एक साल के जश्न की 200 रैलियां
२५ मई २०१५मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर तारीफ से ज्यादा आलोचना के स्वर प्रखर हो रहे हैं. पार्टी को लगता है सरकार की छवि पर जनविरोधी होने के जो दाग लग रहे हैं इन रैलियों द्वारा उन्हें मिटाया जा सकेगा. पार्टी ने चुनाव पूर्व कार्यक्रमों की तर्ज पर व्यापक स्तर पर लोगों तक पहुंच बनाने की कवायद में 200 रैलियों और 5,000 जनसभाओं का आयोजन करने की योजना बनाई है.
अधूरी उम्मीदें
मोदी के एक साल में हुई उपलब्धियों और नाकामियों पर आम जनता के अलावा विश्लेषकों की भी राय बंटी हुई है. अच्छे दिन लाने के नारे के साथ मोदी सरकार पिछले साल स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. वादों के मुताबिक सरकार से उम्मीदें भी भारी लगाई गईं.
भूले हुए वादों में एक अहम वादा था देश के आर्थिक विकास और नई नौकरियों का. इकोनॉमिक थिंक टैंक आरपीजी के प्रमुख डीएच पाइ पानंदिकर मानते हैं, "मोदी से भारी उम्मीदें थीं जो कि 30 सालों में पहली बार बहुमत से प्रधानमंत्री पद पर आने वाले राजनेता हैं, उम्मीद थी कि वे बड़े और तीव्रगामी परिवर्तन लाएंगे. ऐसा अब तक नहीं हुआ है."
चंडीगढ़ की मुनिंद्रा सूपिया कहती हैं, "हम अभी तक उन अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं. सरकार नौकरियों की संभावनाएं लाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है." हालांकि ऊपरी सतह पर आर्थिक स्थिति खराब नहीं दिखती है. पिछले वित्तीय वर्ष में जीडीपी में 6.9 फीसदी विकास हुआ है जिसके अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक इस साल 7.5 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है, यानि चीन से भी ज्यादा. मुद्रास्फीति जो कि मोदी की प्राथमिकताओं में से एक है, 5 फीसदी से कम रही. आलोचकों का मानना है कि गणना के आधिकारिक तरीके बदलने के कारण पिछले साल की जीडीपी में 2 फीसदी की उछाल रही. उनका मानना है कि मुद्रास्फीति में स्थिरता की बड़ी वजह तेल और गैस की कीमतों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य सामग्री के दामों में आई गिरावट है.
विदेश नीति
विदेश नीति के मोर्चे पर अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में मोदी काफी सक्रिय रहे. उन्होंने भारत के मेक इन इंडिया कैम्पेन का विदेश में बढ़ चढ़ कर प्रचार किया और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत आकर निर्माण करने की दावत दी. फॉरेन पॉलिसी थिक टैंक की नीलम देव के मुताबिक विदेशी निवेश को भारत लाने की सोच के जरिए मोदी भारत की आर्थिक कूटनीति में भारी परिवर्तन लाए हैं.
मोदी ने 12 महीनों में 18 देशों की यात्रा की जिनमें फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका भी शामिल हैं. लेकिन करीबी पड़ोसी पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में कोई सुधार नहीं हुआ है. हालांकि प्रधानमंत्री पद संभालते समय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को दावत देकर उन्होंने अच्छे संबंधों की उम्मीद जगाई थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लेकिन उनके कूटनीतिक प्रयासों ने बांग्लादेश और म्यांमार के साथ संबंधों को बेहतर बनाया और चीन के साथ आर्थिक संबंध भी मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं.
आलोचकों का यह भी मानना है कि गुजरात दंगों के दाग पीछे छोड़ कर प्रधानमंत्री पद संभालने वाले नरेंद्र मोदी अभी तक मुसलमानों और अल्पसंख्यकों का विश्वास नहीं जीत पाए हैं. हाल में अपने कई भाषणों में उन्होंने कहा कि "समय बदल रहा है". उन्होंने लोगों से धैर्य रखने को कहा. उनकी उम्मीद है कि अगले साल इस समय तक वे भारत को यह कहने की स्थिति में होंगे कि अच्छे दिन आ गए.
एसएफ/एमजे (डीपीए)