1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

एशिया में खरीदार ढूंढता एक्वाकल्चर

२६ मार्च २०१४

इंग्लैंड के लोग मछली और चिप्स के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकते. भारत में भी मछलियों की खपत कम नहीं है.

https://p.dw.com/p/1BVWh
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दुनिया भर में बढ़ती मांग का मछली के प्राकृतिक आवास पर बुरा असर हो रहा है. वे तेजी से कम होते जा रहे हैं. विकल्प आधुनिक फिश फार्मों में मछलियों का उत्पादन है. बाजार में आई सनफिश मछली, कुछ दिन पहले तक यह मछली न्यूजीलैंड के सागर में तैर रही थी. बाजार में इन सनफिश की तरह अनजानी मछलियों की मांग लगातार बढ़ रही है. लेकिन सागर में यह मछलियां इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही हैं.

तो जरूरत को कैसे पूरा किया जाए. एक विकल्प मछलियों की कृत्रिम खेती है. दुनिया भर में इस बीच हर साल एक्वाकल्चर में 5 करोड़ टन मछलियों और सीफूड का उत्पादन होता है. जर्मनी में भी हर साल फिश फार्मों में मछलियों का उत्पादन 7 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. जर्मन एक्वाकल्चर संघ के बैर्ट वेकर कहते हैं, "यहां समुद्र में मिलने वाली मछलियों का एक हिस्सा देखा जा सकता है. गिल्टहेड, सी बार्श और पीली पूंछ वाली किंग फिश. मछलियों की ये किस्में अब जर्मनी में रिसर्कुलेशन सिस्टम वाले तालाबों में पाली जा रही हैं, जहां पानी लगातार बहता है ताकि हम टिकाऊ ढंग से समुद्री मछलियों का उत्पादन कर सकें.

Bildergalerie : Forellen
मछलियों की कृत्रिम खेती के जरिए संख्या बढ़ाने की कोशिशतस्वीर: Shabestan.ir

जर्मनी में अब तक एक्वाकल्चर के लिए संयंत्र बनाने वाली कम ही कंपनियां हैं. उनमें से एक छोटी कंपनी रात्स है. यह कंपनी मछलियां रखने के लिए हजारों लीटर वाला टैंक और इतना ही बड़ा फिल्टर संयंत्र बनाती है. कंपनी प्रमुख आंद्रे पेचुरा के मुताबिक, "फिलहाल बाजार पूरब की ओर विकसित हो रहा है, मतलब पोलैंड और चेक गणतंत्र जैसे पूर्वी यूरोपीय देश या रूसी बाजार."

इसके विपरीत जर्मन बाजार का विकास धीमी गति से हो रहा है, क्योंकि संयंत्र काफी महंगे और खर्चीले हैं, "जर्मनी में बिजली और कामगारों का दाम काफी ज्यादा है. पानी को गर्म रखने के लिए काफी बिजली चाहिए. इसलिए बायोगैस संयंत्र और एक्वाकल्चर को मिलाने की जरूरत है क्योंकि बायोगैस के संयंत्र से काफी गर्मी निकलती है जिसे मुफ्त में पानी के टैंकों तक पहुंचाया जा सकता है."

आंद्रे पेचुरा की कंपनी को एशियाई देशों के ग्राहकों में दिलचस्पी है क्योंकि वहां बाजार तेजी से बढ़ रहा है. और जिस तरह की आधुनिक रिसर्कुलेशन संयंत्र उनकी कंपनी बनाती है, वैसा कम ही लोग बनाते हैं. लेकिन पेचुरा के लिए नए ग्राहक खोजना आसान नहीं, "हमें रूस के काफी ग्राहक मिले, मेसेडोनिया में भी मिले. लेकिन एशियाई देशों के ग्राहक मिलना मुश्किल है, क्योंकि मेले में उनका प्रतिनिधित्व ज्यादा नहीं है. अब हम बांग्लादेश में एक जर्मन कंपनी के साथ पार्टनर प्रोजेक्ट के जरिए कोशिश कर रहे हैं जो ऑर्गेनिक झींगा मछलियां आयात करना चाहती है और बदले में हमारा संयंत्र बांग्लादेश ले जाएगी."

इस समय रात्स कंपनी 15 फीसदी की दर से बढ़ रही है. आधी मशीनें निर्यात होते हैं. एशिया में सफलता मिली तो इसमें और तेजी आएगी.

रिपोर्ट: युर्गेन श्नाइडर/एमजे

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी