ऐतिहासिक जीत, बेबस पश्चिम और बहुत सारे खुले सवाल
९ नवम्बर २०१६डॉनल्ड ट्रंप ने अपना मुकाम हासिल कर लिया है. दूसरों के अपमान, हेकड़ी और अज्ञानता पर आधारित अपने चुनाव अभियान की मदद से उन्हें सिर्फ राजनीति से असंतुष्ट लोगों को सक्रिय करने में ही कामयाबी नहीं मिली है, वे इस रणनीति के सहारे चुनाव भी जीत गए हैं. इतना ही नहीं, ट्रंप सिर्फ जीते ही नहीं हैं, वे ऐसे स्पष्ट रूप से जीते हैं जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
ट्रंप की जीत एक भड़काऊ, आंशिक रूप से अमानवीय और भोंडे पॉपुलिज्म की जीत है. ये अमेरिका के संस्थानों और संभ्रांत वर्ग तथा उसके प्रतिनिधि हिलेरी क्लिंटन पर जोरदार तमाचा भी है. क्लिंटन एक अच्छी विरोधी थी क्योंकि वह ट्रंप जितनी ही अलोकप्रिय थी. इसके अलावा अपने ईमेल कांड के जरिये उन्होंने ट्रंप को अपने खिलाफ पर्याप्त हथियार मुहैया कराया. फिर भी क्लिंटन की अलोकप्रियता ही ट्रंप की नाटकीय जीत की पूरी वजह नहीं है.
असंतोष के रथ की सवारी
डॉनल्ड ट्रंप की जीत लंबे समय से महसूस किए जा रहे गहरे असंतोष की अभिव्यक्ति है, और आबादी के व्यापक हिस्से की नफरत की. नफरत, यथास्थिति, वैश्वीकरण और वाशिंगटन की राजनीतिक व्यवस्था से. बहुत सारे सर्वे में बहुत सारे अमेरिकियों ने बार बार कहा कि उनका जीवनस्तर और भविष्य की संभावनाएं उनके माता-पिता की पीढ़ी से खराब है. खासकर परंपरागत श्वेत कामगार वर्ग के असंतोष की राजनीतिक अभिव्यक्ति के लिए ट्रंप सही माध्यम थे. और हिलेरी क्लिंटन उनकी अनुकूल प्रतिद्वंद्वी. डेमोक्रैटिक प्राइमरी में तब तक अंजाने बर्नी सैंडर्स के खिलाफ मुश्किल से पाई गई उनकी जीत दरअसल एक चेतावनी थी. और अब हमें पता है कि यह संकेत था कि आने वाला समय क्या लाएगा.
ट्रंप की जीत स्थापित मीडिया, थिंक टैंकों और सर्वे विशेषज्ञों के लिए भी तमाचा है. इनमें से किसी ने गंभीरता से ट्रंप की जीत की उम्मीद नहीं की थी. ट्रंप की जीत अमेरिका के परंपरागत पश्चिमी साथियों के गाल पर भी तमाचा है जिन्होंने आम तौर पर खुलकर क्लिंटन का पक्ष लिया था और ट्रंप का विरोध किया था. ट्रंप की जीत से क्रेमलिन में इसके विपरीत खुशी हुई होगी क्योंकि ट्रंप ने कई बार पुतिन की तारीफ में टिप्पणी की थी.
अमेरिका की वैश्विक भूमिका पर सवाल
ट्रंप की जीत का अमेरिका और दुनिया के लिए क्या मतलब है यह रिजल्ट आने के फौरन बाद कहना मुश्किल है. एक तो इसलिए कि ट्रंप का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है, जिसका इस्तेमाल तुलना के लिए किया जा सके. दूसरे ट्रंप ने अब तक किसी भी संगत घरेलू या वैदेशिक नीति की घोषणा नहीं की है. इसके अलावा उनके पास कुछ अपवादों को छोड़कर राजनीतिक अनुभवों वाली सलाहकार टीम भी नहीं है.
लेकिन अभी ही ये कहा जा सकता है कि ट्रंप की चुनावी जीत अमेरिका और मौजूदा विश्व व्यवस्था की यथास्थिति और उसमें अमेरिका की भूमिका पर सवालिया निशान है. जनता के विभिन्न गुटों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने वाले राष्ट्रपति ट्रंप विभाजित मुल्क को एकजुट कैसे कर पाएंगे? क्या वे अलगाववादी और संरक्षणवादी चुनावी वादों पर अमल करेंगे? ट्रांस-अटलांटिक रक्षा सहबंध नाटो के नेतृत्व के बारे में ट्रंप क्या सोचते हैं जिसे उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बेकार बताया था. वे उन कारोबारी समझौता का क्या करेंगे जिसके बारे में उन्होंने फिर से बातचीत करने की बात कही थी? वे दुनिया भर के मुसलमानों के साथ क्या बर्ताव करेंगे जिनके लिए उन्होंने अमेरिका आने पर रोक की मांग की थी? इसी तरह पर्यावरण और परमाणु हथियारों पर उनका रवैया क्या होगा?
इन सवालों का फिलहाल कोई जवाब नहीं है, शांत करने वाला तो कतई नहीं. ट्रंप की जीत के साथ अमेरिका और उसके साथ पूरी दुनिया एक नए इलाके में प्रवेश कर रहे हैं. हमें राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अशांत समयों के लिए तैयार रहना चाहिए.