ऊंटों की रेस में बिलखते बच्चे
गरीब बच्चों को जबरन ऊंट की पीठ पर बैठा कर दौ़ड़ना, मिस्र के इस्मालिया में आज भी विवादों से भरा इंटरनेशलन कैमल रेसिंग फेस्टिवल होता है.
जानलेवा दौड़
चिल्ड्रेन जॉकी कहे जाने वाले ये बच्चे ऊंटों की रेस में कई बार गंभीर रूप से घायल भी होते हैं. ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं जब ऊंट की पीठ से गिरे बच्चे, दूसरे ऊंटों से कुचले गए.
प्रतिबंध की मांग
ऊंट की पीठ पर बैठाने के लिए अलग अलग देशों के बच्चों को लाया जाता है. ज्यादातर बच्चों को यह दौड़ बिल्कुल पसंद नहीं लेकिन मजबूरन उन्हें इसका हिस्सा बनना पड़ता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से इस दौड़ पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं. यह मांग आज भी जारी है.
कहां कहां बैन
संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार और कल्याण संस्था यूनिसेफ इस दौड़ पर प्रतिबंध लगाने की मुहिम छेड़े हुए है. कुछ ही मामलों में सफलता मिली है. 1993 में संयुक्त अरब अमीरात ने इस दौड़ पर बैन लगाया. बाद में कई बच्चों को इसके बदले मुआवजा भी दिया गया. कतर ने 2005 में इस दौड़ पर प्रतिबंध लगाया.
इंसान की जगह रोबोट
कतर की सरकार ने 2007 में बच्चों की जगह रोबोट को ऊंटों की पीठ पर सवार करा दिया. इससे रेस भी जारी रही और ऊंट मालिकों की कमाई भी.
भारत के बच्चे
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक 1990 के दशक तक भारत में कई बच्चों का अपहरण ऊंटों की ऐसी दौड़ के लिए किया जाता था. तस्करी के जरिए बच्चों को खाड़ी के देशों में लाया जाता और फिर ऊंट दौड़ का हिस्सा बनाया जाता था.
बच्चे ही क्यों?
वयस्कों और किशोरों की तुलना में बच्चे वजन में हल्के होते हैं. बच्चों के हल्के शरीर के कारण ऊंटों को तेज दौड़ने में आसानी होती है.
गरीबी का दुश्चक्र
गरीब ऊंट पालक, मिस्र के इंटरनेशलन कैमल रेसिंग फेस्टिवल को किस्मत संवारने का मौका मानते हैं. उन्हें लगता है कि अगर उनका ऊंट और बच्चा जीत गया तो कई महीने की तंगहाली दूर हो जाएगी.