एचआईवी जैसे वायरस का टीका
१२ सितम्बर २०१३ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक टीका सिमियन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (एसआईवी) को खत्म कर रहा है. यूनिवर्सिटी के वैक्सीन एंड जीन थैरेपी इंस्टीट्यूट ने 16 बंदरों पर टीके का परीक्षण किया. दवा से नौ बंदरों में यह वायरस खत्म हो गया.
फ्लोरिडा की इस यूनविर्सिटी में वैज्ञानिक एचआईवी से भी ज्यादा खतरनाक एसआईवी मैक239 विषाणु पर रिसर्च कर रहे थे. बंदरों में पाया जाने वाला यह विषाणु एचआईवी से 100 गुना ज्यादा खतरनाक है. इसका शिकार होने वाले बंदर निश्चित तौर पर 24 से 36 महीने में मर जाते हैं.
विज्ञान पत्रिका नेचर में छपी रिपोर्ट में वैक्सीन एंड जीन थैरेपी इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर लुईस पिकर कहते हैं, "पूरी तरह खात्मा, ऐसा दावा करना हमेशा मुश्किल होता है. हो सकता है कि कुछ ऐसे ऊतक रह गए हों जहां हमारी पकड़ में आए बिना ये वायरस अब भी हों. लेकिन इन बंदरों के शरीर के ज्यादातर अंगों में और सबसे ज्यादा असर वाले इलाकों में ये वायरस अब नहीं बचा है."
जिन बंदरों को यह टीका लगाया गया उनके शरीर में एसआईवी का प्रतिरोधक लगातार बना हुआ है. प्रतिरोधक पूरे शरीर में जा रहा है. प्रोफेसर पिकर कहते हैं, "ये एक फौज की तरह रहता है, शरीर के सारे ऊतकों में घूमता है, हर वक्त और पक्के तौर पर."
रिसर्चरों ने पहले बंदरों को यह टीका लगाया, फिर उनमें एसआईवी वायरस का संक्रमण किया. पहले वायरस शरीर में टिकने में कामयाब रहा और फिर फैलने लगा. लेकिन इसके बाद बंदरों के शरीर ने इसका जवाब देना शुरू किया. शरीर के प्रतिरोधक तंत्र ने वायरस को खोज खोजकर मारना शुरू किया.
प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करने वाला यह टीका सिटोमेगालोवायरस (सीएमवी) नाम के एक दूसरे विषाणु की तर्ज पर काम करता है. सीएमवी इंसान के प्रतिरोधक तंत्र को कमजोर करता है. लेकिन वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए हैं कि आधे बंदरों में इस टीके ने काम क्यों नहीं किया. प्रोफेसर पिकर को लगता हैं कि इसके पीछे बंदरों की उम्र और दूसरी बीमारियों का असर भी हो सकता है.
इस परीक्षण से इंसानों के लिए एचआईवी रोधक टीका बनाने की उम्मीद और ज्यादा मजबूत हुई है. रिसर्च से अन्य वैज्ञानिकों की भी उम्मीद जगी है. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के डॉक्टर एंड्र्यू फ्रीडमैन कहते हैं, "ये एचआईवी के खिलाफ भी एक मजबूत कड़ी हो सकती है."
इंसानों के लिए ऐसा टीका तैयार करने में कम से कम आठ से दस साल लगेंगे. प्रोफेसर पिकर के मुताबिक जब तक यह तय नहीं हो जाता कि यह पूरी तरह सुरक्षित है, तब तक इसे बाजार में नहीं लाया जा सकता.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: महेश झा