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एशिया बना ताकत का अखाड़ा

२४ सितम्बर २०१०

एशिया महाद्वीप चीन, भारत, अमेरिका और जापान के लिए ताकत का अखाड़ा बन रहा है. ऐसे में छोटे देशों को बीच में पिसने की चिंता सताने लगी हैं. ताकत की इस जोर आजमाइश में विभिन्न देशों के साथ चीन के सीमा विवाद मुख्य मुद्दा हैं.

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तस्वीर: AP/Kyodo News

चीन तेजी से बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर उभर रहा है. ऐसे में उसके कई पड़ोसियों के लिए अपनी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को बनाए रखने में मश्किलें पेश आ रही हैं. यह बात तो साफ है कि चीन से वे उलझ नहीं सकते हैं. जापान ने दो हफ्ते पहले पूर्वी चीनी सागर की विवादित जल सीमा में एक चीनी कैप्टन को हिरासत में ले लिया जिसे रिहा करने से वह इनकार कर रहा है. इसके जवाब में चीन ने "और कदम" उठाने की धमकी दी है.

Anti-Japan-Proteste in Hong Kong
तस्वीर: AP

चीन ने अमेरिका को भी चेतावनी दी है कि वह इस विवाद में न पड़े. चीन इसे अपने सबसे जटिल विवादों में से एक मानता है. सिंगापुर इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशन अफेयर्स के सिमोन टे कहते हैं कि छोटे देशों को कोशिश करनी चाहिए कि वे ताकतवर देशों के टकराव में न पिसें. वह कहते हैं कि एशिया में ताकत का नया समीकरण खासा मजबूत है लेकिन अगर यह टकराव का रूप लेता है तो 10 देशों वाले दक्षिण पूर्व एशिया को एकजुट रहना होगा.

चीन अपने क्षेत्रीय विवादों का अतरराष्ट्रीयकरण बिल्कुल नहीं चाहता है. वह दोतरफा तौर पर इन विवादों को सुलझान चाहता है. असल में इस तरह वह अपने प्रभाव का ज्यादा इस्तेमाल कर पाता है. इसलिए जब जुलाई में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने हनोई में सुरक्षा सम्मेलन के दौरान दक्षिणी चीन सागर को लेकर बहुपक्षीय सोच अपनाने को कहा, तो चीन भड़क गया.

Anti-Japan-Proteste in Beijing
चीन में जापान विरोधी प्रदर्शनतस्वीर: AP

सिंगापुर के विदेश मंत्री जॉर्ज येओ कहते हैं, "अमेरिका और चीन के बीच खासी तीखी नोंकझोंक हुई थी. कुछ देर के लिए तो माहौल बिल्कुल तनावपूर्ण हो गया था." चीन का कहना है कि दक्षिणी चीनी सागर में स्पार्टले और पारासेल द्वीप समूहों पर पूरी तरह उसकी संप्रभुता बनती है. तेल, गैस और मछलियों से मालामाल यह इलाका रणनीतिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है और पूर्वी एशिया को यूरोप और मध्यपूर्व से जोड़ने के लिए अहम जलसंपर्क है. छोटे द्वीपों के इन समूहों पर चीन के अलावा, मलेशिया, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम ब्रुनेई का नियंत्रण और अपने अपने दावे हैं.

क्लिंटन का कहना है कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है कि इन दावों को सुलझाया जाए. साथ ही वह इसे अमेरिका के हित में भी बताती हैं. जून में अमेरिकी रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने कहा कि दक्षिणी चीनी सागर तक मुक्त पहुंच होनी चाहिए. उन्होंने संकेत दिया कि अमेरिका की तेल और गैस कंपनियां वियतनाम के दावे वाले जलक्षेत्र में तेल और गैस तलाशना चाहती हैं. खास कर वियतनाम जैसे पूर्वी एशियाई देशों ने चीन की ताकत को संतुलित करने की अमेरिकी इच्छा का स्वागत किया है. वियतनाम 1998 में दक्षिणी चीन सागर में चीन के साथ एक सीमित युद्ध लड़ चुका है.

इस बीच भारत भी क्षेत्र में चीनी मौजूदगी पर नजर रखे हुए है. खास कर हाल के दिनों में चीन ने बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान के बंदरगाहों में भारी निवेश किया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एन रंजन

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