जब सांस को भी तरस जाएगा इंसान
५ दिसम्बर २०१५एक नई शोध इसी तरफ संकेत करती है कि धरती पर ऑक्सीजन की कमी का भी खतरा हो सकता है. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लेस्टर के वैज्ञानिकों का कहना है, "हमने ग्लोबल वॉर्मिंग के एक अन्य खतरे को पहचाना है जो बाकियों से ज्यादा खतरनाक हो सकता है."
उनकी रिसर्च फाइटोप्लैंकटन के कंप्यूटर मॉडल पर आधारित है. ये सूक्ष्म समुद्री पौधे होते हैं जो वायुमंडल में दो तिहाई ऑक्सीजन के लिए जिम्मेदार हैं. औसत 6 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वॉर्मिंग वह तापमान है जिसपर फाइटोप्लैंकटन ऑक्सीजन का निर्माण नहीं कर पाएंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा होने पर ना सिर्फ पानी में बल्कि हवा में भी ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो धरती पर जीवन मुश्किल हो जाएगा.
तापमान का 6 डिग्री सेल्सियस बढ़ना मुख्यधारा में बताए जा रहे तापमान से ज्यादा है, हालांकि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी चेतावनी दे चुकी है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि को पलटा ना गया तो ऐसा होना संभव है. कई वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कभी तापामन इतना बढ़ा तो इसका कारण लंबे समय तक बेलगाम कार्बन उत्सर्जन होगा.
जलवायु को बचाने के लिए समझौते की कोशिश कर रहे संयुक्त राष्ट्र सदस्यों ने पेरिस में तय किया कि वे ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ऊपर नहीं जाने देंगे. संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान पैनेल के मुताबिक अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को काबू में नहीं किया गया और हालत बहुत खराब रही तो इस सदी में पृथ्वी का तापमान 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है.
रिपोर्ट के सहलेखक सेर्गेई पेत्रोव्स्की के मुताबिक, "इस शोध से यह संदेश मिलता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के परिणामस्वरूप जल्द ही कोई नई आपदा हम तक पहुंच सकती है, और यह उन परिणामों से भयंकर हो सकती है जिनका अब तक अनुमान लगाया गया है." उन्होंने कहा कि हो सकता है कि आपदा के आने से पहले हमें बहुत संकेत मिलने का समय भी ना रहे. एक बार अगर सीमा पार हो गई तो बर्बादी बहुत तेजी से हमारे पास पहुंचेगी.
एसएफ/एमजे (एएफपी)