंदो के लिए "रैन बसेरे" बनाये जहां गरीब सम्मानजनक तरीके से रह सकें.

यह भी कहा गया था कि देश के सभी शहरों में एक लाख की जनसंख्या पर कम से कम एक "रैन बसेरा" जरूर बनाया जाए. इन रैन बसेरों में आश्रय-विहीन गरीबों के लिए मुफ्त में बिस्तर, कम्बल, रजाई गद्दे, भोजन, पानी, शौच-स्नान, सर्दियों में अलाव जलाने और जीवन रक्षक दवाओं की व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन इन आदेशों की क्या धज्जियां उड़ रही हैं, यह साफ दिखता है. अधिकांश स्थानों पर रैन बसरों के नाम पर "टैंट" खड़े कर दिए गए हैं जबकि कोर्ट के आदेशानुसार घर पक्का और स्थाई होना चाहिए.

Kältwelle in Indien
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अकेले जयपुर में ही 18 में से 15 बसेरे अस्थाई टेन्टों में संचालित है. जब राजस्थान की एक सामाजिक संस्था "रोज़ी रोटी अधिकार" द्वारा इन में से कुछ रैन बसेरों का सर्वेक्षण किया गया तो पाया गया कि ज़्यादातर में कई सुविधाओं की कमी है.

संस्था से जुड़े अशोक खंडेलवाल बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सभी रैन बसेरों में शौचालय, स्नानघर और महिला-पुरुषों के लिए अलग अलग स्थान होने चाहिए जो कि नहीं है.

वे बताते हैं कि रैन बसेरों की संख्या भी बहुत कम है और राजस्थान के पांच शहरों में जहां 51 रैन बसेरे होने चाहिए, वहां सिर्फ 39 ही चल रहे हैं.

अशोक बताते हैं कि दिल्ली को छोड़ दें तो कमोबेश सारे देश में ही ही रैन बसेरों की हालत खराब ही है . जयपुर के सांगानेरी गेट पर जयपुर नगर निगम द्वारा संचालित रैन बसेरे की सार सम्भाल करने वाले गार्ड जगदीश प्रसाद शर्मा बताते है कि उन के पास सिर्फ 25 रजाई गद्दे है जबकि यहां आने वालों की संख्या 50 से ऊपर है.

Kältwelle in Indien
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मजबूरी में उन्हें दो- तीन व्यक्तियों को एक ही रजाई में ही सुलाना पड़ता है. वे यह भी बताते है कि नियमित धुलाई न होने की वजह से बिस्तरों द्वारा बीमारी फैलने का भी खतरा है. वे कहते हैं कि महिलाओं को ठहराने की कोई अलग व्यवस्था न होने की वजह से उन्हें स्त्री-पुरुषों को साथ ही सुलाना पड़ता है.

रैन बसेरे में मौजूद पंजाब के लखविंदर सिंह की शिकायत है कि बारिश में रैन बसेरे में पानी टपकता है जिस से रात भर नींद नहीं आती. ट्रेन छूट जाने के कारण रात गुजारने आये सीकर के सुभाष सैन को खाना नहीं मिलने पर परेशानी थी.

जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के पास भी एक रैन बसेरा है जहां हालात कुछ बेहतर थे.

अस्थाई टैंट के बाहर लोग सर्दी से बचने की लिए अलाव ताप रहे थे. अस्पताल में भर्ती अपने पति के साथ आयी सुगना रात काटने के लिए यहां चली आयी थी उसे ख़ुशी थी कि भले ही ठंडा, पर भोजन तो मिला. हां रैन बसेरे के साथ शौचालय की कमी उसे जरूर परेशान किए हुए थी.

रात काटने आया भिखारी शम्भू रैन बसेरे में इस लिए प्रवेश नहीं पा सका क्योंकि उस के पास परिचय पत्र नहीं है. वो पूछता है कि अगर परिचय-पत्र ही होता तो वो भीख क्यों मांगता.

पर गार्ड वीरेंदर सोमरा की भी मजबूरी है कि नियमों के चलते उसे रैन बसेरे में प्रवेश नहीं दिया जा सकता. यह रैन बसरों का हाल है. मजबूर लोगों के लिए बेमन से मजबूरी में किए गए इंतजाम हैं.

रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादन: ओ सिंह