कंपनियों की कमाई खा रहा है गूगल का पैक मैन
२६ मई २०१०21 मई को जापानी कंप्यूटर गेम 'पैक मैन' की 30वीं सालगिरह मनाई गई. इस मौके पर गूगल ने इस खेल को अपने होम पेज पर जगह दी. पैक मैन के अंदाज में गूगल लिखा गया था. इसके नतीजे चौंकाने वाले आए. 21 मई को दुनिया भर में लोगों ने काम काज को कम तरजीह दी और खेल खेलने में लगे रहे. एक अध्ययन से पता चला है कि उस दिन दुनिया भर में पैक मैन 50 लाख घंटे तक खेला गया.
सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर नजर रखने वाली एक कंपनी रेसक्यू टाइम ने इस दौरान पैक मैन के इस्तेमाल पर निगरानी बनाए रखी. सामान्य दिनों में ज़्यादातर लोग गूगल सर्च का 22 बार इस्तेमाल करते हैं और हर एक सर्च पर औसतन 11 सेकेंड बिताते हैं. लेकिन 21 मई को पैक मैन की वजह से हर सर्च का औसत समय बढ़कर 36 सेकेंड हो गया. इस दौरान 11 हजार इंटरनेट यूजर्स पर नज़र रखी गई.
पैक मैन की लोकप्रियता को देखते हुए गूगल ने अब स्थाई तौर पर अपने होम पेज में जगह दी है. यानी लोग जब दिल चाहे पैक मैन खेल सकेंगे. रेसक्यू टाइम का कहना है कि 21 मई को पैक मैन जिस ढंग से गूगल पेज पर लगाया गया था उससे थोड़ा असमंजस हुआ. खेलने के लिए इंसर्ट कॉएन ऑप्शन को क्लिक करना था, कई लोग ऐसा नहीं कर पाए. रेसक्यू टाइम का कहना है कि अगर पैक मैन सीधे पर सीधे क्लिक करने से खेल शुरू हो जाता तो नतीजे और उत्साहजनक होते.
पैक मैन के अलावा नए अध्ययन में गूगल की लोकप्रियता और इंटरनेट पर एकछत्र राज करने की कहानी भी सामने आई है. हर दिन पांच करोड़ चालीस लाख लोग गूगल पेज का का इस्तेमाल करते हैं. एक दिन में गूगल पेज पर लोग 48 लाख घंटे बिताते हैं, अगर इन्हें जोड़ा जाए तो कहा जा सकता है कि एक दिन में गूगल 549 साल का सफर तय करता है.
इंटरनेट और गूगल की इस क्रांति से ऑफिस मैंनजमेंट उतना खुश नहीं है. कहा जा रहा है कि औसतन हर घंटे के लिए एक कर्मचारी को 25 डॉलर तनख्वाह दी जाती है. ऐसे में दुनिया भर के कर्मचारियों को मिलाकर उनके गूगल पर खर्च टाइम को देखा जाए तो हर दिन दफ्तरों को 12 करोड़ डॉलर का चूना लगता है.
इस खर्च और समय को बचाने के लिए रेसक्यू टाइम ने एक सुझाव दिया है. सॉफ्टवेयर के धुरंधरों का कहना है कि कंपनियों को गूगल के कर्मचारियों को छह हफ्ते काम पर रखना चाहिए ताकि उनके कर्मचारी नेट की दुनिया में भटकाने वाली ऐसे गेम और एप्लीकेशन को ब्लॉक कर सकें. इससे कर्मचारी काम पर ध्यान दे सकेंगे.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: एस गौड़