एक डॉक्टर की सच्ची सेवा
चीन के युन्नान प्रांत के गांवों में जर्मनी के एक डॉक्टर बड़े मशहूर हैं. 15 साल तक उन्होंने गांव गांव जाकर लोगों की मदद की.
बांहों में नई जिंदगी
इस बच्ची का जन्म जियानशुई काउंटी के एक अस्पताल में हुआ. डॉक्टर एकेहार्ड शार्फश्वेर्ट ने अपनी निगरानी में डॉक्टरों और नर्सों को जरूरी निर्देश दिये. सफल डिलीवरी के बाद उन्होंने खुद बच्ची को गोद में भर लिया.
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
शार्फश्वेर्ट ने अपने लिए एक चाइनीज नाम भी चुना, शाक. 2003 से 2006 के बीच उन्होंने स्थानीय सरकार के साथ मिलकर गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाया. इसके तहत बकरी पालन से लोगों को पैसा कमाना सिखाया गया. इस दौरान वह कई घंटे पैदल चलकर गांव गांव पहुंचे.
छोटी सी शुरुआत
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत गरीब परिवारों को तीन साल के लिये पांच बकरियां दी गईं. इस दौरान होने वाले बकरियों के बच्चे उन्हें पालने वाले परिवारों को मिले. तीन साल बाद बकरियां वापस लौटा दी गईं.
कैसे पहुंचे चीन तक
युन्नान जाने से पहले डॉक्टर शार्फश्वेर्ट ने दो साल तक सिंगापुर में चीन की भाषा मैंडरिन सीखी. अच्छी तरह भाषा सीखने के बाद वह युन्नान गए.
युवा डॉक्टरों की मदद
डॉक्टर शार्फश्वेर्ट ने युवा डॉक्टरों को सर्जरी और एनेस्थेसिया की ट्रेनिंग भी दी. वह कहते हैं, "मैं 100 लोगों का इलाज कर सकता हूं लेकिन अगर में 100 डॉक्टरों को ट्रेनिंग दे दूं तो असर 10,000 गुना ज्यादा होगा."
ट्रेनिंग खत्म
जियानशुई काउंटी के अस्पताल में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद युवाओं ने जर्मन डॉक्टर के साथ ग्रुप फोटो खिंचवाई.
प्यार भरा रिश्ता
इलाके के लोग डॉक्टर शाक को अच्छी तरह जानते हैं. जर्मन डॉक्टर जब किसी गांव में जाते तो ग्रामीण उनका गर्मजोशी से स्वागत करते.
टीचर भी
डॉक्टर शाक ने बच्चों को अंग्रेजी भी सिखाई. अपनी बेटी की क्लास के बच्चों को वह अंग्रेजी पढ़ाते थे.
चकाचौंध से दूर
युन्नान की होन्घे काउंटी में आज भी आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं. ऐसे दूर दराज के इलाकों में लोगों को डॉक्टर शाक से बड़ा सहारा मिला.
रूटीन चेक अप
डॉक्टर शाक हर महीने में दो तीन दिन के लिए बेहद दूर दराज के गांवों में जाते थे. वह कहते हैं, "मेरा अनुभव है कि गरीब ज्यादा निष्कपट होते हैं."
रच बस गए
जर्मन गांव में पले बढ़े डॉक्टर शाक के मुताबिक, दुनिया भर में गांव चाहे कैसे ही हों, वहां एक किस्म की सादगी रहती है.
बच्चों से प्यार
डॉक्टर शाक कहते हैं, "बच्चों से बात करना सबसे आसान होता है. वे जिज्ञासा से भरे होते हैं और बेझिझक सवाल पूछ लेते हैं. इसमें मजा आता है."
इलाके पर नाज
2013 में यूनेस्को ने होन्घे हानी के सीढ़ीदार खेतों को विश्व सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया गया. खेती के यह तरीका बेहद फायदेमंद है. डॉक्टर शाक को स्थानीय लोगों पर गर्व है.
मिर्च भी खाने लगे
जवानी तक बहुत ही कम मसाले खाने वाले डॉक्टर शाक अब लाल मिर्च के दीवाने हैं. हंसते हुए वह कहते हैं, "मेरा बेटा भी लाल मिर्च वाला सूप पसंद करता है."
चीन से प्यार
युन्नान में 15 साल तक लोगों की सेवा करने के बाद डॉक्टर शाक अब जर्मनी लौटे हैं. वह कहते हैं, "मैं भले ही जर्मनी आया हूं लेकिन मेरा दिल अब भी चीन में है. हो सकता है कि मैं एक दिन चीन वापस चला जाऊं."